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यॅूं तो तेरह जनवरी को पंजाबियों का लोहड़ी का सबसे बड़ा त्योहार मनाया जाएगा.मगर इस त्योहार के कार्यक्रम तो दस जनवरी से मनाए जाने लगते हैं.इसी वजह से 12 जनवरी की रात लोखंडवाला,अंधेरी,मुबई में किरण फड़निस ने अपनी सांस्कृतिक संस्था ‘‘कुक्कू टेल्स’’ के तहत ‘पंजाबी ग्लोबल फाउंडेशन’ की गुरप्रीत कौर चड्ढा के साथ लोहड़ी के विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया.जिसमेंं लोहड़ी गाने के लिए खास तौर पर गायक दिलबाग सिंह को दिल्ली से बुलाया गया था. इस अवसर पर हमने ‘मायापुरी’ के लिए गायक दिलबाग सिंह से बातचीत की.जो कि इस प्रकार रही.
आपने बचपन से लोहड़ी का त्योहार मनाते आए हैं.इस मौके पर आपने पहली बार कब लोहड़ी गायी थी? उसका क्या रिस्पांस मिला था?
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मेरी पैदाइश दिल्ली की है.मेरी परवरिश दिल्ली में ही हुई है.मेरे नाना नानी वगैरह अमृतसर में रहते हैं.तो हम बचपन में लोहड़ी मनाने के लिए अमृतसर अपने नाना के घर जाया करता था.वहां पर सभी बच्चे अपना लिफाफा लेकर घर घर जाया करते थे.वह लोहड़ी गाते थे.जिसके बदले में उन्हे उस घर से उनके लिफाफे में फुले यानी कि पॉपकॉर्न ,रेवड़ी व मूंॅगफली के साथ ही कुछ पैसे डाले जाते थे.वह लोग सब कुछ मिलाकर रखते थे और मुट्ठी भरकर बच्चे के लिफाफे में डालते थे.तो हम भी घर घर जाकर लोहड़ी गाते थे और हमारे लिफाफे में जो कुछ मिलता था,उसे घर लेकर आते थे.हम उसमें से पैसा निकालकर अलग कर लेते थे.बाकी फुले,रेवड़ी व मूंॅगफली खा लेते थे.कई बार ऐसा हुआ कि हम अमृतसर, पंजाब नहीं जा पाए,दिल्ली में ही रहे तो हम दिल्ली में भी ऐसा करते थे.दिल्ली में भी उत्तर भारतीय व पंजाबी काफी रह रहे हैं.तो दिल्ली में भी लोहड़ी,मकर संक्रांति काफी मनाते हैं.तो दिल्ली में भी जो लोग अपने हैं,उनके पास हम लोहड़ी मांगने जाते थे.और उस वक्त हम फोक गीत गाते थे-‘‘वो सुंदर बंदरिए,वो तेरा...वो दूल्हा पट्टी वाला....दाना दाना..लोहड़ी लेकर जाना’’ गाते थे.
पहली बार प्रोफेशनल स्तर पर लोहड़ी कहां गायी थी?
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जब मेरा संगीत का करियर शुरू हुआ, तो मुझे पहली बार किसी की प्रायवेट पार्टी में लोहड़ी गाने का अवसर मिला था.यॅॅूं तो लोहड़ी हर वर्ष 13 या 14 जनवरी को होती है.मगर लोहड़ी के कार्यक्रम दस जनवरी से ही शुरू हो जाते हैं.अपनी सुविधानुसार लोग लोहड़ी के कार्यक्रम का आयोजन करते हैं. तो हम लोग दस जनवरी से ही लोहड़ी के कार्यक्रमां में जाने लगते हैं.तो जो हमने पहला कार्यक्रम जिनके लिए किया था,उनकी शादी के बादष्पहली लोहड़ी थी.जहां मुझे परफार्म करने आ अवसर मिला था.उसके बाद से हर वर्ष मैं अलग अलग शहरों में लोहड़ी मनाता आ रहा हॅूं. लगभग 14 वर्ष से यह सिलसिला टूटा नही है.इस वर्ष हमने दस जनवरी की रात में दिल्ली में लोहड़ी का कार्यक्रम कि. फिर आपके सामने लोखंडवाला, अंधेरी, मुंबई में 12 जनवरी की रात में लोहड़ी का कार्यक्रम किया.
कभी लोहड़ी के अवसर पर विदेश में गाने का अवसर मिला?
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जी नहीं. विदेश जाकर लोहड़ी नहीं गायी.मगर विदेशियों के लिए भारत में लोहड़ी गायी है.आप भी जानते हैं कि इस वक्त कनाडा, जापान, अमरीका,इंग्लैंड जैसे देशों ठंड काफी होती है.बर्फ जमी रहती है.ऐसे में वहां पर कोई जश्न या त्योहार मनाने का अवसर नही मिलता. इसलिए ज्यादातर पंजाबी दिसंबर माह में ही भारत आ जाते हैं और यहां पर शादी व लोहड़ी की तैयारी करते हैं.फिर जनवरी माह में लोहड़ी मनाते हैं.यहां पर ऐसे लोगों के लिए हमने लोहड़ी के काफी शो किए हैं.
पर आपने पहली बार मुंबई में लोहड़ी के कार्यक्रम में गाया?
मुंबई में इससे पहले मैंने काफी शो किए हैं. प्रायवेट पार्टी और कारपोरेट शो भी किए हैं.मुंबई के गुरूनानक कालेज में हमने वैसाखी का कार्यक्रम भी किया था.वैसाखी तो सिर्फ सिख व पंजाबियों की है.मगर लोहड़ी तो पूरे देश का पर्व है.लोग इसे अलग अलग नाम से मनाते हैं.दक्षिण में लोग इसे पोंगल व ओणम के नाम से मनाते हैं.उत्तर भारत में कुछ लोग मकर संक्रांति के नाम से मनाते हैं.अथवा लोहड़ी के नाम से मनाते हैं.वास्तव में लोहड़ी का पर्व किसानों से जुड़ा है. किसान पूरे वर्ष ख्ेती करता है, फिर उसे बेचकर अपनी जिंदगी को सुधारता है.तो जब वह नई फसल उगाते हैं, तो लोहड़ी के दिन उस नई फसल के लिए दुआ मांगते हैं और पिछली फसल के लिए सूर्य व अग्नि देवता का धन्यवाद अदा करते हैं.धन्यवाद के रूप में ही वह लोहड़ी को जलाते हैं. इसी के साथ आने वाली फसल और आने वाली नस्ल का स्वागत करते हैं.जो वह नई फसल उगाते हैं, वह अच्छी हो, इसके लिए दुआ भी मागते हैं.मेरे हिसाब से लोहड़ी एक मिक्स कल्चर है. मुंबई में हमने ‘लोहड़ी’ का कार्यक्रम करके ज्यादा इंज्वाय किया.यहां पर मिक्स कल्चर है.तो हमने पंजाबी लोहड़ी के अलावा राजस्थानी, गुजराती व भोजपुरी गीत भी गाए. इस वजह से हर किसी को लगा कि उनकी भाषा में भी गाया गया.
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