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2.0 मूवी रिव्यू आपके टिकट खरीदने लायक है या नहीं - यहाँ पढ़ें

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By Mayapuri Desk
2.0 मूवी रिव्यू आपके टिकट खरीदने लायक है या नहीं - यहाँ पढ़ें
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साल की सबसे बहुप्रतीक्षित फिल्म आ चुकी है! रजनीकांत और अक्षय कुमार के फैंस को इस फिल्म का तबसे इंतज़ार था जबसे इसका ट्रेलर रिलीज़ हुआ था. 2 .0  रजनीकांत की सुपरहिट फिल्म 'रोबोट' का दूसरा भाग है!  दर्शक शंकर जैसे निर्देशक से क्या उम्मीद कर सकता है? उसी का नतीजा है फिल्म 2 .0

फिल्म की शरुआत होती है एक आत्महत्या से, जहाँ 1  बूढ़ा व्यक्ति मोबाइल के टावर से कूदकर अपनी जान दे देता है। फिर हमारी मुलाक़ात होती है वैज्ञानिक, डॉ. वसीगरन यानि रजनीकांत से और उनकी असिस्टेंट नीला  यानि एमी जैक्सन से जो की इंसान जैसी दिखने वाली एक रोबोट हैं।

एक दिन अचानक दुकानों से, लोगों के हाँथों से मोबाइल फ़ोन्स हवा में उड़ने लगते हैं और इस घटना की तहकीकात के लिए डॉक्टर वसीगरन को बुलाया जाता है और जब मोबाइल फ़ोन्स से बना एक बड़ा पंछी शहर पर हमला करना शुरू करता है तब डॉ. वसीगरन को मजबूरन थोड़े से पागल दिमाग वाले रोबोट चिट्टी को वापस बुलाना पड़ता है।

2.0 की कहानी का प्लाट बहुत ही जाना पहचाना सा है। इस सुपरनैचरल घटना में कोई भी रहस्य नहीं होता है और दर्शकों को हारकर पक्षिराजन यानि की अक्षय कुमार की फ्लैशबैक कहानी का इंतज़ार करन पड़ता है, जिसमें वो 1 पक्षी वैज्ञानिक होते हैं, अब इसके पीछे की कहानी हम आपके फिल्म देखने पर छोड़ देते हैं।  पर फ्लैशबैक की ये कहानी भी दर्शकों के दिलों में कोई खास छाप छोड़ने में कामयाब नहीं होती है और कहानी निर्देशक की फिल्म्स 'जेंटलमैन' और 'इंडियन' जैसी फिल्मों की याद दिलाती है। फर्स्ट हाफ में फिल्म, हमारे सामन्य जज़्बातों को बस थोड़े अलग तरीके से एक सफर पर ले जाती है और किसी भी सामन्य डरावनी फिल्म की तरह ही आगे बढ़ती है अंतर सिर्फ इतना होता है की इस फिल्म में आत्मा के आने के पीछे साइंटिफिक लॉजिक होता है, और वो माइक्रो फोटोन्स से बनी होती है. चिट्टी की एंट्री के बाद भी फिल्म दम नहीं भरती है।  हाँ, हमें चिट्टी और उस बड़े पंछी के बीच में एक खतरनाक लड़ाई देखने को मिलती है जैसा की हमे ट्रेलर देखने पर पता चलता, पर क्या दर्शक सिर्फ ये देखने के लिए टिकट खरीद कर गए थे? नहीं! यह फिल्म इसके पहले पार्ट जैसे ना कोई ठहाके लगवा पाती है और ना ही कोई नयेपन से हमे आश्चर्यचकित करती है। संछेप में अगर कहें तो कोई भी किरदार और कहानी दर्शकों के दिलों में जगह बनाने में असमर्थ रही! सब प्लाट की अगर बात करें तो पहली फिल्म के विलन डॉ. बोहरा के बेटे धीरेन्द्र बोहरा यानि की सुधांशु पांडे के किरदार पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया गया है, फिल्म के गाने भी कुछ ख़ास मनोरंजक नहीं हैं. फिल्म में एक अच्छी कहानी और सीटी मार डायलॉग्स की कमी है पर दर्शकों के लिए 'विज़ुअल डिलाइट' है और फिल्म को 2  डी में भी पसंद किया जायेगा। छायांकन, एडिटिंग और VFX  की पूरी टीम ने उम्दा काम किया है।

मायापुरी की तरफ से इस को फिल्म को 5 में से 3 .5  सितारे दिए जाते हैं|

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