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क्या आपने 1961 में आई फिल्म ‘जंगली’ देखी है? अगर फिल्म नहीं तो इसका गाना ‘चाहे कोई मुझे जंगली कहे’ तो जरूर ही देखा होगा. यह गाना आज भी सुपरहिट है. इसमें अदाकार शम्मी कपूर ने पूरी मस्ती से डांस किया है. शम्मी कपूर के इसी पागल अंदाज ने उन्हें बॉलीवुड का सुपरस्टार बनाया.
शम्मी कपूर एक जंगली अंदाज के अदाकार थे. उनकी अदाकारी को किसी एक परिभाषा में कैद नहीं किया जा सकता है. उनका यह अंदाज उस समय के दूसरे कलाकारों से बिलकुल जुदा था. इतना कि कोई भी इसकी काट नहीं खोज पा रहा था. अपनी फिल्मों में वे हमेशा नाचते और कूदते नजर आए. उनका संवाद बोलने का अंदाज भी अलहदा था.
इसी की सहायता से उन्होंने बॉलीवुड में आधुनिक अदाकारी को जन्म दिया. इस अदाकारी में पश्चिम के ‘रॉक एन रोल’ का समावेश था. तो आईए शम्मी कपूर के इस इस जंगलीपन को थोड़ा करीब से जानते हैं…
बनना चाहते थे इंजीनियर, लेकिन...
पचास के दशक में अदाकारी के पुराने ढर्रे को तोड़कर उसमें नयेपन का तड़का लगाने वाले सुपरस्टार शम्मी कपूर का जन्म 21 अक्टूबर 1931 के दिन हुआ था. उनका बचपन पेशावर में बीता. उनके पिता का नाम पृथ्वीराज कपूर था. ये वही पृथ्वीराज कपूर थे, जिन्होंने भारत में थिएटर को नया आयाम दिया.
इस वजह से शम्मी को थिएटर कला विरासत में मिली थी. जैसे दुकानदार अपने बच्चों से कहते हैं, ‘तुम क्या कर रहे हो, आओ दुकान में बैठो.’ वैसे ही शम्मी के पिता उनसे कहा करते थे, ‘ तुम क्या कर रहे हो, आओ थिएटर में एक्टिंग करो.’ बहुत कम उम्र में शम्मी थिएटर की बारीकियां समझने लगे थे.
पहले पहल शम्मी पेशावर से कलकत्ता लाए गए थे. जहां प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें बम्बई भेजा गया. शुरुआत में शम्मी एयरोनॉटिकल इंजीनियर बनना चाहते थे. लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आया कि ये काम उनके वश का नहीं है, इसलिए उन्होंने करियर के तौर पर थिएटर का चुनाव किया.
यह सन 1953 था, जब शम्मी ने पहली बार बॉलीवुड में कदम रखा. आगे 1957 तक उन्होंने कई फ़िल्में कीं, लेकिन ये सभी फ्लॉप साबित हुईं. शम्मी कपूर के लिए कहा जाने लगा कि वे अपने पिता पृथ्वीराज कपूर की नक़ल करते हैं.
इस बात ने उन्हें अंदर से बेचैन कर दिया और वे एक नया अंदाज विकसित करने की कोशिश में लग गए. 
नरगिस ने किया वादा और...
इस बीच उनके साथ एक ऐसी घटना घटी, जिसने उन्हें एक अलग अंदाज विकसित करने में बहुत मदद की. हुआ यह कि नरगिस उस समय राज कपूर के साथ फिल्म ‘बरसात’ की शूटिंग कर रही थीं.
राज कपूर इसके बाद ‘आवारा’ फिल्म बनाने वाले थे. नरगिस इसमें हीरोइन के तौर पर अदाकारी करना चाहती थीं. शम्मी उस समय धीरे-धीरे जवानी की ओर कदम रख रहे थे.
नरगिस ने उनसे कहा कि शम्मी उनके लिए प्रार्थना करे कि आवारा में उन्हें हीरोइन का किरदार मिल जाए, यदि ऐसा हुआ तो वे शम्मी को किस देंगी. बाद में नरगिस को यह रोल मिल गया.
