मंुबई में जन्में मगर पंजाबी संगीत जगत में बहुत बड़ा नाम कमाने वाले संगीतकार जतिंदर शाह अब तक पचास से अधिक पंजाबी म्यूजिक एलबम,115 पंजाबी फिल्मों व पचास से अधिक पंजाबी सिंगल गानों को अपने संगीत से संवार चुके हैं। जतिंदर शाह ने ‘सेकेंड हैंड हसबैंड’ और ‘दिल्ली वाली जालिम गर्लफे्रंड’ जैसी हिंदी फिल्मों में भी संगीत दिया है। इन दिनों वह ‘वीवायआरएल’ का पंजाबी म्यूजिक एल्बम ‘‘तेरे बाजों’’ काफी लोकप्रिय हो रहा है। इसके गीत कुमार ने लिखे हैं। इसे संगीत से संवारने के साथ ही इसके वीडियो का निर्देशन जतिंदर शाह ने किया है। इस गीत को श्रेया घोषाल ने गाया है। यह श्रेया घोषाल का पहला पंजाबी गीत है। इसके प्रेम कहानी वाले इस गीत के म्यूजिक वीडियो में प्रतीक बब्बर और सिमी चहल नजर आ रहे हैं।
प्रस्तुत है जतिंदर शाह से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश..
इस गाने को बनाने का ख्याल आपके दिमाग में कैसे आया?
- एक दिन मशहूर गीतकार कुमार जी ने मुझे यह गाना सुनाया, तो मेेरे अंतर्मन ने कहा कि इसे संगीत से सजाया जाना चाहिए। मैंने गीत की पंक्तियांे में निहित भावों को समझकर संगीत की धुन बनायी, जिसे मंैने युनिवर्सल संगीत कंपनी को सुनाया। सभी को गाना काफी पसंद आया और तय हुआ कि यह गाना श्रेया घोषाल जी से गवाया जाए। गाना रिकाॅर्ड होने के बाद जब बात इसका वीडियो बनाने की आयी, तो मैंने कहा कि हमें कहानी के अनुसार इस वीडियो में प्रतीक बब्बर और सिमी चहल चाहिए। बात बन गयी। उसके बाद हमने प्रतीक बब्बर से मिला और इन्हें यह गाना सुनाने के अलावा म्यूजिक वीडियों में इस गाने के योग्य जो कहानी है, वह सुनायी। प्रतीक बब्बर का बड़प्पन है कि उन्होंने तुरंत हामी भर दी। माना कि मैं बतौर संगीतकार बाइस वर्ष से काम करता आ रहा हूंू। मैंने पंजाबी व हिंदी संगीत एल्बमांे के अलावा पंजाबी व हिंदी फिल्मों में भी संगीत दिया है। मगर बतौर वीडियो निर्देशक मेेरा कैरियर अभी शुरू हुआ है। इसका म्यूजिक वीडियो मैने ही निर्देशित किया। प्रतीक बब्बर ने मेरी प्रतिभा पर यकीन कर मेरे निर्देशन में इस म्यूजिक वीडियो से जुड़ने का निर्णय लिया, यह मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी की बात रही।
अभी तक मेरा खास काम भी बाहर नहीं आया है। मगर प्रतीक ने बिना मुझसे कोई सवाल जवाब किए इस म्यूजिक वीडियो को किया। मुझसे सिर्फ इतना पूछा कि दो दिन में शूटिंग पूरी हो जाएगी। मैंने हामी भर दी। प्रतीक बब्बर मुझसे काफी युवा हैं, मगर उनका अनुभव मुझसे काफी ज्यादा है। प्रतीक ने न सिर्फ मुझ पर यकीन किया, बल्कि सेट पर मुझे काफी सपोर्ट किया। प्रतीक के पास सिर्फ दो दिन का वक्त था, उसके बाद उन्हें लंदन जाना था। मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे प्रतीक बब्बर के साथ इतनी जल्दी काम करने का अवसर मिल गया।
आपको इस गाने में क्या खास बात नजर आयी?
- देखिए, पहली बात तो यह एक मेलोडियस गाना है। दूसरी बात हर इंसान को लगता है कि उसने कुछ खास काम किया है। वही उसकी ताकत होती है। इस गाने मंे मेरी उपलब्धि यह है कि दर्शकों की तरफ से बहुत अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। इस म्यूजिक वीडियो को बनाते हुए मेरी उपलब्धि यह रही कि मुझे प्रतीक बब्बर जैसे प्रोफेशनल कलाकार अच्छे इंसान के साथ काम करने का अवसर मिला। प्रतीक जी कमाल के कलाकार हैं। हमेशा की तरह इस गाने को श्रेया घोषाल ने कमाल का गाया है। यह गाना अच्छा इसलिए भी बन गया, क्योंकि इस गाने में मुझे सभी बड़ी हस्तियों के साथ काम करने का अवसर मिला।
इस गाने के संगीत की धुने बनाते समय किन बातों पर खास ध्यान दिया?
