स्वर्गीय देवानंद की जन्मसती का वर्ष है. पूरे देश मे जगह जगह उनकी फिल्में प्रदर्शित करके लोगों ने उनके प्रति श्रद्धा जताया है. मैं भी कुछ लिखूं इस सोच के साथ याद करने लगा उन मौकों को, जब देव साहब से मुलाकातें हुई थी. देव साहब की एक खासियत थी कि वे आज के स्टारों की तरह पत्रकारों की उपेक्षा नहीं करते थे. पूरे सम्मान के साथ बातें किया करते थे और सुलझे पत्रकारों की तो बड़ी इज्जत किया करते थे. मेरे साथ एक मुलाकात का संस्मरण बड़ा रोचक है जब मैं आनंद प्रिव्यू थियेटर (पाली हिल, मुम्बई) में पीआरओ दिनेश पाटिल के साथ मिलने गया था.तब उनकी फिल्म 'आनंद ही आनंद' फ्लोर पर थी.
प्रिव्यू थिएटपर के ऊपरी मंजिल पर देव साहब के लिए अपना खास ऑफिस था. स्टूडियो सुनील आनंद ( देव साहब के बेटे) चलाते थे. उसदिन देवीना ( उनकी बेटी) आयी थी पापा को मिलने इसलिए हमें कुछ देर इंतेजार करना पड़ा था. जब हम उनके कच्छ में प्रवेश किए, उन्होंने मिलते ही कहा "सॉरी जेंटल मैन देर के लिए...!" हम सोफे पर उनके सामने बैठ गए थे. अचानक वह उठे मेरे पास आकर मेरा कॉलर पकड़ लिए. मैं हैरान - यह क्या ? फिर वह मेरे शर्ट की ऊपरी खुली हुई बटन बंद किये, कहते हुए- "जेंटिल मैन, तुम्हारी पर्सनाल्टी को खुली बटन- शर्ट ठीक नहीं लगती. जब कहीं जाते हो इंटरव्यू देने या इंटरव्यू लेने इस बात को ध्यान रखा करो." वह मेरी बटन बंद करके वापस अपनी सीट पर जा बैठे.मेरे लिए वह पल बेहद झेंप भरा था. मैं अक्सर अपनी शर्ट की ऊपरी कॉलर बटन बंद नही करता. उसदिन देव साहब ने कई बातें बताया था. वह खुद कभी खुले कॉलर में नही दिखे. अपने व्यक्तित्व और पर्सनालिटी को लेकर वह सदैव सजग रहते थे. इसीलिए उन्हें जो मिलने आते थे उन्हें भी सलीके से होना चाहिए, वे ऐसा चाहते थे.उस दिन के बाद उन्हें कई और मौकों पर मिलने गया था पर शर्ट की कॉलर बटन बंद है या शूज की जगह चप्पल तो नही पहन रखा अथवा दाढ़ी तो नहीं बढ़ी है...हमेशा यह खयाल रहता था. देव साहब का वो सबक मुझे आज भी याद रहता है जब मैं किसी को इंटरव्यू करने जाता हूं. यह अलग बात है कि आजकल सभी सितारे खुली बटन शर्ट ही पहने होते हैं. कॉलर बंद करना ओल्ड फैशन हो गया है.
पर देव आनंद साहब अपने ढंग की अकेली शख्सियत थे. उन्हें खुले कॉलर में कभी नहीं देखा गया. शायद इसीलिए वह जीवन की आखिरी सांस विदेश में लिए थे.