/mayapuri/media/post_banners/3f3b9da63e5f35dbaccf42383f2463a44d8ed0f50f445532d47e2d42f9b1cd69.jpg)
सलमान खान के फैंस साँस रोके इंतज़ार कर रहे हैं दिवाली त्योहार के लिए, जब उनके सलमान भाई अपने अजब स्वैग के साथ उन्हे देंगे दीपावली का तोहफा यानी सलमान की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'टाइगर 3' जो दिवाली के दिन रिलीज हो रही है। इस उत्साह को दुगना करते हुए, सलमान का जिगरी दोस्त शाहरुख खान (जिसके बारे में सलमान ने कहा था कि वो हमेशा मेरे साथ खड़ा होता है) वो भी दिवाली के सरप्राइज़ गिफ्ट के रूप में फिल्म में एक विशेष कैमियो भूमिका में दुनिया को चौंकाने के लिए क्या हाथकण्डे अपना रहे हैं ये तो शुक्रवार ही तय करेगा हालांकि फ़िल्म की अडवांस बुकिंग जबर्दस्त है जो फिल्म प्रेमियों द्वारा सलमान और शाहरुख को दिवाली रिटर्न गिफ्ट बोनांज़ा के तौर पर देखा जा रहा है। सूत्रों के अनुसार , उनके फैंस अपने दोनों सुपरस्टार्स को यशराज फिल्म्स द्वारा आयोजित भव्य दिवाली समारोह में एक साथ फिर से गले में हाथ डालकर पार्टी मनाते देखने की उम्मीद कर रहे हैं। सलमान और शाहरुख का यह गठबंधन, शाहरुख की ब्लॉकबस्टर फ़िल्म 'पठान' में उनकी सफल जोड़ी के बाद सबको सूझा , जिसने चार साल के ब्रेक के बाद शाहरुख की वापसी को चिह्नित किया। मनीष शर्मा द्वारा निर्देशित 'टाइगर 3' इस त्योहारी सीजन में हिंदी भाषियों, तमिल भाषियों और तेलुगु भाषियों के लिए एक हंड्रेड परसेंट ट्रीट है। फिल्म में सलमान के साथ कैटरीना इतने सालों बाद कितनी जचेगी यह प्रश्न बाकी है। इमरान हाशमी हालांकि इस फ़िल्म में महत्वपूर्ण भूमिका में हैं फिर भी उन्हे कैटरीना और सलमान के सामने टिकना कितना भारी पड़ेगा ये वक्त बताएगा । दिवाली पार्टी में वाईआरएफ जो अक्सर अपने प्लांस को गुप्त रखने के लिए जाने जाते हैं, अपना पिटारा खोल देंगे। क्या सलमान को घबराहट हो रही है?
जी नहीं, जो डर जाए वो सलमान ही क्या? सलमान का कहना है, "कठिन मेहनत करना हमारे हाथ में है, बाकी हमारे हाथ में नहीं। जनता फैसला करें।"
इस बार सलमान खान के लिए दिवाली एक कसौटी है उनके प्रति उनके चाहने वालों की वफादारी की ओर से। सलमान चाहते तो इस फ़िल्म को ईद पर भी रिलीज़ कर सकते थे लेकिन उनके लिए ईद, दिवाली, होली, न्यू ईयर, सब सेम सेम है, उन्होने कहा था," मेरे लिए मेरे दर्शक सर्वोपरि है, उन्हे किसी भी त्योहार पर गिफ्ट देना मुझे पसंद है।"
सलमान खान ईद और दिवाली, होली और न्यू ईयर, या फिर क्रिस्मस, हर खुशी के मौकों को अटूट उत्साह के साथ मनाते हैं। सिर्फ सलमान ही नहीं, उनका पूरा परिवार समान उत्साह के साथ इन उत्सवों में भाग लेतें है, जिससे इन त्योहारों में उनका घर एक जीवंत और असाधारण माहौल से भर जाता है।
सलमान के साथ, मेरी मुलाकात महबूब स्टूडियो में ठीक दिवाली त्योहार के पहले हुआ था। उन दिनों वे माधुरी दीक्षित के साथ फ़िल्म कर रहे थे। उन्होने बताया था कि किस तरह वे दिवाली के दिन अपने घर के बड़े बुजुर्ग से दिवाली खर्ची लिया करते थे और ईद पर उन्हे अच्छी खासी ईदी मिला करती थी। जब वे बहुत छोटे थे और घर में पैसों की तंगी थी, लेकिन तब भी अम्मी जान उन्हे हर तीज त्योहारों में एंजॉय करने के लिए कुछ न कुछ जेब खर्च जरूर दिया करती थी।
