सुनील दत्त By Mayapuri Desk 01 Jun 2017 | एडिट 01 Jun 2017 22:00 IST in सेलिब्रिटी फोटोज़ New Update Follow Us शेयर रियल हीरो एंड फाइटर -सुनील दत्त सुनील दत्त आज ही के दिन, 6 जून 1929 को झेलम में पैदा हुए थे जो अब पाकिस्तान में है।जिनका असली नाम बलराज दत्त था ये एक भारतीय फिल्मों के विख्यात अभिनेता, निर्माता व निर्देशक और राजनीती मे सांसद रह चुके हैं। सुनील दत्त ने अपने छह दशकों लंबे फ़िल्मी करियर में 50 से ज़्यादा फ़िल्मों में अभिनय किया एवं उन्होंने 1984 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मुम्बई उत्तर पश्चिम लोक सभा सीट से चुनाव जीता और सांसद बने। वे यहाँ से लगातार पाँच बार चुने जाते रहे। उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेटी प्रिया दत्त ने अपने पिता से विरासत में मिली वह सीट जीत ली। भारत सरकार ने 1968 में उन्हें पद्म श्री सम्मान प्रदान किया। इसके अतिरिक्त वे बम्बई के शेरिफ़ भी चुने गये। सुनील दत्त को अगर रियल लाइफ हीरो और फिगटर कहा जाए तो गलत नहीं होगा।उन्होंने सदैव संघर्ष का सामना किया पैर कभी हर नहीं मानी ।उन्होंने बटवारे की त्रासदी को बहुत करीब से देखा और बहुत छोटी उम्र मे अपने पिता को खो दिया ।उसके बाद वो और उनका परिवार भारत आ गए । सुनील ने मुम्बई के जय हिन्द कालेज में दाखिला लिया और जीवन यापन के लिये बेस्ट में कण्डक्टर की नौकरी भी की। उन्होंने अपने करीर की शुरुआत रेडियो से की यानि रेडियो सीलोन , जो कि दक्षिणी एशिया का सबसे पुराना रेडियो स्टेशन है।जहाँ उन्हें काफी लोकप्रियता मिली ।इसके बाद उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय करने की ठानी और बम्बई आ गये। 1955 मे बनी 'रेलवे स्टेशन' उनकी पहली फ़िल्म थी पर 1957 की 'मदर इंडिया' ने उन्हें बालीवुड का फिल्म स्टार बना दिया। डकैतों के जीवन पर बनी उनकी सबसे बेहतरीन फिल्म मुझे जीने दो ने वर्ष 1964 का फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार जीता। उसके दो ही वर्ष बाद 1966 में खानदान फिल्म के लिये उन्हें फिर से फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार प्राप्त हुआ।1957 में बनी महबूब खान की फिल्म मदर इण्डिया में शूटिंग के वक़्त लगी आग से नरगिस को बचाते हुए सुनील दत्त बुरी तरह जल गये थे। इस घटना से प्रभावित होकर नरगिस की माँ ने अपनी बेटी का विवाह 11 मार्च 1958 को सुनील दत्त से कर दिया। उसके बाद इनका संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ एक समय आया जब इन्हे कोई फिल्म नहीं मिल रही थी ।ये समय था 1971 से 1975 तक कोई फ़िल्म नहीं मिलने से उनका करियर लड़खड़ाने लगा तब अभिनेत्री साधना और आरके नय्यर ने उन्हें 'गीता मेरा नाम' फ़िल्म में काम करने को कहा. लाख समझाने के बाद उन्होंने पहली बार खलनायक की भूमिका निभाई. उसके बाद से उन्हें फिर से फ़िल्में मिलनी शुरू हो गईं.'। परन्तु उनका निजी जीवन भी कई कठनाइयों से भरा था ।फिर चाहे वो पत्नी नरगिस का कैंसर हो या बेटे की ड्रग्स की आदत वे सदैव परेशां ही रहे ।सुनील दत्त ने पूरे जीवन असंभव लड़ाइयां लड़ी हैं।अपने बेटे को ड्रग्स की लत छुड़ाने और पत्नी का इलाज कराने के लिए वो दो बार अमरीका गए. इस दौरान वो बहुत परेशान रहे।उनकी मुसीबतें कभी कम न हुईं कैंसर और ड्रग्स ने उन्हें बहुत लाचार और दुखी कर दिया था। ड्रग्स और कैंसर के प्रति लोगों में जागरुकता लाने के लिए उन्होंने दो बार मुंबई से चंडीगढ़ तक पदयात्रा की। 25 मई 2005 को इस रियल लाइफ हीरो ने सबको लविदा कह दिया #Sunil Dutt हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article