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पंजाबी और हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री ऐश्वर्या अरोड़ा गणपति उत्सव को अपने तरीके से मना रही है। फ़िल्म ’वैर मेले दी’, ’मांझी द माउंटेन मैन’, एक गुलेल बाज’, ’उम्मीद’, ’थ्री फेसेस’, ’मैनु एक लड़की चाहिए’, ’बियॉन्ड द क्लाउड्स ’, ’हंसा एक संयोग’:दे इजाजत मुझे’, ’सुहानी सी एक लड़की’ (स्टार प्लस), मेरे साई (एंड टीवी), ’वाणी रानी’ (एंड टीवी) ’उम्मीद नई सुबह की (डीडी वन)’ जैसी फिल्मों और सीरियल्स में अपनी प्रतिभा से दर्शकों का मन जीतने वाली ऐश्वर्या से जब गणपति फेस्टिवल की बात चली तो वे बोली, “गणपति फेस्टिवल की मैं दिल से राह देख रही थी, कोरोना महामारी और लॉक डाउन के कारण मैं ही क्या, दुनिया के सब लोग उदास, मायूस है, बारिश के महीने में तो उदासी और बढ़ जाती है, ऐसे में गणपति बप्पा का हमारे घर आना, एक उत्सव ही नहीं बल्कि एक उम्मीद और रिलीफ है और फिर गणपति फेस्टिवल है भी तो बहुत ही प्यारा फेस्टिवल, जिसे हर साल बहुत आनंद के साथ सिर्फ भारतवासी ही नहीं दुनिया के कोने कोने में रहने वाले भारतीय मनाते हैं। लेकिन जिस धूम धाम से महाराष्ट्र के कई शहरों, विशेषकर पुणे और मुंबई में गणपति उत्सव मनाया जाता है, वैसे कहीं और मैंने तो नहीं देखा।
मुंबई में शिफ्ट होने के बाद से मैं भी मनाती हूं पूरे उत्साह से, अपने घर पर अभी तक बप्पा को बैठाने का सौभाग्य तो नहीं मिला है लेकिन हमारे फ़िल्म इंडस्ट्री में मेरे ढेर सारे कलीग्स गणपति महाराज को घर लाकर पूजा करते हैं। हमारे आसपास के एरिया में भी कई पड़ोसियों के घर गणपति पूजा रखी जाती है और मैं जाती हूं उन पूजाओं में शामिल होने के लिए। जो आनंद, जो खुशी महसूस होती है इस फेस्टिवल को सेलिब्रेट करने में उसकी बात ही अलग है। कई डायरेक्टर प्रोड्यूसर के घर पर भी पूजा रखी जाती है और वे मुझे इनवाइट करते हैं। इन पूजा उत्सवों में प्रसाद ग्रहण करने तो जाना ही होता है। प्रसाद के साथ-साथ खाना भी होता है। खीर चावल, पुलाव, कड़ी, मिठाईयां, मोदक तो सब जगह लाजवाब होती है। मोदक के लड्डू, गुलाब जामुन मैं जमकर खाती हूँ। कहीं डेढ़ दिन की पूजा रखी जाती है, कहीं तीन दिन, कहीं पाँच दिन, कहीं सात दिन , कहीं दस दिन पूजा रखी जाती है। उसके बाद गणपति विसर्जन की तैयारियां शुरू हो जाती है। विसर्जन समारोह जुहू, सांताक्रुज चौपाटी पर होती है, माहिम चौपाटी पर होती है और मुंबई की सबसे बड़ी चौपाटी गिरगाँव चौपाटी में मुंबई की सबसे बड़ी गणपति बप्पा की प्रतिमाएं विसर्जित की जाती है। दरअसल मुंबई के हर समुन्द्र तट और बहुत सारे तालाबों में गणपति विसर्जन होती है लेकिन जब से कोरोना पेंडमिक कि समस्या शुरू हुई तब से सार्वजनिक तौर पर बहुत बड़ी मूर्तियां स्थापित करना और सार्वजनिक तौर पर धूम धाम से सैकड़ों भक्तों के साथ समुन्द्र तट या तालाबो में विसर्जन करना वर्जित हो गया है। अब तो घरों में गणपति पूजन के पश्चात अपने ही बिल्डिंग कम्पाउंड में कृत्रिम तालाब बनाकर भगवान की प्रतिमाओं को विसर्जित की जा रही है।