आज वही इतिहास फिर से दोहराई जा रही है। सलमान की भतीजी और भतीजे, भांजे, भांजियों इन अवसरों का उत्सुकता से इंतजार करते हैं, क्योंकि उन्हें सलमान चाचू, सलमान मामू से ईद के दौरान ईदी और दिवाली के दौरान खर्ची प्राप्त करने की आनंददायक परंपरा का आनंद मिलता है। इस खूबसूरत परम्परा के परिणामस्वरूप सलमान के घर के बच्चों को साल में एक बार नहीं, बल्कि दो बार उत्सव के उपहार मिलते हैं, यह एक ऐसी प्रथा है जो उनके दिलों को त्योहारी खुशी और उत्साह से भर देती है। बात जब पटाखों की चली तो सलमान ने मुझे बताया कि अब वे पटाखे बिल्कुल नहीं फोड़ते लेकिन बचपन में वो खूब पटाखें फोड़ा करते थे, मम्मी पापा जितना पैसा देते थे, या वे लोग जितने भी डब्बे पटाखों का लेकर आते थे वो भी सलमान और उनके भाईयों को कम पड़ता था। सलमान जले हुए पटाखों में से ढूंढ ढूंढ कर अधजले पटाखे चुन कर घर ले आते और दोबारा उन्हे जलाते या उसमें से आधे जले पटाखों में से मसाला निकाल कर कागज़ पर डाल देते और फिर कागज़ में आग लगा देते थे। इन्ही बातों में याद आया था दिवाली की एक घटना जो सलमान के जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव ले आया था।। यह उन दिनों की बात है जब वे छह साल के बच्चे थे। इंदौर में रहते थे। पापा सलीम खान (मशहूर लेखक, फ़िल्म कहानीकार) ने अभी तक बॉलीवुड में ठीक से पांव नहीं जमाए। पैसों की कमी रहती थी। मुंबई में नए नए शिफ्ट हुए थे। वो दिवाली का दिन था, एंजॉय करने के लिए उन्हे कई डिब्बे पटाखें, पापा ने ला कर दिए थे। लेकिन सारे भाईयों ने मिलजुल कर देखते ही देखते कुछ ही घंटो में सारे पटाखे फूंक डाले। दिल फिर भी नहीं भरा। क्या करे? उन सबने इधर उधर से कागज़ चुन चुन कर उसमें आग लगा कर मजा मारना शुरू किया । जब घर में उन्हे कोई और कागज़ बचा नहीं मिला तो सलमान ने पापा के लिखने वाले टेबल में छापा मारा। वहां उन्हे दराज में एक बंडल बंधा हुआ छोटा सा कागज़ का बंडल मिल गया। सब बच्चे खुशी से नाच उठे। फटाफट बंडल उठाई और बाहर जाकर उसमें आग लगा दी। बंडल धू धू करके जलने लगा। सबने तालियाँ मारी। लेकिन शाम होते होते घर का माहौल बदलने लगा। पापा सलीम बहुत परेशान दिख रहे थे और ढूंढ रहे थे उस काग़ज़ के बंडल को, पूरा घर उलट पुलट हो गया। सब उस बंडल को ढूंढने में लगे हुए थे। एक तरह से बड़ी अफरा तफरी मची थी।
दरअसल बच्चों को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उस शाम उन्होंने कागज के जिस बंडल में आग लगाई थी, वो कागज़ का बंडल नहीं था बल्कि उनके पिता, लेखक सलीम खान की पूरी मासिक तनख्वाह रु. 750 थी। यह समझ में आते ही सलमान और उनके भाईयों की घिस्सी पीट्टी गुम हो गई और डरते डरते बच्चों ने कबूल किया कि उन रुपयों को उन सबने काग़ज़ समझ कर स्वाहा कर दिया था। इस गलती का अहसास गंभीर परिणाम दे सकता था, लेकिन सलीम खान ने अलग रास्ता चुना। अपने बच्चों को दंडित करने के बजाय, उन्होंने शांति और धैर्यपूर्वक पैसे के महत्व, और उन पैसों से परिवार के लिए सामान खरीदने, पेट भरने, स्कूल फीस देने की बात गंभीरता से समझाई। सलमान, जो अपने भाई-बहनों में सबसे बड़े थे, उस दुर्भाग्यपूर्ण रात अपने पिता की बुद्धिमत्तापूर्ण शिक्षाओं से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सीखी हुई सीख को कभी न भूलने की कसम खाई।
एक और घटना सलमान ने मायापुरी के दिवाली अंक के लिए मुझसे शेयर किया था। महबूब स्टूडियो के गार्डन के पास एक स्टैंड की हुई मोटर साइकिल पर बैठे बैठे सलमान ने बचपन में दिवाली की एक भयानक घटना के बारे में बताया। उन्होने कहा, "हम सब पटाखों के इतने शौकीन थे कि दिवाली के चार दिन पहले से और चार दिन बाद तक पटाखें खरीद खरीद कर जलाया करते थे और डेयरिंग इतनी थी कि बड़े बड़े बम पटाखों की लड़ियां हाथों में लेकर फोड़ा करते थे। उस जमाने में मेरे बाल लम्बे लम्बे थे। मेरे माथे पर मेरे बाल झुके होते थे। एक बार जैसे ही मैंने झुक कर हाथों में बम लड़ी में आग लगाई, मेरे बालों में आग लग गई। बाल धू धू करके जलने लगे। फिर से अफरा तफरी मच गई। तुरंत किसी तरह आग को बुझाया गया और मेरा स्किन जलने से बच गया। उसके बाद मेरे परिवार वाले पटाखों को लेकर स्ट्रिक्ट हो गए। बचपन के यह खट्टे मीठे किस्से सलमान के यादों में हमेशा के लिए बसी है।
