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-अरूण बाली
77 वर्षीय अभिनेता अरूण बाली ने बाॅलीवुड में एक लंबी पारी खेली है.इस बीच उन्होने फिल्में सीरियलों में अनेकों किरदार निभाए हैं.इन दिनों दूरदर्शन पर तीस वर्ष के बाद पुनः प्रसारित हो रहे डाॅ.चंद्र प्रकाश द्विवेदी लिखित और निर्देशित धारावाहिक ‘‘चाणक्य’’में केकई राज्य के राजा पोरस राजा उर्फ केकई राज के किरदार में वह काफी सराहे जा रहे हैं.
जब आपने सुना कि धारावाहिक ‘‘चाणक्य’’का पुनः प्रसारण होने जा रहा है,तो आपके दिमाग में सबसे पहली बात क्या आयी थी?
-मुझे अहसास हुआ कि ‘‘चाणक्य’’का पुनः प्रसारण एकदम सही समय पर हो रहा है.‘चाणक्य’वर्तमान समय की जरुरत है.उस वक्त देश के जो हालात थे,उनमें और आज के हालात में बहुत बड़ा अंतर नही है.दूसरी बात डाॅं.चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने ‘‘चाणक्य’’ को बहुत बेहतरीन व सुन्दर लिखा था.जो घटनाएं तब हुआ करती थीं,वही घटनाएं अब भी हो रही हैं.पहले भी लोग राष्ट् की बात नहीं समझते थे और आज भी नही समझते.आज भी सभी अपनी अपनी कुर्सी के लिए लगे हुए हैं.कुर्सी के लिए भले ही अपने सगे या निकटवर्ती को ही क्यों न धोखा देना पड़े.उस काल में एक अध्यापक का जितना रौब था,आज उतना नही है.उस काल में अध्यापक या आचार्य चाणक्य जो कुछ बताते थे,उसका मतलब होता था.
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-मेेरे ख्याल से इस धारावाहिक को वही लोग देख रहे हैं,जो इसे वास्तव में देखना चाहते हैं.जो‘‘चाणक्य’को समझना चाहते हैं,वह नहीं देख रहे है.‘चाणक्य’कोई सामान्य धारावाहिक या किरदार नही है.देखिए,आप परोठें खा रहे है और चाणक्य भी देख रहे हैं,यह तो नहीं चलेगा.आप पकोड़े खाते हुए‘‘चाणक्य’’देखकर सोंचे कि यह समझ में आ जाए,तो यह आपकी भूल है.
यह धारावाहिक इस बात की ओर इशारा करता है कि देष का राजा/शासक कैसा होना चाहिए?आपने देखा होगा कि जब केकई राज के भाई का बेटा और पौरव राज उनके पास आकर उनसे माफी माॅंगते है,तो वह पौरव राज से कहते हैं कि ‘तुमने अपनी प्रजा के साथ धोखा किया.जाओ पहले अपने देश की प्रजा से माफी मांग कर आओ,तो मैं भी माफ कर दूंगा.तुमने अपने स्वार्थ की खातिर अपनी प्रजा को मरने के लिए छोड़ दिया,तुमने उनका ख्याल नहीं किया.आज अपनी जरुरत के लिए मेरे पास माफी मांगने आ रहे हो.जब तक लोग इसे ध्यान से नही देखेगे,इन संवादों के मर्म को नहीं समझेंगे,तब तक क्या फायदा.
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-कोरोना के चलते आज जो हाथ धोेने या नमस्कार करने का रिवाज आया है,यह हमारे देश में सदियों पुराना है.हमारे बुजुर्गो ने जो रीति रिवाज बनाए थे,वह गलत नहीं थे.मसलन-रसोई में बैठकर भोजन करना चाहिए.जूते पहनकर भोजन नहीं करना चाहिए.आप भोजन करने से पहले और बाद में भी साबुन से अच्छी तरह से हाथ धोएंगे.इन सबका मतलब हुआ करता था.पहले भगवान का भोग लगता था.गाय,कुत्ता,अग्निदेव सहित पांच लोगों के लिए रोटी निकाली जाती थी,उसके बाद लोग भोजन करते थे.आज की पीढी कहती है कि मुझे भोजन करा दो, भगवान को बाद में भोग लगता रहेगा.उस काल में साफ सुथरा जीवन था.किसी के मन में भी कलह,क्लेश नहीं था.आज कल तो लोग सबसे पहले अपना फायदा सोचते हैं.अपने फायदे के लिए कुछ भी गलत इस तरह कर जाएंगे,कि लोग समझ भी नही पाएंगे.
