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शिवरात्रि का दिन है! याद आते हैं मुझे 'रामायण' के रावण ! इसदिन मैंने रावण का इंटरव्यू किया था ! बात तबकी है जब रामानंद सागर की 'रामायण' शुरू हुई थी(1987). दूर दर्शन के छोटे पर्दे पर रावण की एंट्री होने वाली थी. रामायण के टेलीकास्ट के समय पूरी सड़कों पर सुनाकाल हो जाया करता था.बिजली सप्लाई कटने पर कई पॉवर स्टेशन जला दिए जाने की चर्चा हुआ करती थी.दूरदर्शन के इतिहास में टी.आर.पी. (70 करोड़ के पार) पाने के दिन थे वो. उस समय हमने मायापुरी फ़िल्म साप्ताहिक के लिए 'रामायण- विशेषांक' निकाला था.किसी भी टीवी शो के लिए यह भारत मे पहला विशेषांक आयोजन था- कवर पेज से आखिरी पेज तक. सबसे रोचक अनुभव रहा मेरे लिए रावण (स्वर्गीय अरविंद त्रिवेदी) का इंटरव्यू करना. इस अंक में हमने 'रामायण' के सभी मुख्य कलाकारों को शामिल किया था. राम (अरुण गोविल), सीता (दीपिका), हनुमान (दारा सिंह), जाम्बूवंत ( राज शेखर) सबको मिलकर अच्छा लगा, लेेकिन जो आत्मीयता रावण से मिली, मेंरे लिए यादगार रही है. मुझे रावण के घर जाम्बुवन्त लेकर गए थे.
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मुम्बई में असली जिंदगी के रावण पंचवटी बिल्डिंग (कांदिवली वेस्ट) में रहते थे. उनके ऊपरी मंजिल के फ्लेट तक हर सीढ़ी पर किसी न किसी भगवान की तस्वीर साइड में लगी हुई थी. यह अरविंद जी ने ही लगवाया था.वह भगवान शिव के परम भक्त थे- उसी समय से जब रावण बने भी नही थे. पहली मीटिंग में ही वह मुझे रावण- संहिता सुनाए थे.उन्होंने मुझे बताया था कि रावण का रोल उनको भगवान शिवकी कृपा से मिला था. यह भूमिका उनके पास अमरीशपुरी को क्रास करके आयी थी.सब चाहते रावण की भूमिका अमरीशपुरी जी करें. ओडिशन में अरविंद जी वापस हुए तब उनकी चाल और अंदाज़ देख कर रामानंद सागर ने पीछे से आवाज़ दिया- ''लंकेश !
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मुझे मेरा रावण मिल गया!" इस इंटरव्यू के बाद फिर तो मैैं प्रायः उनके घर आने जाने लगा था.मैं संताक्रुुुझ से बस में जब लम्बी यात्रा करके उनके घर पहुचता था , उनकी पत्नी नलिनी जी मुझे कुछ अच्छा खाने के लिए रखा करती थी. इंटरव्यू छपकर आने तक उनकी कोई पहचान नही थी क्योंकि तबतक वह टीवी पर आना शुरू ही हुए थे.धीरे धीरे वह पॉपुलर होते गए.गुजराती सिनेमा और थियेटर पर उन्होंने बहुत काम किया हुआ था लेकिन हिंदी फिल्म व टीवी जगत के लिए वह एकदम नए जैसे ही थे. टीवी पर रामायण की पॉपुलोरिटी बढ़ने के साथ रावण पॉपुलर होता गया. हमने उनका एक और इंटरव्यू छापा. मायापुरी तब हार्ड कॉपी में आती थी, आजकल की तरह इंटरनेट का जमाना नही था.हमलोग तब कलाकारों का पता भी छापा करते थे जिससे कलाकार को उसकी फैनमेल आया करती थी.
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रावण केलिए जो फैनमेल आनी शुरू हुई तो उसने सारे बड़े बड़े सितारों का रिकॉर्ड तोड़ दिया. पोस्ट ऑफिस वाले बड़ी बड़ी गोनियों में भर भर कर चिट्ठियां लाते थे. यह रोज का नियम था. अरविंदजी अपनी फैनमेल पढ़ भी नही पाते थे. और, उनके बरामदे में प्रशंसको- चाहनेवालों की चिट्ठियों का ढेर लगता जा रहा था. वह फैन मेल की तरफ देखकर मुझसे कहते थे- "शिवजी की कृपा है जो मुझ पर मायापुरी की माया है" वाकई फैन मेल का ऐसा मंजर फिर कभी नहीं दिखा!
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समय आगे बढ़ा. गुजराती फिल्मों के सुपर स्टार अपने भाई उपेंद्र त्रिवेदी से उनको बड़ा लगाव था. गुजराती थिएटर उनको बहुत प्रिय थे.वह मोरारी बापू के बड़े भक्त थे. रावण संहिता का श्लोक जब घर मे बोलते उनसे सुनता था तब लगता था भगवान शिव उनके सामने हैं. वह पहले ऐसे खलनायक थे जिससे लोगों को प्यार था. रावण धरती का सम्भवतः पहला खलनायक था जिसको जनता ने चुनकर संसद पहुचाया. गुजरात के साभरकाटा से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद वह दिल्ली और गुजरात मे ही रह पा रहे थे.मुम्बई से सम्पर्क कम हो गया था उनका या कहूं कि मेरा सम्पर्क कट गया था. फिर , एक लंबे गैप के बाद जुहू के होटल सेंटोर में सुधाकर बोकाडे की एक फ़िल्म की लांचिंग पार्टी में वह अतिथि बनकर आये थे. सांसद भी थे तब,भीड़ थी चारों तरफ. अचानक मुझे देखे , ज़ोर से आवाज दिए- "शरद!...शरद !!'' फिर तो वह जब तक पार्टी में रहे मेरे कंधे पर हाथ रखकर घूमते रहे.लोगों से मिलते रहे, मुझे मिलवाते रहे, जैसे अतिथि वो नहीं मैं था.
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वाक़ई शिव भक्ति का ऐसा संयोग मैंने किसी और कलाकार में नहीं देखा. आज वह हमारे बीच नही हैं लेकिन महा शिवरात्रि के पावन पर्व पर उनको स्मरण करते मेरे मन मे पूरी शिव भक्ति का भाव महसूस होता है. हर हर महादेव !!
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