इस वर्ष भारत का 50वां फ़िल्म समारोह गोवा के पणजी शहर में 20 नवंबर से शुरू होने जा रहा है By Mayapuri Desk 06 Oct 2019 | एडिट 06 Oct 2019 22:00 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर इस वर्ष भारत का 50वां फ़िल्म समारोह गोवा के पणजी शहर में 20 नवंबर से शुरू होने जा रहा है, आइये जानते हैं कि इस समारोह में क्या कुछ नया होना चाहिए ? भारत का अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह धीरे धीरे दुनिया भर में अपना प्रमुख स्थान बनाने की कोशिश कर रहा है। समारोह में प्रतिनिधियों तथा पत्रकारों तथा जनसामान्य की बड़ी भागीदारी रहती है। लोगों को 50वें फ़िल्म समारोह से क्या अपेक्षा है, ये जानने के लिए कुछ पत्रकारों और जनसमान्य लोगो से बातचीत की, प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश- ब्रजभूषण चतुर्वेदी उर्फ बी.बी.सी.- बी.बी.सी.एक वरिष्ठ इंदौर के पत्रकार हैं, उनका 50वां अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह होगा। उन्होंने समारोह के बारे में बताया कि हम लोग इतना पैसा खर्च करके समारोह का हिस्सा बनने आते है, लेकिन सुविधाएं कुछ भी नहीं दी जाती है। जब ये समारोह रोमिंग में था तब फिल्मो को देखने मे मजा आता था अब हर साल केवल गोवा ही आना पडता है I अब एक साथ सभी लोगों को स्क्रीनिंग हॉल में छोड़ दिया जाता है, जिससे हम वरिष्ठ पत्रकारों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है। पत्रकारों को सहूलियत होनी चाहिये। मोहन सिराय मुंबई :- मोहन सिराय मुम्बई के एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, उन्होंने बताया कि परिवहन व्यवस्था गड़बड़ रहती है, आईनॉक्स से अगर कला अकादमी जाना है तो आधी दूर पैदल चलकर परिवहन मिलता है। अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह के दौरान गोवा के होटल के दाम सातवे आसमान पर होते है। हम लोग बाहर से आते है, तो स्थनीय होटल वाले सोचते है कि कोई और दूसरा रास्ता तो है ही नही, रुकना तो पड़ेगा। जो हम दाम मांगेंगे देना होगा। हमारी मांग है कि एक दाम निश्चित कर दें, यहां का प्रशासन ताकि हर साल दाम नही बढे। कंचन समर्थ मुंबई :- महिला पत्रकार इनको भी मुम्बई से आना पड़ता है, और काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इनका कहना है कि अगर मीडिया डेक्स पर निमन्त्रण पत्रो की जानकारी लो कि कब बाटें जाएंगे। अभी नही बटेंगे, थोड़ी देर में आयी और प्रेस वार्ता, फिल्मों को छोड़कर बार बार आना कठिन हो जाता है।ये व्यवस्था में काफी सुधार चाहती है। गोवा के पत्रकारों में और बाहर के पत्रकारों में भेदभाव खत्म करना चाहिए। पहले प्राथमिकता गोवा के पत्रकारों को दी जाती है। ये खत्म होना चाहिये, सबको एक समान देखना चाहिए। मोहत्सव परिसर में खान पान बहुत अधिक महंगा रहता है, एक तो अपने खर्च पर आओ, मोहत्सव के दौरान हर चीज महँगी हो जाती है, चाहे होटल हो या वहाँ का खान पान सभी के दाम ऊंचाई छू रहे होते हैं। इसलिए प्रशासन को कीमतों में समानता लानी चाहिए। ये आशा करती हैं कि 50वां फ़िल्म समारोह में व्यवस्था सही होंगी। रमाकांत मुंडे मुंबई :- रमाकांत फिल्म इंडस्ट्री के जानेमाने फोटोग्राफर है, इनका का कहना है कि, साइड सीन के लिए हर से इस समारोह में आने की एक वजह पार्टी भी थीं।जिससे लोगों मे आने का उत्साह होता था, क्योंकि पार्टियों का एक अपना क्रेज था। फिल्मी सितारों के भागीदारी की कमी का होना है, ये एक खराब बात है फिल्मी सितारों को ज्यादा से ज्यादा आना चाहिए। प्रेस वार्ता के दौरान एक हिंदी का अनुवादक होना चाहिए, जो अन्य भाषाओं का हिन्दी में अनुवाद कर सके। फिल्म इंडस्ट्री को ज्यादा से ज्यादा अपनी उपस्थिति दर्ज करानी चाहिए। अब हम आशा करते हैं कि इस साल भारत का 50वां अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह अपनी पिछली गलतियों को सुधार कर और ऊचाई पर जाने की कोशिश करेगा। ज्योति व्यंकटेश मुंबई :- इनका कहना है कि हम लोग का फ़िल्म समारोह के दौरान ठहरने से लेकर खाने तक का बहुत खर्चा हो जाता है। हम ठहरने पर इतना पैसा खर्च करते हैं तो कम से कम एक टाइम खाना तो फ्री होना चाहिए। जो पत्रकार हर साल आते है और समारोह को ब्रेक नही करते है अपनी महत्वपूर्ण कवरेज देते है उन पत्रकारों के लिए एक पुरस्कार होना चाहिए। जिससे पत्रकारों में समारोह कवर करने की एक लालसा रहे। नेम सिंग मुंबई :- नेम सिंग एक डेलीगेट के रूप में अपना रजिस्ट्रेशन कराते हैं। लेकिन इनका कहना है कि हर बार फेस्टिवल में लचर व्यवस्था रहती है। मीडिया और डेलीगेट की अलग अलग लाइन होनी चाहिए। फ़िल्म स्क्रीनिंग के लिए एक साथ छोड़ देते हैं। जिसमे धक्का मुक्की देखने को मिलती है। अगर आप किसी बेहतरीन फ़िल्म का प्रदर्शन कर रहे है, तो उसे कला अकादमी में करना चाहिए क्योंकि आइनॉक्स का हॉल छोटा पड़ जाता है। करण समर्थ मुंबई :- करण कहते है कि हमने ही कोशिश करके हिंदी बुलेटिन शुरू करवेया था जो कुछ सालों तक हिंदी बुलेटिन छपते थे, अब बन्द हो गए हैं I फिर से इसे शुरू करना चाहिए।जब ये समारोह रोमिंग में था तब फिल्मो को देखने के लिए पत्रकारों की अलग व्यवस्था होती अर्थात कुछ सीट पत्रकारों के लिए रिज़र्व होती थी। अब एक साथ सभी लोगों को स्क्रीनिंग हॉल में छोड़ दिया जाता है, जिससे पत्रकारों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है। पत्रकारों को सहूलियत होनी चाहिये। पत्रकारों के लिए हर वर्ष एक पुरुस्कार होना चाहिए। न्यूज :- रमाकांत मुंडे मुंबई, नम्रता शुक्ला लखनऊ. #फिल्म इंडस्ट्री #50वां फ़िल्म समारोह #Goa 50th International Film Festival #Panaji city of Goa #अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोह #पत्रकार हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article