सत्यजीत रे फिल्मी दुनिया का एक ऐसा नाम है, जो आज भी लोगों की ज़ुबान पर रहता है। बल्कि उन्हें अगर हम चलता फिरता फिल्म संस्थान कहें तो बिलकुल सही होगा। सत्यजीत रे सिनेमा जगत के इतिहास में पहली ऐसी शख्सियत थे, जिनके पास ऑस्कर अवॉर्ड जैसा बड़ा खुद चलकर उनके पास आया था। सत्यजीत रे देश में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में विख्यात हैं। 1921 में कोलकाता में जन्मे सत्यजीत रे का आज जन्मदिन है। तो आइए आज इस मौके पर हम आपको बताते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें....
ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर किया काम
3 साल की उम्र में सत्यजीत रे के पिता का निधन हो गया। उनकी मां सुप्रभा को उनकी परवरिश करने में बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। सत्यजीत रे 1943 में ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर काम किया। उन दिनों वो कई मशहूर किताबों का कवर डिजाइन किया करते थे, जिसमें जिम कॉर्बेट की मैन इट्स ऑफ कुमाऊं और जवाहर लाल नेहरू की डिस्कवरी ऑफ इंडिया शामिल है।
'पाथेर पांचाली' के बाल संस्करण में अहम भूमिका
सत्यजीत रे ने विभूतिभूषण बंधोपाध्याय के मशहूर उपन्यास पाथेर पांचाली का बाल संस्करण तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी। जिसका नाम था अम अंतिर भेपू( आम के बीज की सीटी)। इस किताब से सत्यजीत रे काफी प्रभावित हुए। उन्होंने इस किताब के कवर के साथ इसके लिए कई रेखाचित्र भी बनाए, जो बाद में उनकी पहली फिल्म पाथेर पांची के खूबसूरत और मशहूर शॉट्स बने।
'पाथेर
पांचाली' पहली फिल्म
अपनी कंपनी के काम से साल 1950 में सत्यजीत को लंदन जाने का मौका मिला। वहां पर उन्होंने कई फिल्में देखीं। वहीं से उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें भी पाथेर
पांचाली फिल्म
बनानी है। बस फिर क्या था, 1952 में सत्यजीत रे एक नौसिखिया टीम के साथ फिल्म की शूटिंग शुरु कर दी। एक नए फिल्मकार पर पैसे लगाने के लिए कोई तैयार नहीं था।
पश्चिम बंगाल सरकार ने की मदद
फिर भी सत्यजीत रे पीछे नहीं हटे और खुद के पास जितने पैसे थे फिल्म में लगा डाले। यहां तक कि उन्होंने पत्नी के गहने तक गिरवी रख दिए। कुछ दिन पास जब पैसे खत्म हो गए तो उन्हें शूटिंग रोकनी पड़ी। उन्होंने कुछ लोगों से मदद मांगी। लेकिन सभी फिल्म में अपने हिसाब से बदलाव चाहते थे, जिसके लिए रे तैयार नहीं हुए।
1955 में रिलीज़ हुई 'पाथेर पांचाली'
आखिर में पश्चिम बंगाल सरकार ने सत्यजीत रे की मदद की और 1955 में पाथेर पांचाली पर्दे पर आई। समीक्षकों और दर्शकों सभी ने इस फिल्म की काफी सराहना की। कोलकाता में कई हफ्ते हाउसफुल चली इस फिल्म को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्तार मिले। इनमें फ्रांस के कांस फिल्म फेस्टिवल में मिला विशेष पुरस्कार बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट भी शामिल है।
घर पर पहुंचाया गया ऑस्कर अवॉर्ड
साल 1992 में सत्यजीत रे को ऑस्कर देने की घोषणा की गई, लेकिन उस दौरान वो बहुत बीमार थे।ऐसे में ऑस्कर के पदाधिकारियों ने फैसला लिया कि ये अवॉर्ड पास पहुंचाया जाएगा। टीम कोलकाता में सत्यजीत रे के घर पहुंची और उन्हें अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। फिर करीब एख महीने बाद 23 अप्रैल 1992 को दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनका निधन हो गया।