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अतीक अहमद की डॉन छवि, हत्यारों का बयान- पॉपुलर होने की चाहत, सोशल मीडिया / फेसबुक पर अपलोड उनकी तस्वीरें तथा मीडिया कर्मी बनकर अतीक कोअंजाम तक पहुंचाना..पूरी एक फिल्मी कहानी है!
सिनेमा और समाज एक दूसरे को प्रभावित करते हैं इस बात का ताजा उदाहरण है उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या और उनको मौत के अंजाम तक पहुचाए जाने का तरीका. पूरी कहानी फिल्मी क्लाइमेक्स सी लगती है...तभी तो कहते हैं सिनेमा समाज को प्रभावित करता है. और, समाज भी सिनेमा को प्रभावित करता है! 80-90 के दशक में तमाम माफिया/अंडर वर्ल्ड डॉन उभरे थे, जिनके जीवन पर कई फिल्में बन चुकी हैं. उनमें अतीक भी एक था जिनपर कोई फिल्म का काम नहीं हुआ था क्योंकि वह जिंदा था. अतीक के जीवन की कहानी का अंत एकदम फिल्मी क्लाइमेक्स की तरह हुआ है.
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सौ से अधिक अपराधों के आरोपी अतीक- जो जेल से अपना सरगना चलाता था, को 17 साल पुराने एक अपहरण केस ( उमेश पाल) में सजा सुनाने के लिए अहमदाबाद की जेल से उसके गृह नगर इलाहाबाद (अब प्रयागराज) की अदालत के लिए लाया जाता है. ठीक फिल्मी अंदाज में चाक चौबंद व्यवस्था के साथ जैसे फिल्मी खलनायक को कोर्ट में पेश करने के लिए पर्दे पर दिखाया जाता है, एक्दम वैसा ही अतीक को लाया जाता है. ठीक वैसी ही आशंका के साथ कि रास्ते मे डॉन की गाड़ी पलटी ना हो जाए, वो भगा ना दिया जाए या एनकाउंटर ना कर दिया जाए. पूरे रास्ते इस डॉन को कवरेज देने के लिए पूरे देश की मीडिया लगी होती है. इस जत्थे में आगे पीछे तमाम पोलिस और मीडिया की गाड़ियों के साथ अतीक को रेकी करने वाले भी थे जो रिपोर्ट में बताया जा रहा है.
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अतीक को आजीवन कारावास होती है. अतीक के भाई असरफ को भी अदालत में पेश होना होता है. दोनो भाइयों का मेडिकल करने के लिए मेडिकल कॉलेज ले जाया जाता है जहाँ तीन लड़के मीडिया कर्मी के रूप में पहुंचकर विदेसी रिवाल्वर से अधाधुन्द फायरिंग करके उनकी हत्या कर देते हैं. पोलिस कर्मी जहां अपराधियों को घेरे में लेकर चल रहे हों, जहां मीडिया के कैमरे फलेश कर रहे हों, अतीक और असरफ को गोलियों से भुन दिया जाता है. घटना से कुछ दिन पहले अतीक के बेटे का एनकाउंटर किया गया था जिसकी खबर पर डॉन फुट फुट कर रोया था. अतीक और असरफ को दफन किए जाने के समय भी कब्रिस्तान में वैसा ही नजारा था जैसा किसी 'भाई' के इंतेकाल का दृश्य फिल्मों में दिखाया जाता है. शहर प्रयागराज ही नहीं पूरा प्रदेश पुलिस की हलचल, गेदरिंग और बैरिकेट से नथा दिखाई देता है. इंटरनेट सेवाएं बन्द पड़ी होती हैं और पोलिस, आयोग, तफ्तीश तथा पोलटिकल रिएक्शन से टीवी न्यूज चैनल और सोशल मीडिया भर जाते हैं. फिर शुरू होता है तहकीकात का सिलसिला और गुत्थी उलझती जाती है.
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अतीक को अंजाम तक पहुचाने वाले तीनो युवा 18, 20, 23 की उम्र वाले हैं जो शुरुवाती बयान देते हैं कि वो यह किए हैं शोहरत पाने के लिए. तीनों अलग अलग शहर से वहां पहुंचे होते हैं. गरीब घर के हैं. ड्रग्स लेने वाले हैं उनको घर से निकाला जा चुका होता है और आपराधिक रेकोर्ड वाले हैं. उनमें से एक लवलेश तिवारी को तो कुछ समय पहले सोसल मीडिया पर अपनी तस्वीरें भी डाला था.उन तस्वीरों में हाथ मे रिवाल्वर लिए हुए है और अपने शरीर पर कोबरा का टैटू भी बनाया हुआ है.यानी पूरी डॉन की छवि में खुद को पेश करना पसंद करता है. एक लड़का शनि (मोहित) 90 के दशक के डॉन की तरह दोनो हाथ से गोली चलाने की प्रैक्टिस करते रहने वाला है. इनमे सबसे छोटा 18 साल का अरुण मौर्या है, जिसके बारे में, वो ऐसा कुछ कर सकता है उसके गांव में किसी को अनुमान भी नहीं है.
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कहानी इन्वेस्टिगेशन मोड पर है. जो कुछ होगा आगे पता चलेगा.लेकिन अभी तक कि कहानी जो है बिल्कुल फिल्मी है. इस कहानी में मर्डर है, अपहरण है, पुत्र शोक है, पत्नी का लापता होना है, धर्म का तड़का है और सबसे ऊपर डॉन का पोलटिक्स पर कब्जा और फिर जेल से सरगना संचालन करना है. तो पूरा फिल्मी मसाला है. देखने वाली बात होगी कि असली फिल्म बनाने के लिए कौन निर्माता पहले आगे आता है.
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