-सच कहॅूं कि केकई राज और चाणक्य मेरे मन में छप गए हैं.कई बार मैं डायरेक्टर से कहता था कि अरे इतने बड़े बडे़ संवाद मैं अकेले बोल गया.मैं याद करना चाहूं,तो नही कर सकता था.मगर उस वक्त कलाकार के तौर पर कुछ करने का जज्बा, जिज्ञासा,इच्छा और समर्पण था.हम सभी कलाकार अपने घर से ही तैयारी करके सेट पर पहुॅचते थे.इतना ही नही कई बार संस्कृतनिष्ठ संवादों का अर्थ समझ में नही आता था,तो हम डाक्टर से पूछ लेते थे.
-वर्तमान युग में किसी भी देश का शासक पोरस राज नहीं है.आज की राजनीति में केकई राज कोई है ही नहीं.इसकी मूल वजह हर कोई अपनी अपनी कुर्सी के पीछे भाग रहा है.जब यवन शासक अलेक्जेंडर से युद्ध में पोरस हार जाते हैं और अलेक्जेंडर उन्हें बंदी बनाने के बाद उनसे पूछते हैं कि बताओ,तुम्हारे साथ किस तरह का व्यवहार किया जाए?तब पोरस राज उससे माफी नही मांगते हैं.बल्कि केकई राज कहते हैं-‘वही,जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है.’यानी कि वह कहते हैं कि तुझे मेरी चमड़ी उधेड़नी है,तो उधेड़ ले,में तुझसे क्षमा नही मांगूंगा,भीख नही मांगूंगा.इस पर उसने कहा कि तुम तो मेरे मित्र हो गए हो.और कह दिया कि मैने जितना जीता है,वह सब अब तुम सम्भालोगे.
इतना ही नही अलेक्झेंडर की मौत के बाद सेलुकस,केकई राज की खिंचाई कर देता है,तो वह अपने महामंत्री इंद्रदत्त से कहते है-‘‘मैं अलेक्झेंडर से हार कर भी इतना अपमानित नहीं हुआ था,जितना कि आज उसके दास के हाथों हुआ हूूं.’’तो केकई राज जैसा शासक आज कहां है?
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-राजा,प्रजा का होना चाहिए.यदि प्रजा रोटी खा ले,तो राजा रोटी खाए.यदि प्रजा रोटी न खाए,तो राजा को रोटी खाने का कोई हक नही है.और प्रजा भी ऐसी होनी चाहिए,जो अपने ऐसे राजा पर अपने प्राण न्योछावर करे.मगर अफसोस की बात यह है कि आज की तारीख में प्रजा ऐसी है,जो कि एक राजा को अपने बगल में हमेशा रखती है.मतलब यदि उनका स्वार्थ भाजपा/ भारतीय जनता पार्टी से पूरा हो रहा है,तो भाजपा की वाह वाह और यदि कोई स्वार्थ भाजपा से पूरा नहीं हो रहा है,तो काॅंग्रेस की वाह वाह..इसके अलावा इन दिनों हमारे यहां विपक्ष का मतलब है कि सत्तापक्ष/प्रधानमंत्री की हर हाल में वाट लगानी है.चाहे जो हो जाए, उसका काम सिर्फ विरोध करना ही है.अच्छे काम का भी विरोध करना है.इतना ही नहीं हमारे देश में अदब कायदा होता रहा है.लोग छोटे बडे़ का लिहाज करते रहे हैं.मगर अफसोस इन दिनों भारतीय राजनीति में हमारे विपक्ष के नेेता अदब करना भी नही जानते.
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-सौ हजार परवरिश की कमी है.मैं यहां पर बाॅलीवुड में सुनी हुई बात बताना चाहूंगा.मैं इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं कर रहा.अपने समय के मशहूर फिल्मकार स्व.पृथ्वीराज कपूर के बेेटे थे स्व. राज कपूर.पृथ्वीराज कपूर का अपना बहुत बड़ा नाम था.जब राज कपूर बड़े हुए,तो पृथ्वीराज कपूर ने उन्हें बतौर सहायक निर्देशक काम करने के लिए कहा.राज कपूर ने सोचा कि वह सेट पर गाड़ी में बैठकर जाएंगे.मगर पृथ्वीराज कपूर ने उनसे कहा कि,‘बेटा ट्रेन से जाओ,धक्के खाओ.और समय से पहुॅचना,देर से नहीं.ऐसा नही कि आप कार में बैठकर अय्याशी करते हुए जाओगे. ’तो पहले लोग अपने बेटो को अपनी गद्दी यूँ ही नहीं बैठा देते थे.वह कहते थे कि पहले जाओ,फैक्टरी में वर्करों के साथ मशीनों पर काम करो.कपडे़ व हाथ काले करो.फिर उससे बड़ी पोस्ट पर,फिर कंपनी में कलर्क के रूप में काम करो.जब हर विभाग में वह काम कर लेता था,उसका अपना एक संघर्ष होता था,यह साबित करने का कि वह अब अपने पिता की गद्दी पर बैठने योग्य है,तब पिता उसे अपनी गद्दी पर बैठाता था.आज कल तो सीधे बैठा दिया जाता है.मेरे हिसाब से आजकल के हालात ठीक नही है.
