श्रीदेवी का जाना, जाना नहीं, रह जाना है By Sulena Majumdar Arora 28 Feb 2018 | एडिट 28 Feb 2018 23:00 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर वैसे तो इस दुनिया में कोई भी अजर-अमर नहीं है, फिर भी श्रीदेवी के बारे में इस तरह से लिखने की नौबत आएगी, यह मैंने नहीं सोचा था। उनके बारे में लिखते हुए मुझे वह दिन सबसे पहले याद आ रहे हैं जब हमारे हाथों में मोबाइल नहीं हुआ करती थी, वन टू वन बातें ही हो पाती थी। अगर मैं गलती नहीं कर रही हूं तो मुझे याद है की प्रचार निर्देशक, हरि सिंह ने मुझे निमंत्रित किया था सबसे पहले श्रीदेवी से मिलने के लिए। श्रीदेवी उस वक्त तक टॉप की नायिका बन चुकी थी और मैं कॉलेज में पढ़ती थी। समय तय हुआ। मैं जल्दी से जल्दी इंटरव्यू निपटाना चाहती थी, मुझे कॉलेज में एक प्रोजेक्ट क्लास के लिए जाना था, लेकिन शूटिंग की वजह से श्रीदेवी से बातें नहीं हो पा रही थी। मैंने मौका मिलते ही उन्हें अपनी मजबूरी बताई तो उन्होंने तुरंत अगले दस मिनट में अपने मेकअप रूम में बातें करने के लिए मुझे बुला लिया। बातें क्या होती? मैं प्रश्न कर रही थी और वे एक शब्द में जवाब दे रही थी और वो भी मेरे प्रश्न का सटीक उत्तर नहीं होता था। मेरी उलझन को समझकर वे बोली थी, ' हिंदी नो नो, इंग्लिश।' मैं अपनी गलती समझ कर ठहाका मारकर हंसी तो वे भी खुलकर हँस पड़ी और मैंने उन्हें अंग्रेजी में प्रश्न पूछना शुरु किया, जिसका जवाब उन्होंने बहुत ही नपे तुले शब्दों में, धीरे-धीरे दिया। बातचीत खत्म हुई तो वे बोली कि वे इस इंटरव्यू से इसलिए खुश हुई क्योंकि मैंने कोई विवादास्पद भारी भरकम विषयों पर प्रश्न नहीं किया था, सिर्फ हल्की फुल्की बातें, उनकी फिल्मों को लेकर प्रश्न, उनकी खूबसूरती के राज़ और बचपन की यादों को कुरेदा था। वैसे मैंने श्रीदेवी को किसी भी पत्रकार के साथ खुलकर बातें करते हुए नहीं देखा था, वे हमेशा एलर्ट बनी रहती थी, खासकर अंग्रेजी पत्रिकाओं के पत्रकारों से उन्हें मैंने जरा शंकित, सकुचाई और मितभाषी रहते देखा था। उन दिनों ज्यादातर गंभीर रहती थी उनके चेहरे की भाषा। अक्सर एक संरक्षण के घेरे में घिरी रहती थी वे। जहाँ तक मेरा ऑब्जरवेशन है, उन्होंने किसी पत्रकार के साथ बैक स्लैपिंग वाली दोस्ती नहीं रखी थी, लेकिन ना जाने क्यों मायापुरी के नाम से उनकी बड़ी-बड़ी आंखों में एक मीठा सा भाव उतर आता था। जब मैंने उन्हें मायापुरी के साथ एक बार हमारी बाल पत्रिका लोटपोट की कॉपी दी तो किसी बच्चे की तरह उन्होंने लोटपोट देखना शुरु किया। मायापुरी में उनका कवर पेज छपा था, उन्होंने मायापुरी को गौर से देखा, पन्ने पलटे और कहा 'नाइस', लेकिन फिर मायापुरी रखकर उन्होंने लोटपोट उठा लिया और उसे देर तक देखती रही। उनके चेहरे पर मुस्कान खेलने लगी थी। अगले दिन जब अपनी बातचीत के शेष अंश के लिए मैं उनसे फिर मिलने वर्सोवा के मच्छी मार कॉलोनी ( जहां शूटिंग चल रही थी) पहुंची तो देख कर हैरान रह गई की लोटपोट की वही प्रति उनके सामान के बीच करीने से रखी हुई थी। वातावरण में सूखी मछलियों की बदबू फैली हुई थी इसलिए शूटिंग के दौरान उन्हें बड़ी परेशानी हो रही थी। शूटिंग खत्म होते ही वे जब कार में बैठी तो लोटपोट लेकर देखने लगी। उनकी यही मासूमियत, यही बालपन, अंत तक उनके साथ बनी रही। वे सुपरस्टार थी, लेकिन अपने प्रत्येक फिल्म के रिलीज से पहले किसी छोटी सी बच्ची की तरह बहुत नर्वस होती थी। पूछने पर कहती थी, ' मुझे हमेशा लगता है कि यह मेरी पहली फिल्म है, इसीलिए मैं उत्तेजित रहती हूं और नर्वस भी।' श्रीदेवी जब कोई फिल्म करती थी तो उनके चाहने वाले उनसे बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाने लगते थे। इस पर भी वे एक बार बोली थी, 'मेरे लिए कोई भी फिल्म करना एक सहज प्रक्रिया होती है। मैं कभी कोई तैयारी के साथ फिल्में स्वीकार नहीं करती। मैं चाहे बरसों-बरस तक एक भी फिल्म ना करूं, मुझे कोई परेशानी या लाइमलाइट की चाहत नहीं होती और अगर मन को छू जाए तो पल भर में मैं कोई भी फिल्म साईन कर लेती हूँ। मैं अपनी दुनिया में खुश हूं, अपने पति के साथ, बच्चों की परवरिश में मैं रमी हुई हूं, मैंने सोचा भी नहीं था कि वापस फिल्में करूंगी, लेकिन 'इंग्लिश विंग्लिश' और 'मॉम' की पटकथा ने मेरे मन को छू लिया था। आगे फिल्में करती ही रहूंगी इसकी कोई गारंटी नहीं।' श्रीदेवी को इस बात का अफसोस रहा कि अक्सर लोग उनके मन को समझ नहीं पाते हैं। उन्होंने कहा था एक मां के नाते उन्हें अपने बच्चों को हर जगह अपने साथ ले जाने में बेहद गर्व का एहसास होता है। वे बोली, 'इसलिए मैं उन्हें अपने साथ हर इवेंट में ले जाती हूं लेकिन लोगों ने इसका गलत अर्थ लगाते हुए सोचा कि मैं उन्हें फिल्मों में उतारने के लिए यह सब कर रही हूँ, सच कहूं तो इतिहास फिर से बिल्कुल वही कहानी दोहरा रही है। मेरी मां ने मुझे कभी फिल्मों में नहीं धकेला, मुझे खुद फिल्मों में काम करने का शौक था। मेरे परिवार वालों में से कई लोग इसके खिलाफ थे, लेकिन मेरी मां ने मेरी इच्छा को समझते हुए मेरे लिए सबके साथ लड़ गई। ठीक वैसे ही मेरी बेटी जहान्वी भी खुद फिल्मों को अपना करियर बनाना चाहती थी, मैंने तो बस उसे सपोर्ट किया। मैं हमेशा उसका साथ दूंगी, हर हाल में। जहान्वी बिल्कुल मेरी तरह है, काफी भोली, संवेदनशील, आज्ञाकारी, लेकिन मेरी छोटी बेटी 'खुशी' काफी मजबूत दिल की है। वह अपना अलग स्वतंत्र विचार रखती है और उसमें वह सक्षम भी है। हालांकि मेरी दोनों बेटियां अपने जीवन के बारे में खुद फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं लेकिन फिर भी जब तक मेरी जरूरत होगी मैं हर पल उनका साथ दूंगी।' श्रीदेवी की बेटी जहान्वी की डेब्यू फिल्म 'धड़क' के प्रति श्रीदेवी बहुत नर्वस थी। वे अपनी बेटी के करियर को फलते-फूलते देखना चाहती थी। लेकिन ईश्वर को कुछ और मंजूर था। श्रीदेवी इतनी रिलीजियस थी, किसी हालत में आपा नहीं खोती थी और अपने जीवन के उतार चढ़ाव को लेकर कभी हाइपर नहीं होती थी। उन्हें भगवान पर अटूट विश्वास था, लेकिन कहते हैं ना कि किसी की धार्मिक प्रवृत्ति, सादगी, सरलता, सदगुण, यह सब उसे शांति जरूर दे सकती है, शक्ति जरूर दे सकती है, दुखों को कम कर सकती है, लेकिन सांसों की डोर ऊपर वाले के हाथ में होती है उसे कोई भी पल भर के लिए भी आगे पीछे नहीं कर सकता। बोनी कपूर ने बिल्कुल ठीक कहा है की 'श्रीदेवी का जाना, जाना नहीं, रह जाना है।' मायापुरी परिवार की ओर से श्रीदेवी को भावभीनी श्रद्धांजलि। ***************** ➡ मायापुरी की लेटेस्ट ख़बरों को इंग्लिश में पढ़ने के लिए www.bollyy.com पर क्लिक करें. ➡ अगर आप विडियो देखना ज्यादा पसंद करते हैं तो आप हमारे यूट्यूब चैनल Mayapuri Cut पर जा सकते हैं. ➡ आप हमसे जुड़ने के लिए हमारे पेज width='500' height='283' style='border:none;overflow:hidden' scrolling='no' frameborder='0' allowfullscreen='true' allow='autoplay; clipboard-write; encrypted-media; picture-in-picture; web-share' allowFullScreen='true'> '>Facebook, Twitter और Instagram परa जा सकते हैं. embed/captioned' allowtransparency='true' allowfullscreen='true' frameborder='0' height='879' width='400' 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