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जब भी भारतीय सिनेमा में अच्छी कला की बात होती है, ओम पुरी का नाम शीर्ष दस की लिस्ट में लिखा जाता है। ओम पुरी अपने शानदार अभिनय के लिए तो जाने जाते ही थे, साथ-साथ अपनी बेबाक ज़ुबान और निर्भीक बयानों के लिए भी चर्चा में रहा करते थे।
ऐसे ही खुलकर बोलते हुए उन्होंने एक बार अनुपम खेर के शो में बताया कि जब वह नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा आए थे, तब उनकी हालत फाइनेंसियली बहुत मुश्किल थी, तिसपर उनकी नई सरकारी नौकरी भी लगी थी जिसमें वह प्यून की जॉब करते थे। उनके सीनियर और मेंटर ने जब ये जाना कि ओम नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लेना चाहते हैं, तब उन्होंने बहुत डांटा। कहा कि यूँ तुम अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर लोगे।
लेकिन ओम पुरी ने फिर भी चुपचाप से फॉर्म भर अप्लाई कर दिया, इंटरव्यू की कॉल आई तो उसमें भी पास हो गये। अब उनसे नौकरी में रुकना मुश्किल हो गया। ऊपर से एनएसडी में 200 रूपए का वजीफा यानी स्कॉलरशिप भी मिलती थी। सो उन्होंने एडमिशन ले लिया। लेकिन यहाँ ज़्यादातर बच्चे दिल्ली मुम्बई शहरों से या कान्वेंट स्कूल में पढ़कर आए थे। उनकी अंग्रेज़ी अच्छी थी। लेकिन ओम पुरी की अंग्रेज़ी बहुत कमजोर थी। इस करके उनको कांफिडेंस ही नहीं होता था कि वह भी प्ले में लीड कर सकते हैं।
वो इतने फ्रसट्रेट हो गए कि वापस जाने की सोच ली। लेकिन उनके गुरु और एनएसडी के डायरेक्टर ने उन्हें रोक लिया। फिर जब उन्हें पता चला कि कमज़ोर अंग्रेज़ी की वजह से इसे यह छोड़कर जाना चाहता है, तो उन्होंने रोक लिया और कहा “तुम हिन्दी में बोल सकते हो तो हिन्दी में बोलो, इसमें शर्म कैसी, हाँ! अगर अपनी अग्रेज़ी इम्प्रूव करना चाहते हो तो अपने दोस्तों के साथ कन्वर्सेशन में शामिल होवो, भले ही ग़लत बोलो पर बोलो। वो लोग हँसेंगे, हँसने दो। लेकिन डरो नहीं। अंग्रेज़ी अख़बार पढ़ो, जो न समझ आए उसे पूछ लो।
ओम पुरी ने यह सारी बातें फॉलो कीं, बिना डरे बिना हिचकिचाए या शर्माए वह अंग्रेज़ी बोलने लगे, धीरे-धीरे उन्हें बेहतर प्ले मिलने लगे और वो समय भी आया, जब उन्होंने एक या दो नहीं, बल्कि 22 हॉलीवुड प्रोजेक्ट्स में काम किया और वर्ल्ड सिनेमा तक अपने हुनर का कमाल दिखाया।
इन फिल्मों में द घोस्ट एंड द डार्कनेस और सिटी ऑफ़ जॉय ख़ासी फेमस हैं। 18 अक्टूबर 1950 में पैदा हुए ओम पुरी, आज अगर मौजूद होते तो उनकी उम्र कोई सत्तर साल के आस-पास होती। सन 1975 से अपना कैरियर शुरु करने वाले ओम पुरी, 6 जनवरी 2017 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से भगवान के पास पहुँच गए लेकिन उनकी कला आज भी बरकरार है।