Advertisment

पुरुष-प्रधान समाज से लैंगिक समानता की मांग है ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’

author-image
By Mayapuri Desk
New Update
पुरुष-प्रधान समाज से लैंगिक समानता की मांग है ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’

प्रकाश झा द्वारा निर्मित और अलंकृता श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ हमारे तथाकथित पुरुष-प्रधान समाज से लैंगिक समानता की मांग है। लेकिन क्या होगा, जब महिलाओं ने इसलिए विरोध में स्वर बुलंद किया कि आखिर वह चाहती क्या हैं? खैर, इस सवाल का सर्वश्रेष्ठ उत्तर 21 जुलाई को रिलीज होने जा रही फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ के माध्यम से किया जा सकता है, जिसके प्रमोशन के सिलसिले में प्रोड्यूसर-डायरेक्टर एवं कलाकार दिल्ली पहुंचे और मीडिया के सामने अपनी और फिल्म की बात रखी।

मीडिया से बातचीत में एकता कपूर ने कहा, 'मुझे सीबीएफसी से कोई परेशानी नहीं है। मुझे समस्या पूरे समाज से है, जो इसी चीज के बारे में अपने एक अलग तरीके से बात करता है। इसलिए असल में सीबीएफसी समाज का ही आईना है। अगर हम इसे सीबीएफसी से जोड़ देते हैं तो असल में हम समस्या को कम करके आंकेंगे। यह कहीं अधिक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि अगर आप किसी महिला से बात करें, तो वह आपको हर दिन की कम-से-कम 5-10 घटनाएं ऐसी बता देगी। वह एक माह की ऐसी 5-10 घटनाएं गिनवा देगी, जहां उसे एक 'महिला' होने के नाते खुद को अधिक मजबूती से साबित करना पड़ा हो।’

हाल ही में जारी फिल्म की पहली झलक में 'मिडल फिंगर' के स्थान पर लिपस्टिक दिखाई गई है। इस बारे में एकता ने कहा, 'यह उंगली, यह लिपस्टिक उस समाज के लिए है, जो हमें बाहर नहीं आने दे रही है और हमारी आवाज दबा रही है। यह सीबीएफसी के बारे में नहीं, बल्कि एक विचारधारा के बारे में है।यह पुरुषों के बारे में भी नहीं है। दरअसल, मैं 'लिपस्टिक फॉर मेन' नामक एक अभियान भी चलाना चाहती हूं, क्योंकि ऐसे बहुत से पुरुष हैं, जिन्होंने हमें ऐसी महिलाएं बनाया, जो आज हम हैं। ऐसे ही एक पुरुष मेरे पिता हैं। बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं, जो चाहती हैं कि बेटा पैदा हो और इसलिए अपनी बहुओं को गर्भपात करवाती हैं। इसलिए यह सिर्फ पुरुषों या महिलाओं के बारे में नहीं है, बल्कि विचारधारा के बारे में है। यह पितृसत्‍ता के बारे में है।'

फिल्मकार प्रकाश झा ने कहा, ‘यह फिल्म भारत के लोगों की पुरानी विचारधारा के लिए एक झटके की तरह है। सेंसर बोर्ड ने 23 फरवरी को यह कहते हुए फिल्म को प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया था कि यह फिल्म कुछ ज्यादा ही महिला केंद्रित है और उनकी फैंटसीज के बारे में बताती है। जबकि, ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ एक छोटे से शहर में रहने वाली चार महिलाओं की कहानी है, जो अपने लिए आजादी की तलाश करने की कोशिश करती हैं। मैं कहना चाहूंगा कि ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ एक खूबसूरत फिल्म है। यह समाज के उथले और दमनकारी नियमों को तोड़ती है, जिनके मुताबिक महिलाएं अपनी कल्पनाओं के बारे में खुलकर बात नहीं कर सकतीं। वह जिंदगी को केवल पुरुषों की मानसिकता के अनुसार देखने की आदी हैं और सीबीएफसी के पत्र से यही जाहिर होता है।’ उन्होंने कहा, ‘जहां अन्य देश इस आजादी को एक नए तरीके से स्वीकार कर रहे हैं और एक नए स्तर पर पहुंच रहे हैं, वहीं हमारे देश की पुरानी विचारधारा के लिए यह एक झटके की तरह है। वह यह नहीं जानते कि प्रमाणपत्र देने से इंकार करके वे इस सोच का दमन नहीं कर सकते।’

