टीचर्स डे स्पेशल: यह है बॉलीवुड की वो फिल्मे जिसे देख आपको याद आयेंगे अपने स्कूल के दिन By Pankaj Namdev 04 Sep 2018 | एडिट 04 Sep 2018 22:00 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर बचपन एक ऐसा समय होता है जहाँ हम खुल के मस्ती करते है जिसमे किसी भी चीज़ की कोई टेंशन नहीं होती सिवाय एक चीज़ के वो थी पढ़ाई. जिसके लिए हमे रोज़ सुबह उठकर स्कूल जाना पड़ता था. लेकिन जितना डर हमे पढ़ाई और स्कूल से लगता था. उतना ही मज़ा और मस्ती स्कूल में करने का मौका भी मिलता था. वो बोरिंग क्लास से बंक मारना, टीचर की कुर्सी पर च्युइंग गम चिपकाना, क्लास के बीच में ही लंच खाना स्कूल लाइफ एक सबसे अच्छा पार्ट होता है. वो स्कूल जहाँ हम सिखने के साथ साथ दोस्तों के साथ मौज मस्ती भी किया करते थे. जाहिर आप भी अपने स्कूल को बेहद मिस करते होंगे इसलिए आज हम आपके लिए लेकर आए वो फ़िल्में जो आपको आपके स्कूल के दिनों में ले जाएगी. तो चलिए शुरुआत करते है आमिर खान की फिल्म तारे ज़मीन पर 1. तारे ज़मीन पर (2007) आमिर खान जब भी कोई फिल्म लेकर आते है तो इस फिल्म के पीछे हमेशा एक लॉजिक होता है जिसमे से एक है तारे ज़मीन पर जिसमे एक स्टूडेंट ईशान (दर्शील सफारी) जो डिस्लेक्सिक बीमारी से पीड़ित है जिसमे उसे पढ़ने लिखने में तकलीफ होती है जिसकी वजह से क्लास के टीचर हमेशा उसे नालायक कह कर क्लास के बाहर खड़ा कर देते है. फिर उसे वो आमिर खान (राम शंकर निकुम्भ) टीचर मिलता है जो उसकी इस बीमारी से उसे बाहर लाता है बिना उसे डांटे या दुत्कारे. इस फिल्म से आपको उस टीचर की याद तो हमेशा आती होगी जिसने आपको भी बिना डांटे पढ़ाया होगा. 2. पाठशाला (2009) फिल्म बॉक्स ऑफिस पर भले ही न चली हो लेकिन इसमें शिक्षा का व्यवसायीकरण होता दिखाया गया है। संगीत शिक्षक राहुल की भूमिका में शाहिद कपूर ने दिखाया है कि किस तरह शिक्षक और छात्र मिलकर विद्यालय के प्रबंधन के खिलाफ खड़े हो सकते हैं 3. हिचकी (2018) रानी मुखर्जी की फिल्म हिचकी भी कुछ कुछ आमिर की फिल्म तारे ज़मीन से प्रेरित है लेकिन इस फिल्म में स्टूडेंट नहीं बल्कि एक टीचर यानि नैना माथुर टोर्रेट सिड्रोम बिमारी से ग्रस्त है लेकिन बावजूद इस बिमारी की वो एक अच्छी टीचर बनना चाहती है. और बच्चों को सही शिक्षा देना चाहती है. 15 स्कूल से रिजेक्शन के बाद उसे गेस्ट टीचर के लिए एक नामी स्कूल में रखा जाता है जो बिगड़ेल बच्चों के सताने और परेशान करने के बावजूद अपनी सूझ बुझ से उन्हें सही रास्ते पर ला उन्हें बेहतर स्टूडेंट बनाती है. इस फिल्म से आपको उस टीचर की याद आती होगी जिसे अपने बेहद परेशान किया होगा. 4. नील बट्टे सन्नाटा (2017) इस फिल्म में टीचर और स्टूडेंट में नहीं बल्कि माँ चंदा और उसकी बेटी अपेक्षा की कहानी है जो चाहती है की अपेक्षा पढ़ लिख कर कुछ बन जाए, लेकिन अपेक्षा का मन पढ़ाई में नहीं लगता। चंदा उसे डांटती है तो वह कहती है कि जब डॉक्टर की संतान डॉक्टर बनती है तो बाई की बेटी भी बाई बनेगी। यह सुन चंदा के पैरों के नीचे की जमीन खिसक जाती है, लेकिन वह हिम्मत नहीं हारती। अपेक्षा को गणित से डर लगता है। यह जान कर चंदा भी उसकी कक्षा में दाखिला ले लेती है। अपेक्षा को छोड़ कोई भी नहीं जानता कि चंदा ही अपेक्षा की मां है। चंदा गणित सीखती है ताकि वह अपेक्षा को सीखा सके, लेकिन चंदा के इस कदम से अपेक्षा बेहद नाराज हो जाती है। आखिर में उसे अपनी गलती का अहसास होता है और वह पढ़ाई में मन लगाती है। इस फिल्म से आपको जरुर अपनी माँ की याद आएगी जो बचपन में आपको पढ़ने में हमेशा मदद करती थी जो आपकी लाइफ की टीचर है. 