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14 सितंबर के उपलक्ष्य पर परीक्षित साहनी ने अपने सगे चाचा और 'तमस' जैसी कालजयी रचना रचने वाले उपन्यासकार भीष्म साहनी को याद करते हुए बहुत सी बातें साझा की.
भीष्म साहनी की मातृभाषा पंजाबी थी. हिन्दी के ज्ञाता ना होने की वजह से उन्होंने शुरुआती दौर में पंजाबी में ही लिखा . पर उनकी लेखनी ज्यादा लोगों द्वारा समझी जाए इसके लिए उनका हिंदी में लिखना सही होता और इसलिए उन्होंने हिन्दी को धाराप्रवाह सीखने और लिखने के लिए प्रयास जारी कर दी.
भीष्म साहनी के भाई और अनुभवी अभिनेता बलराज साहनी को भी लिखना बेहद पसंद था पर वह अपनी मातृभाषा पंजाबी में ही लिखते थे. उनके पास गुरुमुखी लिपि की टाइपराइटर भी थी. लेखनी की क्या भाषा होनी चाहिए इसी विषय पर दोनों भाइयों में अक्सर गहरी चर्चा होती थी. क्योंकि भीष्म ने हिंदी में लिखना शुरू कर दिया था और बलराज का मानना था कि एक इंसान को हमेशा अपनी मातृभाषा में लिखना चाहिए ताकि उसकी मातृभाषा की खूबसूरती लोगों तक फैलें. पर भीष्म साहनी ने प्रेमचंद का उदाहरण देते हुए कहा कि हिन्दी उनकी भी मातृभाषा नहीं थी पर अपनी कला को ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए उन्होंने भी हिन्दी लेखनी शुरू की.
बलराज साहनी एक लेखक के रूप में तो उतने मशहूर नहीं है पर उनकी बहुत सी लेखनी पंजाब विश्वविद्यालयों में पढ़ायी जाती है.
इस हिन्दी दिवस भीष्म साहनी जी को सलाम जिन्होंने मातृभाषा हिन्दी ना होते हुए भी अपनी लेखनी से हिन्दी भाषा की गरिमा बढ़ायी. भीष्म साहनी अपने जीवन के अंतिम क्षण में भी लिखते ही रहे. कोमा के दैरान भी उनकी ऊँगलियाँ ऐसे हिलती थी, मानो वो कुछ लिख रहे हो.