- इसके संगीत की धुने मेलोडियस हैं। हमने इसकी धुन गीत के अल्फाज को ध्यान में रखते हुए बनायी। देखिए, आप भी जानते होंगे कि शब्द मंे ही सुर होता है। मैने श्रेया घोषाल को अपनी फिल्मों में भी गवाया है। मगर यह उनका पहला पंजाबी गाना है। जब मैने उन्हे गाने के अल्फाज सुनाए तो वह खुद काफी खुश हुई। जब हमने इसकी योजना बनायी, तब लाॅकडाउन था। ऐसे मंे मिलना संभव नहीं था। श्रेया घोषाल ने अपने यहां एक स्टूडियो बना रखा है। सी स्टूडियो में काम कर, अपनी आवाज में गाना रिकार्ड कर श्रेया घोषाल ने हमारे पास भेजा। उसमें कुछ करेक्शन थे, वह करके मैंने उन्हंे सूचित किया, तो उन्होेने दोबारा उसे गाकर हमारे पास भेजा। फिर हमने कोरोना की सभी सवाधानियों को बरतते हुए गाने को रिकाॅर्ड किया। पंजाबी संगीत जगत में उनकी इस गाने की आवाज की काफी प्रशंसा की जा रही है। बाॅलीवुड में भी काफी लोगों से मेरे संपर्क में हैं। सभी कह रहे हंै कि श्रेया घोषाल ने बहुत बेहतरीन तरीके से गाया है। प्रतीक बब्बर को भी पंजाब में काफी पसंद किया जा रहा है। प्रतीक बब्बर के पिता राज बब्बर का पंजाब से काफी गहरा व पुराना संबंध है। हमारी पंजाबी इंडस्ट्री बाॅलीवुड के पैरलल चलती आ रही है। पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री तो ब्लैक एंड व्हाइट सिनेमा के जमाने से लाहौर से चलती आ रही है। बीच मंे जब पंजाबी फिल्में बनना बंद हो गयी, तो राज बब्बर जी को दुःख हुआ। एनएसडी से निकलने के बाद जब उनकी फिल्म ‘आज की आवाज’ सफल हुई, तो वह पंजाब गए और पंजाब के फिल्मकारों से कहा कि वह फिल्म बनाए, और वह मदद करेंगे। उन्होंने ‘चन्न परदेसी’, ‘मरही दा दीवा’, ‘लौंग द लश्कारा’ जैसी कई सफलतम पंजाबी फिल्मों में अभिनय किया। आज की तारीख में पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री के लोग प्रतीक बब्बर को लेकर काफी उत्साहित हैं। लोग प्रतीक के प्रश्ंासक हंै कि वह पंजाबी फिल्मों को अलग नहीं समझते।
क्या वजह है कि आप पंजाबी एलबम व पंजाबी फिल्मों के लिए ही ज्यादा संगीत देते हैं?
- मैंने ‘सेकेंड हैंड हसबैंड’ सहित कुछ हिंदी फिल्मों के लिए संगीत दिया है और अभी भी कुछ हिंदी फिल्मों में संगीत दिया है। वास्तव में हर इंसान की अपनी एक ताकत होती है। तो वहीं उसकी कुछ अच्छाईयां व बुराईयां भी होती हैं। मेरे अंदर भी कुछ बुराईयां हैं। मैं बहुत अड़ियल किस्म का इंसान हँू। मैं सोलो संगीतकार के रूप में ही फिल्में करना पसंद करता हँू। मैंने अब तक सोलो संगीतकार के रूप में 115 पंजाबी फिल्में की होगी। संगीतकार के तारे पर मुझे पूरा एल्बम सोलो करने में ही मजा आता है। मंुबई में रहते हुए भी मैं पंजाबी फिल्मों के लिए संगीत देता हँू।
इन दिनों हिंदी की बजाय पंजाबी संगीत काफी लोकप्रिय है. इसकी कोई खास वजह?
- मेरी समझ से जब से सिनेमा शुरू हुआ है, तब से पंजाबी संगीत लोकप्रिय रहा है। हमारे देश में कहावत है-‘‘संगीत राजस्थान में जन्म लेता है, जवान पंजाब में होता है और उसका बुढ़ापा बंगाल में बीतता है। आप बंगाल मे देखिए, हर इंसान को संगीत की बेसिक शिक्षा दी जाती है। पंजाब में हम सीखते कम हैं, मगर जवान होने का मतलब खूबसुरत दौर। जब इंसान जन्म लेता है, तो उसमें कितनी तकलीफंे होती हैं। सारे बच्चे एक जैसे लगते हैं। लेकिन हम भाग्यशाली है कि साठ के दशक से पंजाबी संगीत लोकप्रिय रहा है। ओपी नय्यर सहित कई पंजाबी संगीतकारों का ही बाॅलीवुड में भी बोलबाला रहा है। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल गोवा से रहे हों, पर आनंद बख्शी पंजाब से थे, इसलिए लक्ष्मीकांत प्यारेलाल भी पंजाबी संगीत की धुने काफी बनाते थे। लेकिन बाॅलीवुड का मतलब यही है कि इसमें हिंदी, पंजाबी गुजराती, मराठी, भोजपुरी सभी रंगों को पेश कर सकते हैं।
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