शम्मी ने जब उन्हें उनका वादा याद दिलाया, तो वे मुकर गईं. किस की जगह उन्होंने शम्मी को अंग्रेजी संगीत की बीस कैसेट दीं. इस अंग्रेजी रॉक संगीत को सुनने के बाद शम्मी को ख्याल आया कि क्यों न इसका प्रयोग अदाकारी में किया जाए. आगे 1957 में उन्हें फिल्म ‘तुमसा नहीं देखा’ में काम करने का मौका मिला.
इस फिल्म में काम करने से पहले उन्होंने घोषणा की थी कि अगर यह फिल्म नहीं चली, तो वे हमेशा के लिए सिनेमा जगत से संन्यास ले लेंगे. हालाँकि, ऐसा नहीं हुआ.
यह फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई और शम्मी के नए अंदाज को खूब सराहा गया. इसके बाद शम्मी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. इस फिल्म के बाद शम्मी ने अपने नए अंदाज से बॉलीवुड में विद्रोह कर दिया.
उनके निशाने पर उस समय के तीन सबसे बड़े सुपरस्टार थे.
ये तीनों सुपरस्टार दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर थे. शम्मी ने अपने पागलपन से भरे सांगीतिक अंदाज से इन तीनों को पछाड़ दिया और बॉलीवुड के नए सुपरस्टार बन बैठे. /mayapuri/media/post_attachments/7c4f116b96bbaedc3df5f13ce60ec09885762bf6456e73d5b4797b7ca7ab0f08.jpg)
डांस स्टाइल का नहीं था कोई सानी
शम्मी कपूर ने अपने हर एक सीन का पुनर्गठन किया. उन्होंने अपना स्टाइल बदला. उन्होंने विदेशी कपड़े पहने और अपने हर एक एक्ट में असीमित ऊर्जा डाल दी. उनके भाई राज कपूर अगर साठ के दशक में एक आदर्श नेहरूवादी हीरो की भूमिका में नजर आते थे, तो वहीं शम्मी इसके विपरीत एक ऐसे आवारा हीरो के रूप में नजर आए, जिसका एकमात्र लक्ष्य नाच-गाकर हीरोइन को रिझाना होता था.
शम्मी ने आगे एक से बढ़कर एक फ़िल्में कीं. इन फिल्मों में जंगली, तीसरी मंजिल, ब्लफमास्टर, चाइनाटाउन और कश्मीर की कली मुख्य रहीं. इन फिल्मों में ख़ास बात यह रही कि उनका अंदाज प्रत्येक फिल्म के साथ और भी विकसित होता चला गया.
चेहरे पर पल भर में बदलने वाले भाव, ऊर्जा से भरे एक्ट, उल्लासित डांस स्टाइल और रोमांटिक आवाज के सहारे ने शम्मी ने बॉलीवुड में अदाकारी के प्रतिमान को परिवर्तित कर दिया.
उनके इसी अंदाज की वजह से उन्हें भारत का एल्विस प्रेस्ले कहा जाने लगा. साठ के दशक में वे अपने स्वर्णिम युग में पहुंचे. अपने इसी अंदाज के चलते शम्मी शूटिंग करते वक्त कई बार घायल हुए.
इसकी वजह से डॉक्टर ने उन्हें फिल्मों से दूरी बनाने की सलाह दी. इस सलाह को मानते हुए उन्होंने दूरी बना भी ली. अंत में यह कहा जा सकता है कि जैसे दिलीप कुमार की विरासत को शाहरुख़ खान ने आगे बढ़ाया, वैसे ही जीतेंद्र और गोविंदा ने शम्मी कपूर की विरासत को आगे बढ़ाया.
शम्मी कपूर की फिल्मों में कोई सन्देश भले ही न हो, लेकिन इनमें सुखद अंत जरूर होता था. /mayapuri/media/post_attachments/2d24ac53b541bbee647c7cb80c48991cc4d2f49f949cde672b87a85ac441675b.jpg)
साठ के दशक में जब राष्ट्र-निर्माण की भावना सर्वव्यापी थी, तब दर्शकों को उनका उल्लासित अंदाज खूब पसंद आया. उन्होंने शम्मी को अपनी पलकों पर बैठाया और बदले में शम्मी ने उन्हें ढेर सारा मनोरंजन प्रदान किया. आगे 14 अगस्त 2011के दिन शम्मी कपूर मृत्यु को प्राप्त हो गए.
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