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शाहरुख खान के साथ जब हम सब नाले पर बैठकर चाय पीया करते थे...!

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By Sharad Rai
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शाहरुख खान के साथ जब हम सब नाले पर बैठकर चाय पीया करते थे...!

(संस्मरण स्व.मुकेश चंद्र नागर  के. कोविड में हुई अपनी मृत्यु से पहले वह 'मायापुरी' से बातचीत में बताए थे)

मुकेश चंद्र नागर ( मुकेश चंद्रा) उन फिल्मकारों में हैं जो भारत सरकार के फिल्म-प्रभाग (film divison of india) से जुड़े रहकर तकरीबन 100 से अधिक शार्ट फिल्मों का लेखन-निर्देशन किये थे. उनकी सभी फिल्में  सामाजिक सरोकार से जुड़ी  रही हैं जिनको सराहा गया है और उनमें से अनेक दुनिया के कई फ़िल्म फेस्टिवलों में पुरस्कृत हुई हैं. पाठकों को ध्यान दिला दें कि सिनेमा घरों में मुख्य फ़िल्म शुरू होने से पहले एक डॉक्यूमेंट्री (शार्ट फिल्म) सरकार की तरफ से दिखाई जाती है, ये फिल्में फिल्म डिवीजन बनाया करता है.ऐसी फिल्में बनाने में महारत हासिल कर चुके मुकेश चंद्रा का फिल्मी कैरियर आज के बॉलीवुड बादशाह शाहरुख खान की शुरूवात के साथ हुआ था. आइए देखें, आरम्भिक दिनों में कैसा होता था शाहरुख खान का जीवन!

"बात तबकी है जब पहली बार शाहरुख खान कैमरे का सामना करने जा रहे थे...." याद करते बताए थे मुकेश चंद्रा. ''लोग अपने अपने ढंग से आजकी डिजिटल दुनिया मे SRK के शुरुवात की बात लिख देते हैं.कोई कहता है यहां से सुरुवात हुई, कोई कहता है यहां से हुई और शाहरुख खुद चुप रहते हैं.मैं उस टीम के साथ था जब पहली बार शाहरुख ने पर्दे की  दुनिया के लिए शुरुवात लिया था...इसलिए मैं अपनी यादों की परत साफ करते 'किंग खान' के चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं."   

''हम दोनो की शुरुवात एक ही जगह, एक ही गुरु और एक ही धारावाहिक से हुई थी- जो था दूरदर्शन का 'दिल दरिया'. शाहरुख ने बतौर एक्टर शुरुवात लिए था और मैं बतौर सहायक निर्देशक. हुआ यह था कि तब डीडी- नेशनल की एक स्किम आयी थी, 87-88 की बात है, जिसके अंतर्गत फिल्म निर्माता निर्देशकों को प्रोग्राम दिया जा रहा था.निर्देशक लेख टंडन को भी उसी स्किम के तहत धारावाहिक 'दिल दरिया' मिला था. लेख टंडन ने 'आम्रपाली' , झुक गया आसमान', 'प्रोफेसर,' 'एक बार कहो', 'अगर तुम न होते' जैसी फिल्में बनाया था और उस समय खाली बैठे थे.बदलते सिनेमा के साथ तालमेल न बिठा पाने के कारण वह बेरोज़गार से थे.'दिल दरिया' धारावाहिक की शूटिंग छतरपुर दिल्ली में हुई थी. मैं भी उनदिनों एक्टिंग करने के धुन में था, थिऐटर करता था और दिल्ली में जहां कही शूटिंग होती थी, मौका पाने के लिए जाया करता था.हम सब का यही स्ट्रगल था.शाहरुख खान भी ऐसे ही दौर में थे.मैं जब लेखजी के पास गया, कास्टिंग पूरी हो चुकी थी.इस धारावाहिक 'दिल दरिया' के कलाकार थे- अरुण बाली, अलका अमीन, वीरेंद्र सक्सेना, विनीता मालिक और शाहरुख खान भी इसमें साइन हो गए थे. मुझे भगा दिया गयाथा यह कह कर- 'जाओ, अब कोई रोल नही बचा है.' फिर पता नही क्या सुझा लेख जी को, बोले- एक असिस्टेंट की जगह है करोगे?' और मैं इस सीरियल का दूसरा असिस्टेंट बन गया.काम यही था- ये करो- वो करो, कलाकार को बुलाकर लाओ आदि.शाहरुख एक्टर थे. भाईचारे के कथानक की इस श्रृंखला में शाहरुख का छोटा ही रोल था.यानी- हमसब एक जैसे ही रहते थे.छतरपुर में शूटिंग होती थी, मैं जमना पार ( लक्ष्मी नगर) से आता था, मेरे पास एक प्रिया स्कूटर थी. खाली समय मे शाहरुख मेरी स्कूटर दौड़ाने लगता था.फिर हमसब एक दोस्त जैसे हो गए थे.शूटिंग के बाद या ब्रेक मिलने पर वहीं एक नाले पर जो जो थोड़ा ढका थोड़ा खाली रहता था, हमसब टेक लेकर चाय पीते थे.वहीं बैठ जाते थे.तब कोई अंदाजा नहीं था कि वह एक दुबला पतला सा जो लड़का हमारे साथ चाय पी रहा था एकदिन बॉलीवुड पर बादशाहत करेगा! 'दिल दरिया' का13 एपिसोड था शाहरुख की खासियत यह थी कि उसे डायलॉग बहुत जल्दी याद होता था.डायलॉग देने मैं ही जाता था, एकबार कागज पर नज़र दौड़ाकर बोलता था- याद हो गया, चलूं?

