-के.रवि (दादा)
जहाँ हर माँ बाप का सपना होता है अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा देकर उसको डॉक्टर या अच्छा अफसर बनाया जाए वहीँ एक समाज ऐसा भी है जहाँ परिवार के द्वारा ही अपनी बच्चियों को देहव्यापार जैसे धंधे में धकेला देता है और वो समाज है बांछड़ा और बेड़िया। फिल्म निर्देशक नीरज सिंह व् श्रद्धा श्रीवास्तव द्वारा दो फिल्मो की घोषणा मुंबई में की गयी दोनों ही फिल्मे काफी सवेंदनशील मुद्दों पर आधारित हैं एक फिल्म बांछड़ा समुदाय में परंपरा के नाम पर हो रही महिला उत्पीड़न को दर्शाती है तो वहीँ दूसरी फिल्म धर्म द्वन्द की कहानी देश में हो रहे धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर है।
अपनी फिल्मो को लेकर चर्चा में रहने वाली फिल्म निर्देशक जोड़ी नीरज सिंह व् श्रद्धा श्रीवास्तव पहले भी साथ मिलकर बिकरू कानपुर गैंगस्टर बना चुके हैं वहीँ अब फिल्म निर्माता धर्मेंद्र सिंह के साथ मिलकर इन दो सवेंदनशील विषयो पर फिल्म बना रहे हैं। फिल्म की कहानी की बात करे तो कहानी का आधार उत्तर प्रदेश की पृष्टभूमि को लेकर लिखा गया है और नीरज सिंह श्रद्धा श्रीवास्तव व् अमित चतुर्वेदी ने इसको काफी रिसर्च करने के बाद लिखा है।
फिल्म बांछड़ा का शूट 28 मार्च से लखनऊ में होगा वहीँ बांछड़ा का शूट ख़त्म करने के बाद टीम धर्म द्वन्द को शूट करने निकलेगी। फिल्म को जेडी फिल्म प्रोडक्शन हाउस प्राइवेट लिमिटेड व् वाफ्ट स्टूडियोज के द्वारा बनाया जा रहा है। सह निर्माता कुणाल श्रीवास्तव व अमरीक सिंह मान हैं वहीँ फिल्म के क्रिएटिव डायरेक्टर संजीव त्रिगुणायत , एक्सक्यूटिव प्रोडूसर अवि प्रकाश शर्मा , एसोसिएट प्रोडूसर राजकमल सिंह तरकर , सिनेमेटोग्राफर राजकमल गुप्ता व राजकिरण गुप्ता है।
इस तरह के अलग विषयों को लेकर बनने वाली फिल्मों से लोगो, ज्ञात हो जाते है ,की दुनियां के भारत देश में इस तरह का भी कांड होता हैं। बेडिया बाछडा समाज बड़े पैमाने पर मध्य प्रदेश में रहता है। खास कर बाछड़ा समाज
मालवा के नीमच, मन्दसौर और रतलाम ज़िले में भी बड़े पैमाने पर रहते हैं। इतिहासकारों के अनुसार मालवा अंचल में 200 वर्षों से बेटी को सेक्स बाज़ार में धकेलने की परंपरा चली आ रही है। दरअसल इन गांवों में रहने वाले 'बांछड़ा समुदाय' के लिए बेटी के जिस्म का सौदा आजीविका का एकमात्र ज़रिया बना हुआ है, यहां वेश्यावृती एक परंपरा है।
परंतु, मध्य प्रदेश के कुछ गांव ऐसे हैं, जहां बेटियों के लिए हर सुबह और हर रात एक जैसी है। जहां एक ओर देश का पढ़ा-लिखा वर्ग भी बेटी को गर्भ में ही मारने पर उतारू है। वहीं दूसरी ओर ये गांव मिसाल हैं, क्योंकि यहां बेटी पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है। एक बेटी के जन्म से कम से कम दो पुश्तों की आमदनी हों जाती हैं।
यह मध्य प्रदेश के मालवा में बसे बेड़िया-बाछड़ा समाज की रीत हैं। वह समाज जो बेटियों की देह पर जिंदा है। देह व्यापार इन परिवारों के लिए बुरा नहीं है। बल्कि वह लघु उद्योग है, जिसे उनके पुरखे करते आए हैं और युवा वर्ग आगे ले जा रहा है।
नृत्य-संगीत की कला के साधक बने बेड़िया-बाछड़ा समाज में अब तक देह व्यापार की दस्तक नहीं हुई थी पर समाज में उन्हें बहुत अच्छी नजरों से नहीं देखा गया। वे शादी-ब्याह, बच्चे जन्म और शुभ कामों में नाचने का काम करते और पेट पालते रहे।
ऐसे में अब निर्देशक नीरज सिंह की इस विषय पर बृजेन्द्र काला, निमाई बाली , मिथिलेश चतुर्वेदी , संजीव जैसवाल के अलावा काजल नामक कालाकरो को लेकर बनने वाली फिल्म इस हाई टेक जमाने में कितना कारगर साबित होंगी ,यह तो वक्त ही बताएगा।