आज मशहूर तबला वादक ज़ाकिर हुसैन (Zakir Hussain) का 72वां जन्मदिन है. वो जब अपने हाथों और उंगलियों की थाप से तबला बजाते है तो सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते है. उनके तबले को सुनकर लोग मदहोश हो जाते है और कहते है 'वाह उस्ताद'. देश ही नहीं दुनियाभर में ज़ाकिर ने अपनी कला का परचम लहराया है. इतनी प्रसिद्धि के बाद भी उस्ताद सादगी से रहना पसंद है. वह अक्सर ज़मीन से जुड़े रहना पसंद करते है. कई संघर्षो के बाद उन्होंने आज ये मुकाम हासिल किया है. आज उनके जन्मदिन के मौके पर उनसे जुड़ी कुछ ख़ास बातें जानते है...
ज़ाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था. उनके पिता तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा है. तबला बजाने का यह हुनर ज़ाकिर को अपने पिता से विरासत में मिला है. बचपन से ही उन्होंने पूरी लगन से वाद्य बजाना सीखा. मात्र तीन वर्ष की उम्र में उन्होंने पखावज बजाना सीख लिया था. यह कला उन्होंने अपने पिता से सिखी थी. 11 वर्ष की उम्र में उन्होंने अमेरिका में अपना पहला कॉन्सर्ट किया था. साल 1973 में अपना पहला एल्बम 'लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड' लॉन्च किया.
कम उम्र में ही ज़ाकिर ने तबले पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी. उन्होंने 11-12 साल की उम्र में तबला बजाने का सफर शुरू कर दिया था. कॉन्सर्ट के लिए वह जगह-जगह यात्रा करते थे. उन्होंने अपने तबले को सरस्वती मान और उसकी हिफाज़त और इबादत में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी. ज़ाकिर ने बताया था कि उनके पास ट्रेन के आरक्षित कोच में यात्रा करने तक के लिए पैसे नहीं होते थे. इसी वजह से उन्हें ट्रेन के भीड़ वाले कोच में सफर करना पड़ता था.
ट्रेन में बैठने के लिए उनके पास आरक्षित सीट नहीं होती थी, तो वह ज़मीन पर अखबार बिछाकर बैठते थे. तबले को वह अपनी गोद में रखकर बैठते थे ताकि किसी का पैर या जूता उस पर ना लगे. जब तक उनका सफर खत्म नहीं हो जाता था, वह तबले को एक बच्चे की तरह गोद में उठाए रखते थे. पैसों की कमी के कारण वो अपने परिवार से भी मिलने नहीं जा पाते थे. संघर्षो के बाद जब उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आया, तब वह अपनी संगीत यात्रा में से कुछ समय निकालकर परिवार से मिलने जाते थे.
तमाम कठिनाइयों को पार करने के बाद उन्होंने दुनिया भर के लोगों के दिल में अपनी जगह बनाई. उनका तबला सुनके लोग एक दूसरी दुनिया के सफ़र का आनंद लेते है. उस्ताद का भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. उस्ताद जाकिर को साल 1988 और साल 2002 में पद्मभूषण से समानित किया गया था. 2009 में उन्हें संगीत के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार ग्रैमी अवॉर्ड से भी नवाज़ा गया.