अनुपम खेर और राजश्री प्रोडक्षन का 40 साल का संबंध है. अनुपम खेर ने फिल्मों में अपने अभिनय कैरियर की षुरूआत ‘राजश्री प्रोडक्षन’ की फिल्म ‘‘सारांष’’ से की थी. अनुपम खेर का दावा है कि जब भी उनका मन अषांत होता है, तो वह ‘राजश्री प्रोडक्षन’ चले जाते हैं और उन्हे सकून मिलता है.अब अनुपम ख्ेार ने ‘राजश्री प्रोडक्षन’ निर्मित व सूरज बड़जात्या निर्देषित फिल्म ‘ऊचाई’ में अभिनय किया है. जो कि ग्यारह नवंबर को प्रदर्षित होने वाली
है.
अनुपम खेर महज बेहतरीन अभिनेता ही नही बल्कि वह लेखक, निर्माता, निर्देषक और एक्टिंग के षिक्षक भी हैं. प्रस्तुत है अनुपम ख्ेार से हुई बातचीत के अंष..
40 साल के अपने अभिनय कैरियर को किस तरह से देखते हैं?
भगवान की दया और लोगों का प्यार रहा है.अन्यथा एक फारेस्ट डिपार्टमेंट के कलर्क का बेटा जो 37 रूपए लेकर 3 जून 1981 को षिमला से चंडीगढ़, चंडीगढ़ से दिल्ली, दिल्ली से लखनउ और लखनउ से मंुबई आता है. और आज ‘राजश्री प्रोडक्षन’ के आफिस मंे राज कुमार बड़जात्या के कमरे में बैठकर आपसे बात कर रहा हॅूं. मंैने यहीं पर फिल्म ‘सारांष’ के लिए आॅडीषन दिया था. आज मैं अपनी 520 वीं फिल्म के बारे में बात कर रहा हॅूं. मुझे इस बात के अलावा कोई ख्याल नहीं आता कि ईष्वर मुझ पर मेहरबान रहा है.मुझे अपने आप पर गर्व भी होता है.
40 वर्ष के कैरियर के उतार चढ़ाव क्या रहे?
बहुत उतार चढ़ाव रहे. हर इंसान की जिंदगी में उतार चढ़ाव आते हैं. काम तो जिंदगी का एक हिस्सा है. बाकी तो जिंदगी है न. ऐसी जिंदगी का क्या फायदा जिसमें उतार चढ़ाव ही न हो. उतार चढ़ाव तो इंसान को परिपक्व करते हैं. उतार चढ़ाव ही इंसान को वह इंसान बनाते हैं,जो वह बनना चाहता है. मैं उतार चढ़ाव की तरफ ज्यादा ध्यान नही देता. मुझे लगता है कि यह तो जिंदगी का एक हिस्सा है. जैसे उतार एक हिस्सा है,उसी तरह चढ़ाव एक हिस्सा है. जैसे चढ़ाव एक हिस्सा है, वैसे उतार एक हिस्सा है. यदि असफलता जिंदगी का एक हिस्सा है, तोसफलता भी जिंदगी का एक हिस्सा है. उस सड़क पर चलने का फायदा ही क्या जो सपाट हो. जब तक सड़क में पत्थर न हो, खाईयां न हो. स्पीड ब्रेकर न हो. इन्हें लांघकर जब आप अपनी मंजिल पर पहुॅचते हैं, तो लगता है कि हम क्या सफर तय करके आए हैं.
आपके कैरियर की षुरूआत राजश्री प्रोडक्षन की फिल्म ‘‘सारांष’’से हुई थी.अब 40 वर्ष बाद जब फिर से राजश्री ने आपको ‘ऊंचाई’ का आफर दिया, तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी? मुझे ऊंचाई का आॅफर जिंदगी के उस मुकाम पर मिला, जब मैं अपनी जिंदगी में वह सोच रहा था,जो इस फिल्म का भी विषय है.मेरी उम्र 67 वर्ष है. जब मैं साठ वर्ष का हुआ,तब मुझे लगा कि अब मुझे अपनी जिंदगी को नए सिरे से इनवेंट करना चाहिए.मैने नए तरीके से नई सोच के साथ जिंदगी जीने का निर्णय लिया.उसके लिए मैने सबसे पहले फिजिकली ख्ुाद को बदलने का निर्णय लिया. षारीरिक बनावट के अनुसार जैसा दिखता हॅूं,उसमें बदलाव की बात सोची.मैने वजन कम करना षुरू किया. व्यायाम करना षुरू किया.वेट ट्रेनिंग लेनी षुरू की. पैदल चलना षुरू किया. जिससे मुझे देखकर लोग कहें कि यह तो कुछ अलग लग रहा है.इसका मतलब यह जो कुछ अलग तरह का काम कर रहा है, उस पर हमें यकीन करना चाहिए.यही कहानी फिल्म ‘ऊंचाई’ मंे तीन दोस्तों,मैं अमिताभ बच्चन जी व बोमन ईरानी जी, की है. हम सभी पैंसठ और उससे उपर की उम्र के हैं. एक हादसा ऐसा
घटता है कि चैथे दोस्त, जिसे डैनी साहब ने निभाया है, की ख्वाहिष होती है कि उनकी मृत्यू होने पर उनकी अस्थियों को एवरेस्ट बेस कैंप पर बिखेरा जाए.अब हम सभी आम लोग हैं. फिल्म में मेरी किताब की दुकान है. बोमन ईरानी यानी कि जावेद सिद्किी की लेडीज कपड़े की दुकान है. अमित जी लेखक हैं. हम सुपर मैन नहीं है.