-पूरा दोष शिक्षा और शिक्षक का ही है.मैं किसी अन्य की बजाय अपनी बात करता हूं.आज मुझे अपने धर्म के बारे में कुछ नहीं मालुम.हम सिर्फ इतना जानते है कि यह रामचंद्र जी हैं,यह हनुमान जी है,यह शंकर भगवान हैं.बस..लेकिन आप मुसलमानों को देखिए,हर बंदे को कुरान याद है.छोटे छोटे बच्चों को याद है.क्योंकि उन्हे बचपन से इसकी शिक्षा दी जाती है.हमारे यहां
अंग्रेज़ी सिखायी जाती है.यू टाॅक इंग्लिश,यू वाॅक इंग्लिश..यह सबसे बड़ा फर्क है.हमारे देश को आजादी दिलाने वाले क्रांतीकारियों और बेहतरीन नेताओं के बारे में स्कूल में पढ़ाया ही नहीं जाता.तो हमारे देश में बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं मिल रहे,सही शिक्षा नहीं मिल रही.
इसके अलावा आबादी की बहुत बड़ी समस्या है.लोग समझ नही रहे हैं कि हम कर क्या रहे हैं.जितनी आबादी बढ़ेगी,उतने ही संसाधन कम होते जाएंगे.देखिए,हिंदुओं या सरदारों में एक बेटा,एक बेटी से संतुष्ट हो जाते हैं,मगर मुसलमान लाइन लगाते रहते हैं.वह मान ही नही रहे हैं.क्यों?यदि इनके खिलाफ कोई कारवाही की जाती है, तो विपक्ष इनके साथ मिलकर सरकार को उखाड़ फेंकने की कवायद करने लगता है.लोगों की सोच यह होनी चाहिए कि,देश पहले,धर्म व अन्य चीजें बाद में.मगर यहां पहले धर्म और अपना स्वार्थ है,उसके बाद देश है.
-कैरियर का हाल यह है कि जब मैं मुंबई पहुंचा था,तो पूरे तीन वर्ष तक मुझे कोई काम नहीं मिला था.लोग पहचानते ही नहीं था,जब ईश्वर की कृपा होती है,तभी काम मिलता है.मेरी राय में ईश्वर को ही देना है और ईश्वर को ही ले लेना है.
-देखिए,मैने फिल्में और धारावाहिक काफी किए.मैंने कभी उनकी सूची बनाकर नहीं रखी.मैने हमेशा स्क्रिप्ट के आधार पर पूरी श्रृद्धा से काम करता हूँ ,फिर भूल जाता हूं .मेरी जिंदगी और मेरे कैरियर का निचोड़ यही है कि आज तक किसी ने आकर मुझसे यह नही कहा कि इस किरदार में आपने कुछ कम अच्छी परफॅार्मेंस दी है या खराब काम किया है.फिर वह किरदार छोटा रहा हो या बड़ा.मेरे हर किरदार को लोगो ने याद रखा.
-सर एक नेता और एक अभिनेता मरते दम तक कुछ न कुछ करते रहते हैं.मुझे भी लगता है कि अभी मेरी बहुत हसरतें बाकी हैं मैं सोचता रहता हूं कि निर्देशक मुझसे कुछ और बेहतर काम करा सकता है.निर्देशक पर निर्भर करता है कि वह कलाकार से क्या नया करवाता है.
लेख टंडन जी के साथ मैंने एक सीरियल में दस एपीसोड किए और मुझे इतनी लोप्रियता मिली,उतनी दूसरे कलाकारों को सौ एपीसोड करने पर भी नहीं मिलती.लेख टंडन जी मेरे गुरू थे,गुरू हैं और जब तक मैं जिंदा रहूंगा ,वह मेरे गुरू रहेंगे.