70 व 80 के दशक की लगभग हर फिल्म में मौजूद रहती थी काली पहाड़ी(Kali Pahadi)
“डाकू गांव के हरिया को उठाकर काली पहाड़ी के पीछे ले गए हैं”
“मेरे कब्ज़े में तुम्हारा बेटा है, अगर उसे सही सलामत देखना चाहते हो फिरौती की रकम लेकर काली पहाड़ी के पीछे आ जाना”
“काली पहाड़ी के पीछे बने बंगले पर किसी आत्मा का साया है, इसीलिए वहां रात को कोई नहीं जाता”
ऐसे डायलॉग हिंदी फिल्मों में अक्सर आपने सुने होंगे। लेकिन ना जाने क्यों डाकू हर किसी को काली पहाड़ी(Kali Pahadi) के पीछे ही उठाकर ले जाते थे? अपहरण करके गुंडे-मव्वाली अकसर बच्चों को काली पहाड़ी के पीछ ही रखते थे और ना जाने क्यों आत्मा का घर काली पहाड़ी के पीछे ही होता था। यानि पुरानी फिल्मों में काली पहाड़ी ने हर जगह अपनी पैठ बनाई है। लेकिन हर फिल्म की स्क्रिप्ट में चुपके से घुस आने वाली ये काली पहाड़ी का सच आखिरकार है क्या। क्या वाकई कोई काली पहाड़ी है? वो भी इतनी फेमस कि उसे हर फिल्म में प्रमुखता के साथ दिखाया गया।
कैसे हुआ काली पहाड़ी का जन्म
“एक सामान्य सी ऊंचाई वाली पहाड़ी, जगह – जगह हथियार के साथ खड़े मेन खलनायक के गुर्गे, पहाड़ी के बीचों – बीच एक टीले पर लेटा हुआ उनका सरदार(मेन खलनायक) और पास ही में भट्टी के ऊपर लटक कर सिकता हुआ एक जानवर जो ना जाने कितने ही समय से पकता आ रहा है, आस पास कुछ बड़े-बड़े ड्रम भी रखे होते थे लेकिन उनमें होता क्या था आज तक पता नहीं चल पाया। तभी सरदार के गुप्तचर की एंट्री होती है जो ना जाने कैसा समाचार कान में सुनाता है कि एकाएक सरदार नींद से जाग उठता है।“ कुछ ऐसा ही दृश्य आंखों के आगे आ जाता है काली पहाड़ी का नाम सुनकर।
देखिए, भारत के भौगोलिक नक्शे पर काली पहाड़ी ढूंढना कोई बड़ा काम नहीं है। गूगल की मदद से ये काम आसानी से किया जा सकता है। लेकिन इस काली पहाड़ी(Kali Pahadi) की सोच का हिंदी फिल्मों में समावेश वाकई हैरानी भरा है। आखिर किस निर्देशक के दिमाग की उपज है ये काली पहाड़ी? एक बेजान सी उजड़ी हुई पहाड़ी का नामकरण भला कैसे हुआ? किसने तय किया कि ये काली पहाड़ी केवल काले कर्म करने वालो के लिए खास जगह बनेगी? जैसे गुंडे मव्वाली, अपहरकर्ता, डाकू गैंग इत्यादि।
एक काल्पनिक पहाड़ी जो सच बन गई...
कैसे एक काल्पनिक सी जगह हर स्किप्ट की जान बन जाती है और लोग उसे पूरी तरह सच भी मान लेते हैं। आलम तो ये रहा 70 व 80 के दशक की कई फिल्मों में तो काली पहाड़ी हीरो के पात्र जितनी ही अहम नज़र आई। कई बार तो ऐसा लगा कि अगर काली पहाड़ी(Kali Pahadi) ना होती तो भला फिल्मों में डाकुओं और लुटेरों का क्या होगा।
- डाकओं, चोरों के छिपने वाले खूफिया ठिकाने
- फिल्म की नायिका को उठाकर ले जाने की जगह
- हीरो से मिलने के लिए विलेन का ठिकाना
- विलने का पर्सनल अड्डा
- आत्मा का सबसे पसंदीदा डेरा
इन सब बातों को देखें तो काली पहाड़ी का बॉलीवुड की फिल्मों में अतुलनीय योगदान रहा है। अगर काली पहाड़ी ना होती तो भला गुंडे लोग हीरोइनी को कहां रखते, विलेन भाई भला हीरो को मिलने कहां बुलाते, निर्दयी दुनिया में आत्मा भला कहां और कैसे गुज़ारा करती और डाकूओं के बीच घिरी बेबस नायिका गाना गाकर या आवाज़ लगाकर कैसे अपने हीरो को बुलाती।
अब कहां खो गई वो काली पहाड़ी
कहते हैं जो आया है उसे जाना भी है...जिसका उदय हुआ है उसका पतन भी ज़रूरी है। शायद प्रकृति के इसी नियम के मुताबिक आज काली पहाड़ी(Kali Pahadi) कहीं खो सी गई है। बदलते सिनेमाई दौर और उन्नत तकनीक ने हमसे हमारी काली पहाड़ी छीन ली है। अब विलेन के ठिकाने आलिशान महल से कम नहीं होते, गुंडे हीरोइन को किडनैप करके अपने बंगले पर रखते हैं और गुप्तचर कान में आकर नहीं बल्कि फोन या वॉट्सएप के ज़रिए खूफिया जानकारी अपने बॉस को देता है। लेकिन काली पहाड़ी बॉलीवुड के इतिसाह का वो अध्याय है जो इतनी आसानी से धूमिल नहीं हो सकता। जब-जब 70 और 80 के दशक की बात होगी काली पहाड़ी का जिक्र होगा ही होगा।