फिर तो एक और डीडी का सीरियल लेखजी के पास आ गया था-'दूसरा केवल'. निर्माता थे-रजनीश साहनी. कलाकार थे- अरुण बाली, विनीत मालिक, नताशा राणा और शाहरुख. शाहरुख इसमे भी थे मैं भी था. वही टेक्निकल टीम थी. वही एन्जॉयमेंट. मस्ती के साथ काम. शाहरुख एक सफेद रंग की वैन में आता था. शूटिंग देर रात तक चलती थी. वह सबको अपनी वैन में बैठा लेता था, फिर जिसको जहां उतरना है, छोड़ता हुआ बादमे अपने घर जाता था.आज सोचता हूँ यह  नेचर (स्वभाव) ही शाहरुख को शाहरुख बनाया ! कईबार तो मुझे भी जमना पार छोड़ा था. बादमे शाहरुख को एक और सीरियल मिल गया 'फौजी'. डायरेक्टर थे राजकुमार कपूर. यह सीरियल शाहरुख को मिला तो हम सबने सेलिब्रेट किया था.हालांकि इस टीम के साथ मैं नही रह पाया था. मैं मुम्बई आगया था जॉब के लिए. कौन सीरियल पहले टेलीकास्ट हुआ कौन बादमें....मतलब इस बात में नही है.बात है एक जुनून की, जो शुरू से ही हमने शाहरुख में देखा था.मैं फिल्म डिवीजन के लिए काम करते हुए शाहरुख की खबरें पड़ता था- एक और सीरियल मुम्बई आकर उसने किया था- 'सर्कस' (अज़ीज़ मिर्ज़ा की), फिर फिल्मों की खबरें आने लगी- 'दिल आशना है' ( हेमा मालिनी की) , राजू बन गया जेंटलमैन',' फिर भी दिल है हिंदुस्तानी', 'डर'...फिल्मो का कारवां बढ़ता गया. और, समय तेजी से शाहरुख को स्टारडम के झोंकों में बहाकर लेकर चल पड़ा.

"मैं एक प्रोग्राम कर रहा था 'सुनहरे पल' जो फ़िल्म बेस था और लंबे समय तक डीडी पर चला था. मैंने शो में शाहरुख को लाने के लिए सोचा. बब्बू मेहरा के स्टूडियो में काम चल रहा था, उसने कहा शाहरुख बड़ी फिल्मे करने लग गया है, कभी नही करेगा. मैं रात को 11 बजे कार्टर रोड शाहरुख के घर पहुंच गया. तब वह आज के बंगले 'मन्नत' में नही, एक फ्लैट में फर्स्ट फ्लोर पर रहते थे.शाहरुख बड़ी गर्मजोशी से मिले. हालांकि मैंने उनको सोते हुए उठाया था. बोले- कभी भी करलो. कहाँ करना है, कब करना है? ऐसी आत्मीयता कम देखने को मिलती है जो उसने दिखाया था. मेहबूब स्टूडियो में उनकी शूटिंग चल रही थी 'कभी हां कभी नां' की. मैं वहां गया था. बोले- यहीं करलो, इस शूट के बाद कर लेते हैं. मेरेपास पैसे नही थे कि स्टूडियो बुक करता. मैंने बब्बू मेहरा के पोस्ट प्रोडक्शन के स्टूडियो (खार वेस्ट) में बुलाया, शाहरुख आये और शूटिंग करके गए. एक पैसा भी नही लिया. बल्कि वह मुझे बादमे अपनी फिल्मों के गानों की सीडी भी भेजवाये. एक आदमी आया बोला आपके लिए शाहरुख भाई ने भेजा है. 'वो काली काली आंखें वो गोरे गोरे गाल' , 'कोई न कोई चाहिए प्यार करने वाला'... ये सब गाने हमने 'सुनहरे पल' में डाले थे. 'क..क..किरण' के डायलॉग भी!

"एक शब्द में कहूँ तो शाहरुख खान ( बाद में वह शाह रुख खान लिखने लगे) जैसे सितारों की मेकिंग में उनकी व्यवहार कुशलता का बहुत बड़ा हाथ होता है. टेलेंट तो होता ही है जो बहुतों में होता है. मुझमे भी है.लेकिन, शाह रुख खान कोई कोई ही बनता है."

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