स्कूल के मैदान में, सर्दियों की एक धुंधली सुबह को झंडा फहराना या अपने प्रियजनों के साथ गणतंत्र दिवस परेड देखने के लिए टेलीविजन सेट के पास जमा हो जाना यह हम सभी के बचपन की यादों का हिस्सा हैं. अहाना कुमरा, सादिया सिद्दीकी, विवान शाह और सीमा पाहवा ने भी इस खास दिन से जुड़ी अपनी भावनाओं को साझा किया.
आहना कुमरा
ज़ी थिएटर के नाटक 'सर सर सरला' में अभिनय कर रही आहना कुमरा कहती हैं, "मुझे याद है कि मैं दूरदर्शन पर गणतंत्र दिवस परेड देखने के लिए सुबह जल्दी उठती थी. ध्वजारोहण भी हमारे जीवन का एक बहुत ही अभिन्न अंग था क्योंकि मेरी माँ ने पुलिस बल में 40 वर्षों तक काम किया है. एक और स्मृति है उनके आंसुओं की जो बह निकलते थे जब भी रेडियो या टीवी पर 'ऐ मेरे वतन के लोगो' गूंजता था. यह दिन हमें याद दिलाता है कि हम सभी भारतीय हैं और हमारी यही पहचान सर्वोपरि है. "
सादिया सिद्दीकी
ज़ी थिएटर की साहित्यिक श्रृंखला 'कोई बात चले' में सादत हसन मंटो की कहानी 'हतक ' पढ़ने वाली सादिया सिद्दीकी कहती हैं, "मुझे एक NCC कैडेट के रूप में स्कूल की गणतंत्र दिवस परेड के लिए मार्च पास्ट का अभ्यास करना याद है. मैं भाषण भी देती थी भारत की विविधता में एकता के बारे में. मुझे इस बात पर बहुत गर्व है कि भारत में इतनी सारी भाषाएं और धर्म हैं. बचपन में हम सभी एक-दूसरे के साथ त्योहार मनाते थे और मैं चाहती हूं कि वे दिन फिर वापस आएं. "
सादिया उम्मीद करती हैं कि एक राष्ट्र के रूप में, हम अपने संविधान का सम्मान करेंगे, और ऐसी नीतियों की मांग करेंगे जो हाशिये के लोगों और दिव्यांग व्यक्तियों की मदद करें ताकि वे सभी गरिमा के साथ रह सकें, और जीवन यापन कर सकें. वह आगे कहती हैं, "मैं निश्चित रूप से देश में अधिक प्यार और सहिष्णुता चाहती हूं क्योंकि जीवन बहुत छोटा है और केवल एकता और शांति से ही हम इस दुनिया को बेहतर बना सकते हैं ."
विवान शाह
ज़ी थिएटर के 'कोई बात चले' में मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'गुल्ली डंडा' पढ़ने वाले अभिनेता विवान शाह के पास गणतंत्र दिवस परेड की सरगर्मियों की कई यादें हैं और वे कहते हैं, "ऐसे कई समारोहों का मैं हिस्सा रहा हूं और इस दिन हम दूरदर्शन द्वारा प्रसारित 'गांधी' और 'मदर इंडिया' जैसी फिल्में भी देखते थे . भीष्म साहनी की 'तमस' ने भी मुझ पर गहरा प्रभाव छोड़ा. मैंने भारत की समकालीन संस्कृति से सीखा है कि देशभक्ति और राष्ट्रवाद में अंतर है. देशभक्ति अपने देश के लिए प्यार की भावना है, जबकि राष्ट्रवाद किसी और देश के लिए नफरत पैदा करता है. गांधीजी ने हमें प्रेम और शांति का पालन करना सिखाया, न कि घृणा और शत्रुता का पाठ पढ़ाया . और यही सन्देश इस खास दिन पर मैं भी देना चाहूंगा ."
सीमा पाहवा
मशहूर अदाकारा और निर्देशिका सीमा पाहवा, जिन्होंने ज़ी थिएटर के 'कोई बात चले' को निर्देशित किया है, कहती हैं, "मुझे अभी भी याद है, गणतंत्र दिवस परेड के लिए अभ्यास करना और 'गांधी', 'शहीद' और 'पूरब और पश्चिम' जैसी फिल्में देखना, जो देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत कर देती थीं . आज के दिन मैं सिर्फ इतना कहूँगी कि अगर हम बदलाव देखना चाहते हैं तो इसकी शुरुआत हमें खुद से करनी होगी. खुद को विकसित करके ही हम देश के विकास में योगदान दे सकते हैं. अगर हम खुद पर काम करना शुरू कर देंगे तो देश अंततः उतना ही आगे बढ़ेगा जितना हम".