मूवी रिव्यू: 1962 में चीन भारत के युद्ध के जांबाज शहीद का कारनामा '72 आर्स मार्टियार हू नैवर डाइड'

author-image
By Shyam Sharma
New Update
मूवी रिव्यू: 1962 में चीन भारत के युद्ध के जांबाज शहीद का कारनामा '72 आर्स मार्टियार हू नैवर डाइड'

रेटिंग***

इन दिनों देश भक्ति की फिल्मों को  हाथों हाथ लिया जा रहा है । इसका ताजा उदाहरण है आर्मी बैकग्राउंड पर बनी उरी कांड पर आधारित फिल्म ‘ उरी- सर्जीकल स्ट्राइक’ । इस सप्ताह रिलीज  निर्देशक एक्टर अविनाश ध्यानी की फिल्म‘ 72 आर्स मार्टियार हू नैवर डाइड’ भी 1962 में चीन भारत की लड़ाई पर आधारित एक ऐसे सच्चे भारत के जांबाज सपूत गढवाल राइफल के जवान राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की है जिसने एक पूरी चीनी टुकड़ी के साथ अकेले लड़ते हुये  72 घंटों  में  तीन सो चीनी मारे। इसके बाद ये जांबाज अपनी जमीं के लिये षहीद हो गया था।

कहानी

जसवंत सिंह रावत एक बेहद गरीब परिवार का बड़ा बेटा था। उसने अपने गरीब बाप यानि वीरेन्द्र सक्सेना और मां यानि अलका अमीन के अभावों को खत्म करने के लिये आर्मी ज्चाइ्रन कर ली। जसवंत अपने घर छुट्टीयों पर आया है। उसके बाद उसे पता चलता है कि चीनीयों के साथ युद्ध शुरू होने की आशंका है। पहले जसवंत को आसाम भेजा गया लेकिन बाद में उसकी टुकडी को अरूणांचल प्रदेश भेज दिया गया। जंहा उसकी पलटन को डिफेंस तैयार करना है। वहीं पर जसवंत की मुलाकात वहां के गांव की एक लड़की नूरा यानि येशी देमा से होती है । नूरा उसे देखते ही प्यार करने लगती है। एक दिन नूरा जसवंत से वादा करती है कि वक्त आने पर वो भी उसके साथ चीनीयों के खिलाफ लड़ेगी और उसकी तरफ आई गोली को अपनी छाती पर ले लेगी। अचानक जसवंत की टुकड़ी को पता चलता है कि चीनीयों की पूरी फौज उनकी तरफ बढ़ रही है, लिहाजा उन्हें युद्ध के लिये तैयार रहना है। जबकि उनकी  छोटी सी टुकड़ी के पास न तो गर्म कपड़े हैं, न ही भारी मात्रा में गोला बारूद । कर्नल यानि शिषिर षर्मा भी मदद न मिलने पर अपने हाथ खड़े कर देते हैं । उसके बाद हवलदार सीएम सिंह यानि मुकेश तिवारी को कर्नल टुकड़ी का भार सौपता है । हवलदार सैनिकां से कहता है कि जिसे जाना है वो चला जाये, लेकिन यहां जसवंत सिंह आगे आकर गरजता है कि बेशक सब चले जाये लेकिन वो यहां से नहीं जायेगा और अपने जीते जी चीनीयों को एक इंच जमीन नहीं देगा। इसके बाद युद्ध होता है बाहदुरी से लड़ते हुये हमारे सैनिक एक एक करके सब मारे जाते हैं लेकिन जसवंत सिंह अकेला करीब बाहतर घंटों तक चीनीयों से लोहा लेता रहा। हां अपने वादे के साथ नूरा भी उसके साथ लड़ते हुये अपनी जान दे देती है। उसके बाद कही जाकर वो वीर जमीन पर गिर कर शहीद होता है।

डायरेक्शन

जैसा कि बताया जा चुका है कि फिल्म में जसवंत सिंह रावत की भूमिका और डायरेक्षन दोनां भार अविनाश ध्यानी ने वहन किये हैं। दरअसल चूंकि फिल्म मन से बनाई गई है लिहाजा मेहनत साफ दिखाई देती है। लेकिन कथा के साथ पटकथा पर कुछ कम काम किया गया लिहाजा वो थोड़ी कमजोर रह गई। इसीलिये कहानी का बिखरापन कितनी ही जगह दिखाई देता है। सीमा पर लड़ते हुये जवानों की वीरता प्रभावित करती हैं लेकिन बार बार सीनों का दौहराव अखरता है। फिल्म में युद्ध के दौरान बेहद तनाव भरे माहौल में नूरा और जसवंत का प्यार थोड़ी राहत जरूर देता है। हालांकि ऐसे माहौल में वो प्यार रीयल नहीं लगता। अरूणांचल प्रदेश की लोकेशन कमाल की है तथा बैकग्रांउड म्युजिक भी ठीक रहा।

अभिनय

अभिनय की बात की जाये तो अविनाश ध्यानी ने निर्देशन के अलावा जसंवत सिंह के किरदार को बहुत बढ़िया तरह से निभाया। नूरा के रूप में येशी देमा खूबसूरती के अलावा बेहद मासूम लगी है । सहयोगी किरदारों में वीरेन्द्र सक्सेना, मुकेश तिवारी, प्रशील रावत, शिषिर शर्मा तथा अलका अमीन आदि कलाकार अच्छे रहे।

क्यों देखें

1962 के युद्ध में एक उत्तराखंडी जांबाज की जांबाजी देखने के लिये फिल्म  जरूर देखें ।

Latest Stories