5. स्टैनली का डब्बा (2011) यह कहानी है स्टैलनी की। स्टैलनी अपने स्कूल में सबसे होनहार छात्र है। उसे स्कूल के सभी टीचर प्यार करते हैं। वह कहानी कहने व कविताएं बनाने में भी उस्ताद है। उसकी एक टीम भी है। जिसके दोस्त उसे बेहद प्यार करते हैं। स्टैलनी अच्छा गाता है, अच्छा डांस करता है और अच्छी कविताएं भी बनाता है। अपनी हरकतों से ही वह औरों से अलग है। सभी टीचर्स उसकी कविताएँ पसंद करते रहत है इन्हीं शिक्षकों में से एक है वर्माजी। वर्माजी को दूसरों का डब्बा खाने की बुरी लत है। वे खुद दूसरों का डब्बा खाते हैं लेकिन स्टैलनी के डब्बे न लाने की वजह से वे उसे बातें सुनाते हैं और स्कूल से बाहर निकाल देते हैं। किन परेशानियों का सामना करने के बाद स्टैनली की जीत होती है। इस फिल्म से आपको भी अपने उस स्कूल टीचर की याद आएगी जो आपकी माँ के हाथ के खाने की तारीफ़ करते थे. क्यूँ है 6.'रॉकफोर्ड' (1999) निर्देशक नागेश कुकनूर की यह फिल्म एक किशोर की कहानी है जो एक आवसीय विद्यालय में सैकड़ों छात्रों के बीच खुद को हारा हुआ महसूस करता है। उसकी दोस्ती एक शिक्षक से होती है। फिल्म में दिखाया गया है कि शिक्षक और शिष्य के अच्छे संबंधों से शिष्य का हौसला किस कदर बुलंद होता है। इस फिल्म से आपको अपने उस टीचर की याद तो जरुर आती होगी जो 7. चाक एंड डस्टर फिल्म में मुंबई के कांता बेन हाई स्कूल की कहानी दिखाई गई है। इस स्कूल को चलाने वाली ट्रस्टी कमिटी का हेड अनमोल पारिक (आर्य बब्बर) इसे शहर का नंबर वन और ऐसा स्कूल बनाना चाहता है, जहां सिलेब्रिटीज तक के बच्चे भी पढ़ने के लिए आएं। इसीलिए अनमोल काबिल औैर अनुभवी प्रिसिंपल भारती शर्मा (जरीना वहाब) को बर्खास्त कर यंग वाइस प्रिसिंपल कामिनी गुप्ता (दिव्या दत्ता) को नई प्रिसिंपल बनाता है। कामिनी अनुभवी टीचरों को प्रताड़ित करने में लग जाती है। स्कूल की सीनियर मैथ्स टीचर विधा सावंत (शबाना आजमी) और साइंस टीचर ज्योति (जूही चावला) प्रिसिंपल की इस तानाशाही और काबिल टीचर्स का हैरसमेंट करने की नीतियों का विरोध करती हैं, तो कामिनी सबसे पहले विधा को नाकाबिल करार देकर नौकरी से बर्खास्त कर देती है। विधा को स्कूल में हार्ट अटैक पड़ जाता है और उसे अस्पताल में ऑपरेशन के लिए भर्ती कराना पड़ता है। ऐसे में ज्योति एक टीवी चैनल की रिपोर्टर भैरवी ठक्कर (रिचा चड्ढा) के साथ मिलकर टीचर्स के सम्मान और विधा को उसका हक वापस दिलाने की लड़ाई लड़ती है। तो यह वो फिल्मे है जिसे देख कर आपका भी मन फिर से स्कूल में एडमिशन लेने का मन करेगा. #HICHKI #taare zameen par #Rockford #'Nil Battey Sannata #Chalk N Duster #Paathshala #Stainly Ka Dabba हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article