हम अपनी फिल्म ‘लकड़बग्घा’ से संदेश देना चाहते है कि हर इंसान मूक जानवरों के साथ प्यार से पेश आए: Victor Mukherjee By Shanti Swaroop Tripathi 14 Jan 2023 | एडिट 14 Jan 2023 11:03 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर वेब सीरीज निर्देषित करने के बाद अब विक्टर मुखर्जी पहली फीचर फिल्म ‘लकड़बग्घा’ लेकर आ रहे हैं, जो कि एक पषु प्रेमी विजिलेंट के बारे में हैं. तेरह जनवरी को प्रदर्षित हो रही फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ का निर्माण ‘फस्ट रे प्रोडक्षन’के बैनर तले अशुमन झा ने किया है. जबकि इसमें मुख्य किरदार में अंषुमन झा के साथ इक्षा केरुंग,रिद्धि डोगरा,परेष पाहुजा,मिलिंद सोमण व अन्य कलाकार हैं. प्रस्तुत है विक्टर मुखर्जी से हुई बातचीत के अंष... फिल्मों की तरफ आपका झुकाव कैसे हुआ? मैं मूलतः कोलकाता से हॅूं. तो स्वाभाविक तौर पर मुझे बचपन से ही साहित्य व संगीत का माहौल मिला है. आपको पता है कि पष्चिम बंगाल में नृत्य व संगीत का समृद्ध कल्चर है. वैसे मेरे पिता जी का अपना पैतृक व्यवसाय रहा है. मेरे साथ ज्यादातर समय मेरे छोटे मामा जी ही बिताते थे. जब मैं पांच वर्ष का था, तब पहली बार वह मुझे लेकर फिल्म देखने गए थे. मैने 1987 या 1988 में पहली फिल्म ‘तेजाब’ देखी थी. मुझे आज भी इस फिल्म का दृष्य याद है-चंकी पांडे के किरदार की मौत होनेे पर वह ‘मुन्ना’ चिल्लाकर मरता है. तब से मैं फिल्में देखता आ रहा हॅूं. उन दिनों तो मैं हर प्रदर्षित होने वाली फिल्में देखता था. जब से इस क्षेत्र में आया हॅूं, तो कुछ फिल्में नही देख पाता. वैसे भी इन दिनों फिल्में कुछ ज्यादा बन रही हैं. वेब सीरीज बन रही हैं. मैं तो मायापुरी,स्क्रीन, सिने ब्लिट्ज जैसी पत्रिकाएं पढ़कर ही बड़ा हुआ हॅूं. रेडियो पर गाने सुना करता था. तो बचपन से ही मुझे फिल्मों का ही बेहद षौक रहा है. पष्चिम बंगाल के कल्चर के अनुरूप बचपन से थिएटर व नाटक भी किया करता था. फिर मैने बंगलोर से एडवरटाइजिंग में पोस्ट गे्रजुएषन किया. उस वक्त मैने फिल्म विधा की भी पढ़ाई की. एडवरटाइजिंग का कोर्स करने के दौरान ही ख्याल आया कि एड फिल्म से कहीं ज्यादा रोचक तो फीचर फिल्म बनाना होगा. क्या आपने निर्देषन की कोई ट्ेनिंग ली है? जी हाॅ! मैंने पहले ही बताया कि मेरी मार्षल की डिग्री फिल्म मेकिंग में ही थी. तो तकनीकी ज्ञान षुरू से ही था. देखिए, तकनीक तो कोई भी सिखा सकता है. मगर कहानी कहना कोई ही सिखा सकता. यह तो हर इंसान के अंदर होती है. हर इंसान का कहानी कहने का अंदाज अलग होता है. षायद बचपन से ही नाटक करते करते मैं कहानी कहना सीख गया था. लिखना कब से षुरू किया था? मेरी षिक्षा बंगला भाषा में हुई है. फिर अंग्रेजी मंे हुई. इसलिए यह दोनो भाषाएं मुझे बहुत अच्छी आती हंै. पर मैने हिंदी तो बाॅलीवुड फिल्में देखते हुए ही सीखी. मैने 2014 से कहानी व गाने लिखना षुरू किया था. मैने कोक स्टूडियो के लिए एक गाना ‘तेरे नाम’ लिखा था, जिसे कैलाष खेर ने गाया था. षान के लिए एक गाना लिखा. श्रुति पाठक के लिए गाना गाया. लघु फिल्म व ‘वूट’ के लिए वेब सीरीज ‘लव लस्ट एंड कंफ्यूजन’ लिखी. उसके बाद फिल्म की कहानी व पटकथा लिखना षुरू किया. जैसे जैसे मेरा आत्मविष्वास बढ़ता गया, वैसे वैसे लेखन की गति बढ़ती गयी. मंुबई पहुॅचने के बाद पहला ब्रेक कब कैसे मिला था? मुझे एक मित्र की मदद से सबसे पहले ‘कैंटिलो फिल्मस’ में बतौर सहायक निर्माता काम करने का अवसर मिला था. वास्तव में मैं बंगलोर में पढ़ाई करने के साथ ही एक