बचपन में मैंने कैसे गणपति उत्सव मनाया ठीक से याद नहीं। लेकिन जब से होश संभाला मुझे गणपति भगवान के प्रति एक अलग सा जुड़ाव महसूस होने लगा, उन दिनों गणपति की पूजा उत्सव के बारे में नहीं जानती थी लेकिन भगवान गणपति की प्रतिमा देखकर मैं उनके साथ कनेक्टेड महसूस करती थी। जब से मुंबई शिफ्ट हुई इस फेस्टिवल को बहुत अच्छे से सेलिब्रेट किया। कभी फ्रेंड्स के साथ तो कभी साथी कलाकारों, एक्टर्स, डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स के साथ। इस बार ज्यादातर कलाकारों ने घर में ही इको फ्रेंडली गणेश मूर्ति बनाकर पूजा किया। शहर के बाहर से मूर्तियां नहीं मंगाई। कुछ लोग बैंड बाजे के साथ गणपति लेकर आए तो कुछ लोगों ने खुद गाना गाते हुए लेकर आए। इस अवसर का मैं हर साल इंतजार करती हूं क्योंकि आज के वक्त में जीवन की दुख, समस्याओं, आपा धापी के चलते हर इंसान अपने में खोया रहता है और उन्हें अपने समाज के साथ समय निकालने का मौका भी नहीं मिलता तो यही वो तीज त्यौहार होते है सबसे जुड़ने के लिए। जब भी ये त्यौहार आता है तब हर कोई इस त्यौहार को बहुत हर्ष उल्लास के साथ मनाते हैं और अपने परिवार के साथ इस त्यौहार का आनंद भी लेते हैं। वैसे जब मैं छोटी थी और पंजाब में रहती थी तब मुझे इस फेस्टिवल की खासियत का पता नहीं था कि यह त्यौहार कितना बड़ा है और कितना इंपॉर्टेंट है लोगों के लिए। यह बात मुझे मुंबई आकर ही तब पता चला जब मैंने हर किसी को खुशी से यह त्योहार को मनाते देखा, तब मुझे भी त्यौहार की खासियत का अंदाजा हुआ।
लेकिन एक और बात है, जब मैं छोटी थी तब से ही गणपति को अपना भाई मानती थी और आज भी उन्हें अपना भाई मानती हूं। गणपति पूजन की दुनिया मेरे लिए एक प्यारी सी दुनिया है जिसमें मैं बहुत खुश रहती हूं। कहने को तो यह सब बातें अजीब है पर मैनें सच ही कहा है। बचपन में ही मेरे पेरेंट्स गुजर गए थे तब से मेरी फैमिली गणपति को ही मानती आई है। बचपन के लड़कपन में मैं हर बात अपने गणपति भैया को कह दिया करती थी। उनसे बातें भी कर लिया करती थी और अपने हर सुख-दुख की बात रोकर या हँसकर उनसे शेयर करती थी, असज भी करती हूं। फिर जब मुंबई में आकर देखा कि यहां तो गणपति देव उत्सव बहुत धूमधाम से मनाई जाती है तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, मुझे लगा मेरे भैया ने मुझे कुछ सोच समझकर ही मुंबई में बुला लिया है। तब से मेरी जिंदगी ही बदल गयी। बस और क्या कहूं मेरे लिए ये उत्सव बहुत मायने रखती है। गणपति बप्पा मौर्या।