श्रद्धांजलि सतीश कौशिक... और कलेंडर पर पड़े रंग के छीटों ने तस्वीर को धुंधला दिया!

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By Sharad Rai
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श्रद्धांजलि सतीश कौशिक... और कलेंडर पर पड़े रंग के छीटों ने तस्वीर को धुंधला दिया!

यह खबर... उन तीनों दोस्तों में से एक के चले जाने पर बाकी दो पर कैसी गुजरी होगी! सोच कर ही दुख होता है. ये तीन दोस्त थे सतीश कौशिक, राजा बुंदेला और राजू मनवानी. तीनों मुम्बई आए थे फिल्मों में काम करने और अपने फिल्मी स्ट्रगल को एक साथ एक कमरे में कैसे  गुजारे थे, बड़े रोचक किस्से हैं. कौन किसकी जेब से पैसे ले लेता था , कौन किसकी शर्ट पहन लेता था... ! फिर फिल्म का स्ट्रगल करते हुए तीनो अपनी अपनी मंजिल तलासते अलग दिशाओं में चल पड़े. लेकिन, सोच वही रही ! जब भी मैं इन तीनों में से किसी को मिला, किस्से वही रहते थे. आज उन कहानियों का एक किरदार निकल गया है. अभिनेता, निर्देश, लेखक सतीश कौशिक नहीं रहे ! रह गयी सिर्फ कहानियां.

जिंदगी को जिंदादिली से जीने वाले सतीश कौशिक सबके दोस्त थे.  होली का रंग वह मुम्बई में शबाना आज़मी और जावेद अख्तर के  जुहू स्थित जानकी कुटीर वाले घर पर मनाते हैं. यहां महिमा चौधरी, ऋचा चड्ढा, अली फजल के साथ होली मनाते बच्चे से हो जाते हैं फिर जावेद अख्तर के साथ फोटो पोज देते कॉमेडियन की छबि से निकलकर बौद्धिक अवतार में आ जाते हैं. कहते हैं मौत जहां होनी होती है खींच ले जाती है. 7 मार्च को मुम्बई की होली खेलने के बाद  8 मार्च को उनको दिल्ली की होली अपने यहां खींच ले जाती है जहां किरोडीमल में साथ पढ़े दोस्त मिलने वाले होते हैं. फिर 9 मार्च की सुबह देखने के लिए वे दूसरी दुनिया मे पहुंच चुके होते हैं ! दिल की रफ्तार  ने उनकी ज़िंदगी की रफ्तार पर रोक लगा दिया सदा सदा के लिए...

सतीश कौशिक ने बहुत सी फिल्मों में काम किया , रोल भले छोटा था, दिल डूबा कर काम किया. उनकी पिछली फिल्म थी 'छतरीवाली' निर्देशन भी किए तो डूब कर चरित्रों को खोजा. लेखन भी किए और कास्टिंग की कमान भी संभाले. वह अनिल कपूर के अच्छे मित्र थे.  'मिस्टर इंडिया' की परिकल्पना में शेखर कपूर उनको कास्टिंग इंचार्ज बना दिए थे. एक रोल था नौकर का. अनिल कपूर, श्री देवी, अमरीश पुरी स्टारर फिल्म में सतीश चाहते थे खुद कोई रोल करें. उनको नौकर का रोल अपने दिल के करीब लगा जिसे वह खुद 'कलेंडर' नाम दिए थे. इस रोल के लिए वह कलाकारों को चुनते समय सबको रिजेक्ट कर देते थे.जब अनिल कपूर को पता चला कि कलेंडर उनके बचपन मे घर आनेवाले किसी ब्यक्ति का तकिया कलाम था, अनिल ने कहा- तुम्ही कर लो, फिर तो पर्दे पर कलेंडर के नाम से सतीश कौशिक को खूब पॉपुलोरिटी मिली.

मजबूत हो गया उनके अंदर का एक्टर. वह काम करते चले गए. तेरे नाम, कागज, रूप की रानी चोरों का राजा, थार, लक्ष्मी, हम आपके दिल मे रहते हैं, हमारा दिल आपके पास है,  प्रेम, कर्ज आदि. निर्देशन भी किए तो पूरी कमांड के साथ. हरियाणा के महेंद्रगढ़ से आकर शेयरिंग के कमरे में तीन दोस्तों के साथ रहने वाला बंदा  तेरे नाम, कागज, रूप की रानी चोरों का राजा, हमारा दिल आपके पास है, प्रेम, मिलेंगे मिलेंगे, बधाई हो, मुझे कुछ कहना है जैसी फिल्मों का निर्देशन करेगा, खुद सतीश ने भी कभी नही सोचा था. एकबार वह बोले थे-"पता नहीं सब कैसे हो गया." लेकिन... 'कलेंडर' हंसते हंसते सब कर गया.

जीवन के रंगों में विविधता खोजने वाला यह सितारा चलते चलते चल बसा! अपने सपनों के शहर मुम्बई और दिल्ली की होली खेलते खेलते  ऊपर पड़े रंगों को नहीं संभाल पाए. कलेंडर पर पड़े छीटों ने आज उनके जीवन की तस्वीर को धुंधला दिया है. आमीन!

अलविदा सतीश !!

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