एड एजंसी में नौकरी भी कर रहा था. मंुबई में एनीमेषन फिल्म ‘महायोद्धा रामा’ के राष्ट्ीय अवाॅर्ड से सम्मानित निर्देषक रोहित वैद्य मुझे काॅलेज में पढ़ाने आए थे. लेक्चर के बाद उनसे मेरी काफी बातें हुआ करती थी. वह कौंटिलो फिल्म के साथ जुड़े हुए थे. उन्होेने ही मुझे ‘कौंटिलों फिल्मस’ के साथ जोड़ा था. कौंटिलो के मालिक अभिमन्यू सिंह ने मुझे बहुत प्यार व अपनापन दिया. फिर ‘रेड चिल्ली’ में निर्देषक समर खान के साथ अच्छी ट्यूनिंग रही. वहीं पर मेरी मुलाकात प्रांजल खड़रिया से हुई, जो कि सोनी पिक्चर्स के साथ जुड़े हुए थे. उनसे भी काफी कुछ सीखा. आपकी फिल्म ‘लकड़बग्घा’ रिलीज हो रही है. जिसके निर्माता व मुख्य अभिनेता अंषुमन झा हैं. आप निर्देषक हैं. आपका अपना प्रोडक्षन हाउस भी है. क्या इसके चलते काम करना सुविधाजनक रहा? देखिए, जब दो बर्तन एक साथ आएंगे, तो टकराव स्वाभाविक है.पर हम दोनों के दिमाग में एक बात साफ थी कि हमें एक अच्छी फिल्म बनानी है. हम दोनों मानते है कि फिल्म हम सभी से बड़ी होनी चाहिए. क्योकि अंततः लोग फिल्म देखकर ही कहेंगे कि यह देखने लायक है या नहीं. ऐसे मंे अगर छोटे मोटे मतभेद सुलझा सके, तो फिल्म को नुकसान नही होगा. इस बात की समझ है. वैसे भी हम दोनों षांतिप्रिय हैं. हम दोनों पषुप्रेमी हैं. पष्चिम बंगाल में हमारा घर संुदरवन के पास है, तो हमने बचपन से कई तरह के जंगली जानवरों को देखते रहे हैं. ‘लकड़बग्घा’ की योजना कैसे बनी? मैं व अंषुमन झा एक दूसरी वेब सीरीज के लिए ईस्ट से वेस्ट अरूणाचल प्रदेष की यात्रा कर रहे थे. वहां एक जगह से दूसरी जगह जाने में काफी वक्त लगता था. उस यात्रा के दौरान अंषुमन ने मुझे एक दृष्य सुनाकर पूछा कि यह दृष्य कैसा है? आपको बता दॅंू कि हमारी फिल्म का षुरूआती दृष्य वही है. मैने कहा कि बहुत अच्छा दृष्य है. क्या एक एक्षन फिल्म बनायी जाए? उसने कहा कि बनाते हैं. वहां से इस पर काम षुरू हुआ था. मेरे दिमाग मंे बचपन से ‘लकड़बग्घा’ था. मंुबई आने के बाद सोचा था कि इस नाम से एक फिल्म बनानी है. वैसे भी मुझे कोरियन एक्षन फिल्में बहुत पसंद हैं. फिर हमने काॅमिक बुकों के लेखक आलोक षर्मा से इस दृष्य के आधार पर फिल्म लिखने की बात की. हम सभी ने इस पर मेहनत की. कुछ रिसर्च किया. क्यांेकि हम अपनी फिल्म को यथार्थ से जोड़ना चाहते थे. हमें पता चला कि 2018 में कोलकाटा षहर में दुर्गा पूजा के समय पर मीट/ मांस की कमी पड़ गयी थी, तब कुछ लोगो ने कुत्ते के मांस को मटन के नाम पर बेचा था. अगस्त 2021 में, कॉर्बेट नेशनल पार्क में एक धारीदार लकड़बग्घा देखा गया था और इसने हाइना को फिल्म में शामिल करने का विचार दिया. यह काल्पनिक है लेकिन भारत में घटी वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है. फिर लोग हमारे साथ जुड़ते गए. अंषुमन ने इस फिल्म के साथ अति अनुभवी कुछ विदेषी तकनीषियनों को भी जोड़ा. हमारे कैमरामैन फ्रांस के जीन मार्क सेल्वा हैं. वह उन दिनों दो माह के लिए भारत घूमने आए थे. हमने उनसे बात की,तो वह हमारी फिल्म की फोटोग्राफी के लिए तैयार हो गए. और उन्होने अपना ‘वर्क वीजा’ बनवा लिया. संगीतकार साइमन फ्रैंक्केट बेलजियम से हैं. ‘लकड़बग्घा’ के माध्यम से आप क्या कहना चाहते हैं? हम व आप अक्सर जानवरों के खिलाफ क्रूरता के बारे में पढ़ते हैं लेकिन यह रुकता नहीं है. इसलिए, हम केवल उन जीवों के लिए कुछ स्थान चाहते हैं, जिनकी आवाज नहीं है. मैं चाहता हूं कि लोग यह महसूस करें कि इसके लिए केवल एक दयालुता की जरूरत है. यदि हमारी फिल्म