दशहरा पर विशेष: मध्य प्रदेश की अयोध्या ओरछा में राम का एक अदभुत रूप है! जानिए कैसी है ये कहानी!

author-image
By Mayapuri
New Update
दशहरा पर विशेष: मध्य प्रदेश की अयोध्या ओरछा में राम का एक अदभुत रूप है! जानिए कैसी है ये कहानी!

शरद राय -

पूरी दुनिया मे रामलीलाएं मनाए जाने की धूम है। इसबार बुन्देलखण्ड ( मध्य प्रदेश) की नगरी ओरछा में रामलीला खेलने का अदभुत नज़ारा रहा है।इस रामलीला का प्रसारण 140 देशों में लाइव है।इस रामलीला मंचन में राम की कहानी तो वही है जो तुलसीदास की राम चरित मानस में रचित है। यथा- अहिल्या उद्धार,  सीता स्वयम्बर, धनुष यज्ञ, लक्ष्मन परसुराम संवाद आदि और अंत मे राम- रावण युद्ध मे रावण का बध। लेकिन, ओरछा के राम की खुद की कहानी बहुत अलग है, रोचक है।जिसे हमें मध्य प्रदेश के एक मशहूर पत्रकार गम्भीर श्रीवास्तव ने सुनाया है। ग्वालियर सम्भाग के ओरछा का राज महल जो राम का  दूसरा घर कहा जाता है, की कहानी कुछ इस तरह है-

पूरे विश्व मे राम भगवान के रूप में पूजे जाते हैं लेकिन ओरछा एम मात्र ऐसी जगह है जहां राम राजा हैं। राम राजा, यानी-सरकार के रूप में उनकी पूजा होती है। एकमात्र ओरछा ऐसी जगह है जहां भगवान करोड़ों का मंदिर होने के वावजूद मंदिर में न रहकर महल में रहते हैं। मंदिर के गर्भ गृह से कभी भी राम की मूर्ति हटाई नहीं जाती (अयोध्या के रामलला की मूर्ति तमाम बाहरी ताकतों के विरोध के वावजूद नहीं हटाई जा पाई) लेकिन यहां ऐसा हुआ है। ओरछा में वहां का राजा नही, राम राजा के रूप में शासन करते हैं। ओरछा ही ऐसी जगह है जहां राम को सरकार की तरफ से सशस्त्र सलाम दी जाती है। यह सलामी सूर्यास्त से पहले और सूर्यास्त के बाद दी जाती है।अयोध्या से ओरछा राम के आगमन की कहानी भी उतनी ही मनोरंजक है जिसपर किसी फिल्म वाले का ध्यान अभीतक नही गया, हैरानी होती है!

publive-image

कहा जाता है कि  ओरछा राजवंश के राजा मधुकर शाह कृष्ण के बड़े भक्त थे और उनकी पत्नी  रानी कुंवर राम की भक्त थी।एकबार आपस की चर्चा में राजा ने रानी को वृंदावन जाने की सलाह दिया तो रानी ने अयोध्या जाने की बात कहा। चिढ़कर राजा ने कहा-''अगर तुम्हारे राम सच मे हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लेकर आओ।' रानी को यह बात लग गई और वह अयोध्या जाकर सरयू नदी के किनारे तप करने बैठ गई। एक किंबदंती हैं कि जब राम बन चले गए थे, माता कौशल्या ने अपने हाथ से राम की एक मूर्ति बनाया था और राम के वन से लौटने तक 14 सालों तक उस मूर्ति की पूजा किया था।जब राम वापस लौट आये, कौशल्या ने वो मूर्ति गंगा में विसर्जित कर दिया था। रानी कुंवर की तपस्या से प्रसन्न होकर राम ने उनको दर्शन दिया और अपनी वही मूर्ति जो मां कौशल्या ने  बनाया था, उनको भेंट दिया। राम ने रानी के साथ ओरछा चलने के लिए शर्त रखा था कि वह सिर्फ पुष्प नक्षत्र में चलेंगे। तभी चलेंगे जब उनकी पूजा भगवान के रूप में या बालक के रूप में नहीं, बल्कि राजा के रूप में होगी। वह मन्दिर में नही महल में रहेंगे।वह राजकाज के फैसले किया करेंगे। बताते हैं ये प्रथा ओरछा में तभी से हैं। प्रतितात्मक रूप से राम ही वहां के राजा हैं।

राम के नीतिपूर्ण प्रशासन की एक झलक राम राजा सरकार की रामलीला 2021 के अहिल्या उद्धार प्रसंग में देखने को मिली। राम लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के साथ जानकी स्वयम्बर में जाते हुए एक कुटिया देखते हैं जिसके सामने एक बड़ा पत्थर रखा होता है। राम की उत्सुकता पर ऋषि विश्वामित्र बताते हैं कि वो कुटिया गौतम ऋषि का आश्रम है और वो सामने रखा पाषाण उनकी पत्नी अहिल्या का  हैं। श्राप के कारण अहिल्या का शरीर पत्थर का हो गया है,  जो राम के चरणों का स्पर्श पाकर श्राप मुक्त हो जाएगी। राम तत्पर अहिल्या को पांव से छूने के लिए आगे बढ़ते हैं फिर रुक जाते है। किसी स्त्री को वह पांव से कैसे छू सकते हैं? यानी- स्त्री सम्मान को राम ने यहां दर्शाया है।पवनपुत्र हनुमान हवा का झोंका लेकर आए और राम की पद धुली अहिल्या पर पड़ी और उनकी मुक्ति हुई। अहिल्या पत्थर से इंसान बन गई, देवताओं ने पुष्प वर्षा किया और दर्शकों में जय घोष  उठा- जय श्री राम! जय श्री राम !! ऐसा है ओरछा के राम का प्रजा सत्तात्मक भगवान का स्वरूप!

publive-image

#dashahara #Madhya Pradesh #Ram in Ayodhya Orchha #Special on dashahara
Latest Stories