बॉलीवुड ललनाओं के नाजुक कंधों पर बॉलीवुड सम्भालने का भार? क्या, वे पड़ेंगे सब पर भारी, या उनकी भी होगी लाचारी?

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By Sulena Majumdar Arora
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बॉलीवुड ललनाओं के नाजुक कंधों पर बॉलीवुड सम्भालने का भार? क्या, वे पड़ेंगे सब पर भारी, या उनकी भी होगी लाचारी?

अक्सर यह कहा जाता है कि लाइफ कम्स टू ए फुल सर्कल, आखिर धरती गोल जो है. अगर हम आज बॉलीवुड को लेकर इस उक्ति की मीमांसा करे तो एक नए अध्याय का पन्ना खुल सकता है? लेकिन प्रश्न ये है कि क्या वाकई ये कोई नया अध्याय है? हम बात कर रहे हैं आज की तारिख में बॉलीवुड के दशा की, जहां एक से बढ़कर एक सुपर स्टार्स से लैस बड़ी से बड़ी फ़िल्में धराशाई हो रही है, चाहे वो अक्षय कुमार की फिल्म हो या, आमिर खान की, या सलमान खान की, या शाहिद कपूर की, या रणवीर सिंह, या फिर रणबीर कपूर की. 

उधर साउथ से आए सुपर स्टार्स (अल्लू अर्जुन, प्रभास, यश, विजय, राम चरण, महेश, जूनियर एन.टी.आर) ने अपनी साउथ टू हिन्दी रीमेक पैन इंडिया रीलिज़ो (बाहुबली, केजीएफ, पुष्पा, आर आर आर) के जरिए जो तहलका मचाया हुआ है उससे ऑलरेडी बॉलीवुड घायल है, ऐसे में सदियों से नायकों के स्टारडम पर टिकी बॉलीवुड का चरमरा जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. लेकिन यहां वही प्रश्न फिर उठता है कि क्या वाकई हमेशा से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री मेल एक्टर्स यानी बॉलीवुड के सुपर नायकों पर ही टिकी हुई थी? 

जी नहीं, हिन्दी सिनेमा ने वो सुनहरा दौर भी देखा हुआ है जब बॉलीवुड में देविका रानी, नूरजहां, सुरैया, मीना कुमारी, नर्गिस, नूतन, मधुबाला, गीता बाली, वहीदा रहमान, वैजयंतीमाला, नन्दा, साधना, माधुरी दीक्षित, श्रीदेवी जैसी दिग्गज नायिकाओं के दम ख़म पर फ़िल्में बना करती थी और सुपर हिट होकर गोल्डन जुबली, सिल्वर जुबली मनाती थी. इसी बीच कब और कैसे बॉलीवुड में नायकों का वर्चस्व, सूरसा के मुँह की तरह फैला किसी को ठीक ठीक अंदाजा नहीं, लेकिन आज एक बार फिर बॉलीवुड की दुनिया गोल घूमकर उस कगार पर आ खड़ी हुई है जंहा हिन्दी फ़िल्मों के नायकों से निराश होकर दर्शक अब एक बार फिर बॉलीवुड की नायिकाओं से उम्मीद लगाने लगे हैं कि शायद हमारी यह भारतीय ललनायें सदियों से खड़ी हिन्दी सिनेमा जगत की हिलती चूलों को सम्भाल लें. 

आज की कई नायिकाओं की आने वाली फ़िल्मों से आशाएं गहरा रही है, जैसे हुमा कुरैशी और सोनाक्षी सिन्हा की बहुचर्चित फिल्म 'डब्ल एक्स एल' और जाह्नवी कपूर की थ्रिलिंग फ़िल्म 'मिली'. लेकिन चिंता की बात ये है कि आज के दर्शकों का बौधिक स्तर इतना धारदार हो गया है कि उन्हें परख पाना और उनके पसंद की कसौटी पर खरा उतरना कोई हंसी खेल नहीं है. जब विदेशी फ़िल्मों के रिमेक्स, जैसे आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा,' और अजय देवगन की फिल्म' थैंक गॉड' फ्लॉप हो सकती है तो साउथ की बॉलीवुड रिमेक्स का भी बुरी तरह पिटना कोई आश्चर्य की बात नहीं. मिसाल के तौर पर फिल्म जर्सी, विक्रम वेधा का हश्र देख लीजिए. 

जाह्नवी कपूर की फिल्म 'मिली' भी मलयालम फिल्म 'हेलेन' का हिन्दी रीमेक है. सवाल यह भी है कि आज के दर्शकों की भूख, बेस्ट कंटेंट की तरफ बढ़ती जा रही है, लॉक डाउन के दौरान बंद दरवाज़ों के पीछे उन्हें घर बैठे बिठाए कोरियन, टर्किश, अमेरिकन, फ्रेंच, चायनीज रोम कॉम, एक्शन, नॉर्डिक, थ्रिलर्स, और अकल्पनीय ड्रामाज देखने का जो चस्का लग गया है वो अब इन हिन्दी रीमेक्स से कितना संतुष्ट होगा ये वक्त बताएगा. 

हालांकि फिल्म 'मिली' की स्टार जाह्नवी का कहना है, "मैंने इससे पहले भी रीमेक्स में काम किया है, मेरा विश्वास है, कि जब किसी फिल्म के पीछे की मंशा ईमानदार होती है तो फिल्म अच्छी बनती है और दर्शक भी इसकी सराहना करते हैं." 

अखिर बात अच्छे कन्टेन्ट पर आ ही टिकी है तो बता दें कि हुमा कुरैशी और सोनाक्षी सिन्हा की आने वाली फिल्म 'डब्ल एक्स एल' की मौलिकता पर कोई शक नहीं है. ये दोनों नायिकाएं हक़ीक़त के जीवन में, शरू से ही अपने भरे पूरे तंदरुस्त खाते पीते बॉडी के कारण हमेशा से तंज और टीका टिप्पणी के शिकार होते रहें हैं और अचानक बातों बातों में यही मोटापा उनके दिल दिमाग में एक फिल्म की कहानी बनकर उभर गई. सोनाक्षी और हुमा के इस चुटीले, व्यंगात्मक, कॉमेडी परिस्थिति से बहुत सी लड़कियां, स्त्रियां इत्तेफाक रखती होंगी. 

तो अब देखना ये है कि क्या बॉलीवुड की ये बेहतरीन अभिनेत्रियों का जादू फिल्म दर्शकों पर चल पाएगा? क्या सोनाक्षी सिन्हा, हुमा कुरैशी या फिर कैटरीना कैफ की जल्द आने वाली फ़िल्में बॉलीवुड को फिर से हरियाली दे सकती है? क्या ओरिजिनल कन्टेन्ट वाली फिल्म 'डब्ल एक्स एल'' बाज़ी जीतकर सोनाक्षी तथा हुमा को बॉलीवुड में टॉप पोजीशन दिला सकती है या जाह्नवी की साउथ टू हिन्दी रीमेक एक बार फिर रीमेक हिट्स का रास्ता खोल सकता है. लेट्स कीप आवर  फिंगर्स क्रॉस्ड. जो भी हो, भारतीय नारी सबपर भारी पड़ जाए तो आश्चर्य नहीं बल्कि इंतजार और उम्मीद तो इसी का है.

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