देखकर कुछ लोगो ने भी अपनी सोसायटी के आसपास के कुत्तों के लिए कुछ करना षुरू किया, तो भी हमारा मकसद सफल हो जाएगा. हम यह नही कह रहे है कि कुत्तों को आप अपने घर लेकर आएं. हम कह रहे हंै कि कम से कम उनके साथ प्यार से पेष आएं. आपकी फिल्म ‘लकड़बग्घा’ रिलीज हो रही है. जिसके निर्माता व मुख्य अभिनेता अंषुमन झा हैं. आप निर्देषक हैं. आपका अपना प्रोडक्षन हाउस भी है. क्या इसके चलते काम करना सुविधाजनक रहा? देखिए, जब दो बर्तन एक साथ आएंगे, तो टकराव स्वाभाविक है.पर हम दोनों के दिमाग में एक बात साफ थी कि हमें एक अच्छी फिल्म बनानी है. हम दोनों मानते है कि फिल्म हम सभी से बड़ी होनी चाहिए. क्योकि अंततः लोग फिल्म देखकर ही कहेंगे कि यह देखने लायक है या नहीं. ऐसे मंे अगर छोटे मोटे मतभेद सुलझा सके, तो फिल्म को नुकसान नही होगा. इस बात की समझ है. वैसे भी हम दोनों षांतिप्रिय हैं. हम दोनों पषुप्रेमी हैं. पष्चिम बंगाल में हमारा घर संुदरवन के पास है, तो हमने बचपन से कई तरह के जंगली जानवरों को देखते रहे हैं. ‘लकड़बग्घा’ की योजना कैसे बनी? मैं व अंषुमन झा एक दूसरी वेब सीरीज के लिए ईस्ट से वेस्ट अरूणाचल प्रदेष की यात्रा कर रहे थे. वहां एक जगह से दूसरी जगह जाने में काफी वक्त लगता था. उस यात्रा के दौरान अंषुमन ने मुझे एक दृष्य सुनाकर पूछा कि यह दृष्य कैसा है? आपको बता दॅंू कि हमारी फिल्म का षुरूआती दृष्य वही है. मैने कहा कि बहुत अच्छा दृष्य है. क्या एक एक्षन फिल्म बनायी जाए? उसने कहा कि बनाते हैं. वहां से इस पर काम षुरू हुआ था. मेरे दिमाग मंे बचपन से ‘लकड़बग्घा’ था. मंुबई आने के बाद सोचा था कि इस नाम से एक फिल्म बनानी है. वैसे भी मुझे कोरियन एक्षन फिल्में बहुत पसंद हैं. फिर हमने काॅमिक बुकों के लेखक आलोक षर्मा से इस दृष्य के आधार पर फिल्म लिखने की बात की. हम सभी ने इस पर मेहनत की. कुछ रिसर्च किया. क्यांेकि हम अपनी फिल्म को यथार्थ से जोड़ना चाहते थे. हमें पता चला कि 2018 में कोलकाटा षहर में दुर्गा पूजा के समय पर मीट/ मांस की कमी पड़ गयी थी, तब कुछ लोगो ने कुत्ते के मांस को मटन के नाम पर बेचा था. अगस्त 2021 में, कॉर्बेट नेशनल पार्क में एक धारीदार लकड़बग्घा देखा गया था और इसने हाइना को फिल्म में शामिल करने का विचार दिया. यह काल्पनिक है लेकिन भारत में घटी वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है. फिर लोग हमारे साथ जुड़ते गए. अंषुमन ने इस फिल्म के साथ अति अनुभवी कुछ विदेषी तकनीषियनों को भी जोड़ा. हमारे कैमरामैन फ्रांस के जीन मार्क सेल्वा हैं. वह उन दिनों दो माह के लिए भारत घूमने आए थे. हमने उनसे बात की,तो वह हमारी फिल्म की फोटोग्राफी के लिए तैयार हो गए. और उन्होने अपना ‘वर्क वीजा’ बनवा लिया. संगीतकार साइमन फ्रैंक्केट बेलजियम से हैं. ‘लकड़बग्घा’ के माध्यम से आप क्या कहना चाहते हैं? हम व आप अक्सर जानवरों के खिलाफ क्रूरता के बारे में पढ़ते हैं लेकिन यह रुकता नहीं है. इसलिए, हम केवल उन जीवों के लिए कुछ स्थान चाहते हैं, जिनकी आवाज नहीं है. मैं चाहता हूं कि लोग यह महसूस करें कि इसके लिए केवल एक दयालुता की जरूरत है. यदि हमारी फिल्म देखकर कुछ लोगो ने भी अपनी सोसायटी के आसपास के कुत्तों के लिए कुछ करना षुरू किया, तो भी हमारा मकसद सफल हो जाएगा. हम यह नही कह रहे है कि कुत्तों को आप अपने घर लेकर आएं. हम कह रहे हंै कि कम से कम उनके साथ प्यार से पेष आएं. #Victor Mukherjee #film 'Lakdbagha' हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article