फिल्म में अहम किरदार निभाने वाली रत्ना पाठक शाह ने कहा, ‘मुझे पता है कि कुछ ऐसी चीजें हैं, जिसके बारे में हम पीढ़ी के अंतर, अवसाद, आदि की तरह खुले तौर पर बात नहीं करते हैं। इस वजह से मुझे लगता है कि हमारे समाज में असमान विकास है। कुछ लोग अभी भी स्वीकृति के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जब आप आर्थिक रूप से निर्भर होते हैं और दैनंदिन मामलों में कोई वास्तविक बात कह नहीं पाते हैं, तो इसका मतलब है कि वास्तव में समाज में आपका पूरे दिल से स्वागत नहीं किया जाता है। बहुत सारी लड़कियां हैं, जो अमूमन ऐसी चीजों का सामना करती हैं। इसके लिए मुझे लगता है कि भारत को सेक्स शिक्षा की निश्चित ज़रूरत है और यह फिल्म इसमें बहुत मदद कर सकती है।’

फिल्म की विशिष्टता के बारे में पूछने पर कोंकणा सेन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह फिल्म उड़ने वाले रंगों से गुजरती है, क्योंकि यह एक अपवाद है। मुझे लगता है कि चीजें तुरंत नहीं बदलती हैं। यह वक्त लेती हैं, लेकिन धीरे-धीरे मैं यह सब कुछ होते देखने की उम्मीद कर रही हूं। हालांकि, हम जानते हैं कि चीजें रातभर में नहीं बदल सकती हैं। इसे बदलने के लिए कुछ और वक्त देने की जरूरत है।’

'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' की कहानी छोटे शहरों की चार महिलाओं पर आधारित है, जो आजादी की तलाश में है, लेकिन समाज इन्हें रोकने की कोशिश में लगा हुआ है। लेकिन, ये चारों भी कम नहीं हैं और जद्दोजहद कर समाज के बंधनों से मुक्त होने की लड़ाई लड़ती रहती हैं। कोंकणा सेन शर्मा, रत्ना पाठक शाह, विक्रांत मैसी, अहाना कुमरा, प्लाबिता बोरठाकुर और शशांक अरोड़ा ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। बता दें कि निर्देशक अंलकृता श्रीवास्तव और इसके निर्माताओं ने सेंसर बोर्ड से हरी झंडी हासिल करने के लिए काफी लंबी लड़ाई लड़ी है। सेंसर बोर्ड ने फिल्म को 'असंस्कारी' बताया था और इसे रिलीज की इजाजत देने के लिए तैयार नहीं था। आखिरकार फिल्म के निर्माता 'द फिल्म सर्टिफिकेशन अपेलेट ट्रिब्यूनल' गए, जिसने फिल्म के कुछ सीन कट करके इसे 'ए' सर्टिफिकेट के साथ रिलीज करने की इजाजत दे दी।

publive-image Prakash Jhapublive-image Ekta kapoorpublive-image Plabita Borthakur, Ratna Pathak Shah, Prakash Jha, Ekta kapoor, Alankrita Shrivastava, Aahana Kumra, Konkona Sen Sharmapublive-image Aahana Kumrapublive-image Konkona Sen Sharmapublive-image Ratna Pathak Shahpublive-image Plabita Borthakur

publive-image

publive-image Prakash Jhapublive-image Ekta Kapoor, Aahana Kumra, Prakash Jha, Alankrita Shrivastava
Advertisment
Latest Stories