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भोजपुरी इंडस्ट्री को एक अलग मुकाम पर लेकर जाना है- मनोज सिंह टाईगर

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By Amrita Mishra
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भोजपुरी इंडस्ट्री को एक अलग मुकाम पर लेकर जाना है-  मनोज सिंह टाईगर

ज्यादातर फिल्मों में कॉमेडी करने वाले मनोज सिंह टाईगर की अगली फिल्म ‘हल्फा मचाके गईल’ है। बताशा चाचा के अपने किरदार को आइकॉनिक बनाने वाले मनोज जी इस फिल्म में मामा बने हैं तो चलिए मामा बने मनोज सिंह टाईगर से फिल्म और उनके बारे में पता करते हैं..

फिल्म के अपने किरदार के बारे में कुछ बताईये ?

फिल्म में मेरा किरदार हीरो के मामा का है। मैं उसे हर काम में सपोर्ट करता हूं चाहे अच्छा हो या बुरा मैं हर तरह से उसके साथ रहता हूं। इस चीज में मेरी बहन भी मेरा सपोर्ट करती है।

बताशा चाचा का किरदार आपका काफी लोकप्रिय हुआ था तो इस फिल्म में भी कोई ऐसा किरदार देखने को मिलेगा ?

देखिए बताशा चाचा का किरदार मेरा अब तक का सबसे ज्यादा पसंद किये जाने वाले किरदार है पर इस फिल्म में वैसा कुछ नहीं है। इस फिल्म का मेरा किरदार उससे काफी अलग है क्योंकि उसमें मैं चाचा था और इसमें मामा हूं। पर दर्शकों को मेरा ये किरदार भी उतना ही पसंद आयेगा।

आप अपने हर किरदार को बखूबी निभाते हैं चाहे वो कॉमेडी हो या निगेटिव हो?

देखिए मैं एक थियेटर एक्टर हूं और मैंने एक्टिंग की बारिकीयों को वहीं से समझा है। मेरी कॉमेडी को खूब सराहा जाता है और उतना ही मेरे विलेन के किरदार को पसंद किया जाता है। बॉलीवुड के विलेन बाद में कॉमेडी करते दिख रहे हैं जबकि मैंने पहले कॉमेडी की बाद में विलेन बना और मुझे दोनों ही जॉनर के दर्शकों ने काफी पसंद किया।

आपको कॉमेडी और निगेटिव किरदार में कौन सा ज्यादा अच्छा लगता है ?

दोनों ही जॉनर एक दुसरे से बेहद अलग हैं। कॉमेडी ने पहचान दिलाई और निगेटिव किरदार कर मुझे बेहद खुशी महसूस हुई। एक अभिनेता के तौर पर एक ही जॉनर में मैं काम नहीं करना चाहता हूं बल्कि एक्सपेरिमेंट करना चाहता हूं अपने किरदार में और एक्टिंग में। publive-image

आप थिएटर भी करते हैं तो फिल्मों में एक्टिंग करना कितना अलग है ?

दोनो ही माध्यम एक दूसरे से बिल्कुल अलग है। थिएटर में आपको अपने आवाज से लाउड होना पड़ता है ताकि आप दर्शकों तक अपनी आवाज पहुंचा सके और फिल्मों में आपको अपने एक्सप्रेशन से लाउड होना पड़ता है। फिल्मों के लिए आपको रिलीज होने तक का इंतजार करना पड़ता है जबकी थिएटर में आपको रिस्पॉस फेस टू फेस मिल जाता है। अगर आपके डायलॉग पर लोग हंस नहीं रहे और तालियां नहीं बजा रहे तो मतलब उन्हें आपका काम पसंद नहीं आया। थिएटर में आपको लाइव ऑडियंस के सामने परफॉर्म करना होता है जबकि फिल्मों में रिटेक्स ले सकते हैं।

एक्टिंग में आपकी दिलचस्पी कब और कैसे आयी ?

एक्टिंग में तो बचपन से ही दिलचस्पी थी। रामलीला के दौरान से ही मैने मन बना लिया था कि एक्टिंग ही करनी है। फिल्मी मैग्जीन पढ़ा करता था और ज्यादातर ये देखता था कि छोटे कद वाले भी क्या हीरो बन सकते हैं क्योंकि मेरी हाईट कम है। मैं फिल्मों में काम करने के लिए घर से भागकर मुंबई चला गया और आखिरकार मैंने जो सोचा वही हुआ और मैं एक्टिंग ही कर रहा हूं।

भोजपुरी फिल्मों के गाने और फिल्में ऐसी क्यों होती है जिसे फैमिली साथ बैठकर देख नहीं सकती ?

देखिए ये सब सिंगल म्यूजिक एलबम की वजह से हुआ है। अपने गानों को हिट कराने की वजह से फूहड़पन इस इंडस्ट्री में आयी है पर कुछ एक्टर्स हैं जो इस सबके बावजूद अच्छी फिल्में बनाते हैं जिनमें निरहुआ की कुछ बेहतरीन फिल्में हैं। अब तो काफी हद तक बदल गया है और आने वाले समय में भोजपुरी फिल्में और भी बेहतरीन बनेंगी जिसकी शुरूआत हो गई है। गबरू नाम का एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है जिसकी शुरूआत हो गई है और इस फिल्म के जरिये भी बहुत कुछ बदलने वाला है।

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