सलमान के लिए दिवाली हालाँकि, सिर्फ एक भव्य उत्सव नहीं हैं जो सलमान खान की जीवन यात्रा को परिभाषित करते हैं बल्कि यह उनकी परोपकारी भावना और उनका मार्गदर्शन करने वाले मूल्यों के सार को समझने के लिए भी एक सुंदर अवसर है।
सलमान खान, जो आज स्टारडम के पर्याय बन गए है, उनका जीवन एक समय मध्य प्रदेश के इंदौर में अपने शुरुआती जीवन के साधारण सुखों से भरे हुए थे जो उन्होंने अपने चचेरे भाइयों के साथ बिताया, जब वे पेड़ों पर चढ़ते थे, अमरूद तोड़ते थे, और अपने उन लापरवाह दिनों में मौज मस्ती से हर त्यौहार मनाया करते थे।
एक और प्रेरक घटना सलमान के सुंदर, साफ और दयालु दिल का परिचय देता है। बांद्रा के सेंट स्टेनिसलॉस हाई स्कूल, में जब वे पढ़ते थे तो स्कूल के प्रिंसिपल ने ऐसे ही किसी त्योहार के खास मौके पर संपन्न छात्रों से आपस में एकजुटता और सौहार्द बढ़ाने की भावना को बढ़ावा देने के लिए अपने गरीब सहपाठियों को भोजन के लिए अपने अपने घरों में आमंत्रित करने के लिए कहा। बिना एक पल सोचे और बिना किसी हिचकिचाहट के, नन्हे सलमान खान अपने स्कूल के सात गरीब स्टूडेंट्स को अपने घर खाने पर निमंत्रित करने के लिए आगे बढ़ने वाले पहले छात्र थे, केवल उस दिन के लिए नहीं, बल्कि नियमित रूप से उन्होने अपने गरीब, वंचित दोस्तों को घर पर खाना खाने के लिए आमंत्रित करना शुरू किया, जो उस कच्ची उम्र के सलमान खान के उदार भावना का प्रमाण था और उनके परिवार का विशाल हृदय और सुंदर संस्कार का परिचय भी था।
इन प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने अपने साइकिल चलाने के कौशल को भी निखारा और दूर दूर तक जाकर दिवाली के जश्नों को निहारा और सबसे चुनौतीपूर्ण इलाकों में भी पैडल मारने में महारत हासिल की।
अपने शुरुआती नटखट अनुभवों के साथ सलमान खान बड़े होते रहे, हर अनुभव उनके दिल पर एक अमिट छाप छोड़ती रही , जिससे उनके विशाल परोपकारी प्रयासों का मार्ग प्रशस्त होता रहा। "बीइंग ह्यूमन" समाज में उनके सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक है, जो उनके दयालु स्वभाव का प्रतिबिंब है। दिवाली हो या होली, ईद हो या क्रिस्मस, या कोई कारण ना भी हो, सलमान मुक्त हस्त से अपने परिश्रम से कमाए पैसों से दान करते रहते हैं, बच्चों को, अनाथ शिशुओं को, अनाथ बुजुर्गों को वे खुलकर मदद करते हैं। कोरोनोवायरस प्रकोप के चुनौतीपूर्ण समय के दौरान फिल्म उद्योग के 25,000 दैनिक वेतन भोगी श्रमिकों को आर्थिक रूप से मदद देने का उनका कार्य सकारात्मक प्रभाव डालने की उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है जो किसी तीज त्योहार का मोहताज नहीं है।
आज अक्सर वे दिवाली, होली मुंबई के गरीब बच्चों के साथ मनाते हैं। अक्सर कैंसर अस्पताल में जाकर हर तीज त्योहार या बिना किसी त्योहार के भी वे ढेर सारे उपहार बांटते हैं, जिन-जिनको महंगी दवाइयां या महंगे सर्जरी की जरूरत है उनके दवाईयों और सर्जरी का पूरा खर्च उठाते हैं। पिछली बार बांद्रा के स्लम इलाके में जाकर उन्होने धारावी रॉक्स नामक बैंड के बच्चों के साथ दिवाली मनाई थी। इन बच्चों ने बेकार पड़ी बाल्टी, पुराने डिब्बे, लकड़ी के तख्ते जैसी कबाड़ चीजों की मदद से संगीत यंत्र बनाया था जिसे सलमान खान ने भरपूर सपोर्ट किया।