.बात उन दिनों से जुड़ी है जब अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से चुनाव लड़ रहे थे और मैं छोटा बच्चा था. लेकिन उससे पहले अमिताभ और मेरे शहर इलाहाबाद(अब प्रयागराज) से उनकी शुरुवात पर एक सरसरी नजर:
लिविंग लिजेंड और धरती ग्रह के सबसे प्रभावशाली सितारों में से एक #amitabhbachchan को जन्मदिन की हार्दिक शुभ कामनाएं. वह अपने जीवन के 80 वें सोपान पर हैं. मैं उनके लिए स्वास्थ और अति ऊर्जावान बने रहने की कामना करता हूं. आज 11 अक्टोबर
2022 है.आजसे ठीक 80 साल पहले 1942 में हिंदी साहित्यकार/कवि हरिबंश राय बच्चन और तेजी बच्चन को एक बच्चा पैदा हुआ था. पिता ने '42 की आज़ादी के साल में बच्चे को अनोखा नाम दिया इंकलाब हरिबंश राय बच्चन. बच्चा बड़ा हो गया और आगे चलकर भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमिताभ बच्चन के नाम से धूमकेतु की तरह चमका. बालक अमिताभ ने इलाहाबाद में बॉयज हाईस्कूल से स्कूली शिक्षा की शुरुवात किया, बाद मे वह शेरवुड कालेज शिमला गया. शिक्षा पूरी करने के बाद यह इलाहाबादी छोरा कलकत्ता निकल गया, लेकिन 6'2" का आदमी किसी साधारण नौकरी के लिए नही बना था. किश्मत ने कुछ और ही रखा था उनके लिए. फिल्मफेयर की प्रतियोगिता जीतकर वह मुम्बई चले गए.
अमिताभ बच्चन के पिता नेहरू/ गांधी परिवार के बेहद करीबी और प्रिय थे. कहा जाता है श्रीमती इंदिरा गांधी के रिफरेंस के साथ वह नरगिस दत्त, सुनील दत्त और ख्वाजा अहमद अब्बास से मिल पाए थे. तीनों ने उनकी मदत किया. सुनील दत्त की 'रेशमा और शेरा' की छोटी सी भूमिका के साथ उन्हें लांच किया गया था. ख्वाजा अहमद अब्बास द्वारा निर्देशित 'सात हिंदुस्तानी' में उन्हें पूर्ण भूमिका मिली. इस फिल्म में सात नायकों में से वह एक थे... बाकी इतिहास है. तब उस समय, 'सात हिंदुस्तानी' के पोस्टर पर उनका छोटा सा चेहरा बड़ी मुश्किल से दिखता था, अब उसी फिल्म के पोस्टर जब कभी लगाए जाते हैं तो बाकी के छः चेहरे दुबके हुए दिखते हैं. समय ने उनका मूल्यांकन किया. एंग्रीमैन, सुपर स्टार, महानायक, मिलेनियम स्टार ना जाने कितने सम्बोधन उनके साथ जुड़ते गए.
.... वही इलाहाबादी छोरा अपने गृह नगर इलाहाबाद से राजनीति के धुरंधर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा से संसदीय निर्वाचन में ताल ठोंक लिया.अमिताभ बच्चन ने 2 लाख वोट के भारी अंतर से चुनाव जीता. एक अदभुत मौका था वह. चुनाव प्रचार के दौरान हम अपने शहर इलाहाबाद में छात्र थे, कई मुलाकातें हम छात्रों की चुनाव प्रचार के दौरान उनसे हुआ करती थी. पहली मुलाकात से दिल पर उकेरा एक प्रसंग याद है-
वो मेरे मोहल्ले में आए थे. मैं बच्चा था पर बगल में मंच पर बैठने की जगह मिली.लोग चिल्ला रहे थे. ताली बजा रहे थे.शोर मचा रहे थे. उन हंगामों की परवाह न करते हुए मैंने उनको चंद अल्फाजों में अपना परिचय दिया-"साहब, मैं तनवीर जैदी हूं, आपका सबसे बड़ा फैन हूं." मैं खुश नसीब था कि वह मेरी बातों पर न सिर्फ ध्यान दिए, बल्कि मेरा हाथ भी थाम लिए. लगभग 5 मिनट के लिए मेरे हाथ से, हालांकि उनकी आंखें मंच पर और सहयोगियों को देखने और निरीक्षण करने में व्यस्त थी, उनके हाथ मे मेरा हाथ मेरे लिए अकादमी पुरस्कार की ट्रॉफी जैसा था. मुझे स्वर्ग की तरह लगा क्योंकि मुझे पता था कि वह एक प्रिय व्यक्तित्व हैं, एक जीवित किंबदंती हैं. वह अपने प्रशंसनीय गुणों के लिए प्रसिद्ध हैं जो औरों से अलग खड़े हैं. किसी से मिलते हुए उनका दोस्ताना व्यवहार, परोपकारी कार्य और विनम्रता अज्ञात नही है. काम के प्रति उनका समर्पण सभी के लिए प्रेरणा है. उनकी भारी टोन आवाज और सिल्वर स्क्रीन पर निभाए गए उनके किरदार ने तालियां और देश का प्यार जीता है. जब वे इलाहाबाद में चुनाव के दौरान हमारे नेता के रूप में सामने थे, मेरे मन मे सिनेमा के प्रति मोह भरता जा रहा था.
2009 में मेरी फिल्म 'काहे गए परदेश पिया' के लिए बच्चन साहब ने मुझे शुभ कामना संदेश भेजा था. उनके भाव और आशीर्वाद की खबर को सभी समाचार पत्रों ने समाचार बनाया था. मैं उनके इस बड़प्पन का सदैव आभार मानता हूं और मानता रहूंगा और बस यही कहूंगा-" तुम जीयो हज़ारों साल !"