-के.रवि (दादा)
महाराष्ट्र की तीन महिलाओं को नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। केंद्र सरकार द्वारा यह पुरस्कार महिलाओं, विशेष रूप से समाज में पिछड़ी और उपेक्षित महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए विशेष सेवाओं के क्षेत्र में उनके अमूल्य कार्य के लिए प्रतिष्ठित महिलाओं और संगठनों को सम्मानित करने के लिए दिया जाता है।
इस वक्त महाराष्ट्र की तीन महीलाओ को ; सायली नंदकिशोर आगवने को (नारी शक्ति पुरस्कार 2020), वनिता जगदेव बोराडे को (नारी शक्ति पुरस्कार 2020), और कमल कुंभार को (2021 के लिए नारी शक्ति पुरस्कार) अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में आयोजित एक विशेष समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा यह पुरस्कार प्रदान किया गया। आज कुल 29 उल्लेखनीय व्यक्तियों को सम्मानित किया गया।
गौरतलब हो की सायली नंदकिशोर आगवने को कठिन परिस्थितियों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय शास्त्रीय नृत्य को बढ़ावा देने में, उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए नारी शक्ति पुरस्कार 2020 से सम्मानित किया गया है।
जन्मजात डाउन सिंड्रोम वालि सायली आगवाने ने नौ साल की उम्र से कथक सीखना शुरू कर दिया था। तब से उन्होंने 100 से अधिक नृत्य कार्यक्रमों और कार्यक्रमों में प्रदर्शन किया है। वह आज भी डाउन सिंड्रोम से पीड़ित करीब 50 बच्चों को डांस सिखाती हैं।
इससे पहले राज्य के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने उन्हें 'द बेस्ट इंडिविजुअल पर्सन विद डिसेबिलिटी (महिला)-2012' की श्रेणी में 'स्पंदन राष्ट्रीय पुरस्कार' से सम्मानित किया था।
यह नारी शक्ति पुरस्कार केंद्र सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा दिया जाता है। यह पुरस्कार व्यक्तियों और संगठनों द्वारा किए गए असाधारण कार्यों के सम्मान में दिया जाता है। कई महिलाएं समाज में सकारात्मक बदलाव लाती हैं, महिलाएं अक्सर 'गेम चेंजर' की भूमिका निभाती हैं, यह पुरस्कार महिलाओं को समाज की प्रगति में समान भागीदार के रूप में पहचानने का एक प्रयास है।
वर्ष 2020 और 2021 के नारी शक्ति पुरस्कार के विजेता विभिन्न क्षेत्रों से हैं। इनमें उद्यमिता, कृषि, नवाचार, सामाजिक कार्य, कला और शिल्प, एसटीईएमएम, वन्यजीव संरक्षण, भाषा विज्ञान, मर्चेंट नेवी, शिक्षा, साहित्य और विकलांगता अधिकार शामिल हैं।
इन पुरस्कार विजेताओं के काम में उनकी उम्र और भौगोलिक स्थिति कभी भी बाधा नहीं रही है। साथ ही, संसाधनों की कमी उनके सपनों को पूरा करने में आड़े नहीं आई। उनकी अथक भावना समाज और युवा भारतीयों के दिमाग को लैंगिक भेदभाव के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित करती रहेगी।