हम वह नहीं है,जो कसरत करते हैं. ऐसे मंे हमारे लिए तेरह हजार फिट की चढ़ाई कर एवरेस्ट बेस कैंप पर पहुॅचना आसान नही है. पर हम सभी अपने दोस्त की ईच्छा पूरी करने के लिए ऐसा करते हैं, जिसमें हमें तकलीफ से गुजरना पड़ता है.षूटिंग के दौरान हम वास्तव में उपर पहाड़ों पर चढ़े हैं. जब दोनों चीजें एक साथ मिलीं, तो इस फिल्म का मेरे लिए उद्देष्य ही कुछ और हो गया. यही वजह है कि लोगों को ट्ेलर बहुत पसंद आ रहा है. ट्रेलर
को केवल बुजुर्गों ने नहीं बल्कि युवा वर्ग ने भी पसंद किया. मेरे हिसाब से अनुपम खेर एक इंसान के तौर पर और अनुपम खेर एक किरदार के तौर पर समानांतर यात्रा है. आपको लगता है कि साठ वर्ष की उम्र के बाद आपने जो ख्ुाद को षारीरिक रूप से बदलने की प्रक्रिया षुरू की थी,उसका फायदा ‘ऊंचाई’ के किरदार को निभाने में मिला? जी हाॅ! ऐसा हुआ. मगर मुझे वैसे भी चलना फिरना पसंद है. मेरी जिंदगी के कई वर्ष पहाड़ पर गुजरे हैं. मेरा बचपन षिमला मंे बीता. तो मुझे पहाड़ों पर जाना अच्छा लगता है. ट्रैक करना अच्छा लगता है. पर पिछले पांच छह वर्षों से मैं जो जिम वगैरह कर रहा था, उसका फायदा जरुर मिला. ट्रैनिंग की ही वजह से हम पहाड़ पर चढ़ते समय सांस की समस्या से निपट सके. अब तो ऐसा लगता है कि ईष्वर मुझसे इसी फिल्म के लिए वह सारी तैयारियंा करवा रहा था.
नेपाल मंे आपने कई जगह षूटिंग की. क्या अनुभव रहे.क्या आप पहले भी इन जगहों पर गए थे? जी हाॅ! मनन, रामसे बाजार,सहित कई जगहों पर हमने षूटिंग की. हम इससे पहले मनन नही गए थे. हम ऐसी जगहों पर कहां जाते हैं? हम तो जहां भी जाते हैं, वहां पांच सितारा होटल वाली सुविधाएं ढूढ़ते हैं. इस फिल्म की षूटिंग के दौरान जब हमने एवरेस्ट को देखा था, तो हम सब रोए थे. हमें ख्ुाद के छोटे होने का अहसास हुआ. प्रकृति के सामने हम कितना असहाय है. एवरेस्ट की चोटी से छोटे छोटे बर्फ के फव्वारे निकल रहे थे. यहां रहने वालों की अपनी एक अलग जिंदगी है.बहुत नेक दिल व सच्चे लोग हैं. यह हमारा लाइफ टाइम अनुभव रहा. वहां के लोगांे से बातचीत हुई होगी.
कोई यादगार घटना या किसी बात ने आपके उपर असर किया हो?
मैं तो जहां भी जाता हॅूं, लोगो से बातें करता हॅूं. बड़े महानगरों व सोषल मीडिया के बीच रहते हुए आपका सबका मासूमियत से नही पड़ता है. भोले भाले लोगांे से सामना नही होता.वहां पर मेरा सामना ऐसे लोगों से ही हुआ. वह लोग इमानदार पूर्ण साधारण जिंदगी जीते हैं. मैं भी छोटे षहर का हॅूं. मैं 1955 से 1974 तक षिमला में रहा हॅूं.मेरे अंदर अगर कोई मासूमियत है, तो उसकी वजह यही है कि मैं छोटे षहर से हॅंू. बड़े षहरों में जिंदगी आपको चाला कव चलता पुर्जा बनना सिखा देती है. मंैने पूरी जिंदगी अपने अंदर छोटे षहर के इंसान को जिंदा रखने की कोषिष की.
फिल्म ‘‘ऊंचाई ’’दर्षकांे का मनोरंजन करने के अलावा क्या सीख देगी?
