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- शरद राय
गत 26 नवम्बर को संसद भवन में ''संविधान दिवस' मनाया गया।देश ने बाबा साहब अम्बेडकर की मेहनत को याद किया। इस मौके पर कहीं आरक्षण की चर्चा हुई तो कहीं राजनीति में फैलते परिवारवाद की। जब प्रधान मंत्री सदन में बोल रहे थे एक फिल्मी सोशलाइट अभिनेत्री पुष्पा वर्मा ने मुझे फोन किया- 'शरद जी, क्या हमारे फिल्म इंडस्ट्री में आरक्षण नहीं है?' सचमुच यह एक अहम सवाल था।कहने वाले तो कह देते हैं...भई, हमारा बॉलीवुड ही ऐसा है जहां कोई आरक्षण नही है। ना यहां कोई जातिपाति है ना ऊंचनीच।मुसलमान हिन्दू से और हिन्दू क्रिश्चियन से रिश्ता बनाता है।पति पंजाबी है तो पत्नी मद्रासी और बेटा बंगाली लड़की के साथ लिवइन रिश्ते में रहता है।स्पॉट बॉय प्रोडूजर बनता है तो प्रोडूजर किसी गाँव के गरीब लड़के पर करोड़ों खर्च करके फिल्म बनाता है।सुनने में सब बहुत अच्छा लगता है पर क्या सचमुच में ऐसा है?
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गहराई से सोचते हैं तो पाते हैं वैसा कुछ नही है। बॉलीवुड में तो पहले से आरक्षण है-'परिवार वाद' का आरक्षण, जातिवाद का आरक्षण, यहां तक कि टॉकीजों तक का आरक्षण यहां है! जो दिखता है वैसा कुछ नही है। बॉलीवुड का कोई संविधान नही है क्योंकि यहां का संविधान बनाते हैं स्टार। बॉलीवुड में घूम रहे ढेरों स्ट्रगलरों को देखिए उनमे से कितने स्टार बनते हैं? वही बनते हैं जो स्टार संस हैं (या स्टार डॉटर्स हैं) या उनके परिवार से है या पैसे के बल पर एंट्री पाते हैं।
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संजय दत्त, सनी देओल, अनिल कपूर, सैफ अली खान, सलमान खान,अभिषेक बच्चन, शाहिद कपूर, फरहानअख्तर, रितिक रोशन, बॉबी देवल, अक्षय खन्ना आदि- ये पिछली पीढ़ी के स्टार संस हैं जो पारिवारिक आरक्षण के बल पर ही आजतक टिके हैं।इसी पारिवारिक आरक्षण की नई उपज हैं- आज के कई स्टार-रणवीर कपूर, वरुण धवन आलिया भट्ट से लेकर सोनम कपूर, जान्हवी कपूर, अनन्या पांडे, सारा सैफ अली खान आदि। करन जौहर बॉलीवुड की भाषा मे आरक्षण के नए बाबा साहब अम्बेडकर हैं जो भावी पीढ़ी का संविधान रच रहे हैं। यह जनाब किनको ब्रेक देते हैं,बताने की जरूरत नही है।
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सनी देओल पंजाब से आए सैकड़ों स्ट्रगलर लड़कों का ऑडिशन करने के बाद अपने ही लड़के करन देओल को हीरो बनाते हैं।अब बॉबी के बेटे भी आने की तैयारी कर रहे हैं। निर्देशक, लेखक,वितरक निर्माता,म्यूजिक कम्पनी के ओनर भी अपनी पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।आनेवाले दिनों में शाहरुख खान, अक्षय कुमार, अजय देवगन, आमिर खान, सैफ अली खान, जूही, काजोल, सुष्मिता सेन के बच्चे स्टारडम में कदम बढ़ाने के लिए तैयार हो चुके हैं।प्रधान मंत्री कहते हैं राजनीति में परिवार वाद है। फिल्म इंडस्ट्री में परिवारवाद के आरक्षण की तो कोई चर्चा भी नही करता है।जब कोई सुशांत सिंह दुनिया छोड़ जाते हैं तब कोई कंगना राणावत आवाज उठाती है और बस बॉलीवुड में आरक्षण की बहस भैंस के आगे बिन बजाने वाली बात बनकर रह जाती है।
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आइये, लगे हाथ जातीय आरक्षण की भी चर्चा कर लेते हैं।यह बात सर्व विदित है कि बॉलीवुड में निर्माता जिस जाती का होता है, टीम में उसी जाती के लोगों की संख्या ज्यादा होती है। मुस्लिम निर्माता, पंजाबी निर्माता, भोजपुरी निर्माताओं की टीम में यह बात बढ़ चढ़कर कर देखी जा सकती है। शाहरुख के प्रोडक्शन टीम में 90 प्रतिशत मुस्लिम कलाकार व तकनीशियन होते हैं। यूपी-बिहार की भाषाई फिल्मों(भोजपुरी) में तो यादवों की भरमार हो गई है। अगर निरहुआ, खेसारी हीरो हैं तो उसी वर्ग के कलाकार प्रोडक्शन में दिखेंगे। मनोज तिवारी, रवि किशन की फिल्मों में पंडितजी लोगों की भरमार रहती है। वहां तो टॉकीजों पर भी यही नज़ारा होता है।
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गाजीपुर, आज़मगढ़ में जहां यादवों की बस्ती है वहां के थियेटरों पर निरहुआ की पिक्चर और बिहार के थिएटरों पर पवन सिंह की ऑडिएंस दिखाई देती है। पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती फिल्में भाषा के आरक्षण से बंधी हैं।सिनेमाघरों की बात कर लेते हैं।सिनेमाघर स्टारों की फिल्मों के लिए रिजर्व होते हैं। छोटे निर्माता फिल्म रिलीज करने के लिए वर्षों टाकीज ही नही पाते, उनकी फिल्में डब्बे में बंद रह जाती हैं।सलमान खान, शाहरुख खान, अक्षय कुमार की फिल्मों के लिए ईद,दीवाली और न्यू ईयर के लिए टॉकीज दो साल पहले से बुक रहते हैं। क्या फिल्म रिलीज के लिए कोई विधान नही बन सकता? यह रिजर्वेशन नही तो और क्या है? बॉलीवुड में हर स्तर पर रिजर्वेशन है। अब इसे आरक्षण का नाम दिया जाए या 'परिवारवाद', 'जातिवाद' या टॉकीजों के मामले में 'ओबीसी' कहा जाए...है तो अघोषित आरक्षण ही न!
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