Anantika Sahir: TV और OTT दोनो माध्यम के अपने अपने दर्शक हैं

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By Shanti Swaroop Tripathi
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 ‘‘नच बलिए 4’’ में अपने पति, टीवी अभिनेता व निर्माता सुदीप साहिर संग नजर आ चुकी अनंतिका साहिर अब लेखक बन चुकी हैं। सुदीप साहिर को लोगों ने ‘क्यों होता है प्यार’, ‘जब लव हुआ’, ‘बहनें’, ‘वह अपना सा’ व ‘तेरा ष्यार हॅूं’ जैसे सीरियलां में पसंद कर चुके हैं।
    वहीं अनंतिका साहिर ने बतौर लेखक ‘स्टार प्लस’ के सीरियल ‘नाव्या’ से करियर की शुरूआत की थी। इससे पहले वह लेखन में गौतम हेगड़े के साथ बतौर सहायक लेखक सीरियल ‘साथ निभाना साथिया’ का लेखन किया था। इसके बाद उन्होंने विषकन्या और नीमा डेन्जोंगपा व  हार जीत जैसे सीरियल लिखे।
    कुछ लोग ओटीटी प्लेटफॉर्म को टीवी के लिए खतरा मानते हैं। जबकि टीवी में इन दिनों विभिन्न प्रकार की सामग्री का उत्पादन किया जा रहा है। कई लोगों का मानना है कि यह बदलाव ओटीटी से हो रहे कॉम्पिटिशन और दर्शकों की देखने की बदलती आदतों की वजह से आया है। जबकि लेखक अनंतिका साहिर टीवी और ओटीटी के बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं मानती। वह कहती हैं-‘‘देखिए, टीवी का दर्शक अलग है। जबकि ओटीटी प्लेटफार्म के दर्शक अलग हैं। दोनों माध्यम अपने लक्षित दर्शकों को पूरा करने में सक्षम हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कुछ दर्शक दोनों माध्यमों को देखना पसंद करता है, लेकिन ऐसा इसलिए है, क्योंकि वह दोनों माध्यम में अपने पसंदीदा कार्यक्रम ही देखते हैं। जबकि मैं इस बात से सहमत हूं कि ओटीटी पर सामग्री बहुत अलग ढंग की है और ओटीटी प्रारूप के निश्चित जीवन के कारण, कहानियां स्पष्ट और सीमित हैं। हालांकि, अब कई ओटीटी प्लेटफॉर्म्स असल में लॉन्ग-फॉर्मेट शोज बना रहे हैं। ओटीटी निश्चित रूप से भविष्य है, लेकिन टेलीविजन भी उस भविष्य का एक हिस्सा है।’’

    अनंतिका साहिर आगे कहती हैं - ‘‘जब टीवी दर्शकों की बात आती है, तो निश्चित रूप से ग्रामीण और शहरी विभाजन होता है। दोनों में संतुलन बनाने की कोशिश करना काफी चुनौतीपूर्ण होता है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ‘नागिन’ जैसे अलौकिक सीरियलों ने वास्तव में अच्छा प्रदर्शन किया है और ग्रामीण और शहरी दोनों बाजारों में दर्शकों द्वारा पसंद किया गया है। यहां तक कि जब हम फिल्मों के बारे में बात करते हैं, तो कांटारा, भूल भुलैया और ब्रह्मास्त्र हमारे दर्शकों द्वारा अलौकिक सामग्री को प्यार करने और स्वीकार करने के बड़े उदाहरण हैं। दुनिया भर में अलौकिक सीरियल व वेब सीरीज बनाए जाते हैं और बहुत सारी अवास्तविक चीजें की जाती हैं क्योंकि यह प्रकृति में एक ‘फंतासी‘ है। टेलीविजन तंग बजट और समय सीमा पर काम करता है, यही वह जगह है जहाँ समस्या कभी-कभी होती है। ”

कहा जा रहा है कि ‘महाभारत’ और ‘देवों के देव महादेव’ के साथ जिस तरह से पौराणिक सीरियलों की लहर शुरू हुई थी,धीरे धीरे वह लहर खत्म होती जा रही हैं। इस संबंध में अनंतिका साहिर कहती हैं-‘‘मुझे लगता है कि पौराणिक कथा हमेशा कुछ ऐसी होती है जिससे हमारे दर्शक जुड़ते हैं और यह हमेशा के लिए प्रासंगिक है। भगवान कृष्ण, साईं बाबा जैसे कई शोज अब तक ऑन एयर हो चुके हैं। मुझे लगता है कि पौराणिक कथाओं के लिए बहुत सारे शोध कार्य और विस्तृत सेट अप की आवश्यकता होती है, लेकिन यह निश्चित रूप से एक शैली है जो धीमी हो सकती है और निश्चित रूप से समाप्त नहीं हुई है।”

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