यह फिल्म हर इंसान को उसके करेज/साहस पर यकीन दिलाएगी. यह फिल्म बताएगी कि हर इंसान के अंदर साहस होता है. पर अपने अंदर के साहस व अच्छाई को ढूढ़ना. रिष्ते व दोस्ती निभाना. दोस्त के लिए एवेस्ट बेस कैप पर चले जाना, यही करेज है. मैं हमेशा कहता हूं कि एक्स्ट्रा और एक्स्ट्रा आर्डिनरी में सिर्फ एक एक्स्ट्रा का फर्क होता है. तो एक्स्ट्राऑर्डिनरी वह होते हैं जो और थोड़ा सा मेहनत करके बनते हैं. दूसरी बात कोविड केे 2 साल हम लॉकडाउन में रहे.तब हम अपने आप से जूझ रहे थे. अंदर उथल-पुथल थी, परेशानियां थी किसी ने किसी को खोया था. उम्मीद कम हो गई थी. फिल्म ‘ऊंचाई’ लोगों के अंदर एक बार फिर उम्मीद जगायेगी. विष्वास दिलाएगी.
राजश्री के साथ ‘‘सारांश’’ करने के 40 साल बाद आप ‘ऊंचाई ’ के लिए राजश्री से जुड़े .क्या बदलाव पाया?
राजश्री में कोई बदलाव नहीं आया. यह पता नहीं किस मिट्टी के बने हुए हैं. किस मोल्ड में लोग बने हैं. मुझे लगता है कि नीना गुप्त इनके बारे में सही बोलती हैं. नीना गुप्ता कहती है कि ,‘इनको पैदा होते ही राजश्री का इंजेक्शन लगा दिया जाता है. कि अच्छे लोग ऐसे होते हैं.’ मैं तो अपना शुद्धीकरण करने के लिए यहां आता हूं. जब मुझे लगता है कि बहुत परेशान हूं. तो मैं यहां आ जाता हूं थोड़ी देर के लिए यहां बैठता हूं और मुझे शांति का आभास होता है. यह हैं ही वैसे. यह राजश्री प्रोडक्शन व राजश्री फिल्म्स को 75 साल हो गए. 15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ था. उसी दिन ताराचंद बड़जात्या जी ने इस बैनर की स्थापना की थी. 75 साल में इन्होंने 60 फिल्में दी. मतलब एक भी फिल्म में उन्होंने अपनी जो परंपरा है अपने जो रीति रिवाज है अपने जो हमारे देश के जो संस्कार हैं उसको छोड़ कर कोई फिल्म नहीं बनाई. तो हमारे देश को जो धरोहर दी है,इनको तो सेलिब्रेट करना बहुत जरूरी है. 40 साल में आपने बहुत से डायरेक्टरों के साथ काम किया.कई नामी-गिरामी डायरेक्टर्स रहे हैं. सूरज बड़जात्या के साथ भी काम किया है.सूरज जी मैं में अपने क्या खास बात पाई?
सूरज जी अनोखी अलग ही दुनिया के हैं.मतलब मैंने जिनके साथ काम किया,वह सभी डायरेक्टर भी मुझे अच्छे मिले. वह सभी अच्छे इंसान भी थे.बहुत अच्छे इंसान थे. मगर सूरज जी की बात ही अलग है. सूरज जी से अच्छाई क्या होती है, नम्रता क्या होती है,लोगों को किस तरह से ट्रीट करना क्या होता है,यह सीखा जा सकता है. सूरज जी ने जिंदगी के बारे में बहुत कुछ सिखाया है. और जिंदगी के अच्छाइयों बहुत कुछ सिखाया है. राज्यश्री ने हमेशा अपनी फिल्मों में परिवार व रिश्तों को अहमियत दी. लेकिन आपको ऐसा नहीं लगता कि
भारतीय सिनेमा में पिछले दो दशक से परिवार और रिश्ते गायब हो गए?
देखिए, इसीलिए तो ‘ऊंचाई’ देखना बहुत जरूरी है.इसलिए बड़े पर्दे पर देखना चाहिए इसलिए तो हमें उम्मीद पर विश्वास रखना बहुत जरूरी है. आखिर क्या वजह है कि भारतीय सिनेमा से परिवार व रिश्ते गायब होते जा रहे हैं? देखिए, समाज से भी तो रिश्ते गायब होते जा रहे हैं.आजकल दोस्ती से यंग जनरेशन के किसी लड़के या लड़की से उसका फोन छीन लिया जाए, तो उसके आधे से ज्यादा दोस्ती यही खत्म हो जाएगी. क्योंकि रिश्ते तो फोन तक कायम रखते हैं. हमने हंसी जो है असली मुस्कुराहट जो हैं उसको इमोजी में कन्वर्ट कर दिया है एक्चुअलीमुस्कुराते ही नहीं हैै. आमतौर पर आमने सामने जो बातचीत होती है, वह तो हम करते ही नहीं.