कई फिल्मी मेलों में घूम चुकी लेखक निर्देशक देवाशीष मखीजा की फिल्म ‘अज्जी’ भी आम फिल्मों की तरह बदले की कहानी है जो एक ऐसी गरीब परिवार की नाबालिग लड़की के रेप की कहानी है जो हमेशा की तरह ताकतवर का शिकार बनती है।
कहानी
एक गरीब मराठी परिवार जिसमें एक दस वर्षीय बेटी त्रिमला अधिकारी, मां स्मिता तांबे, पिता तथा बुर्जुर्ग दादी (अज्जी) सुशमा देशपांडे है। घर के हालात देखते हुये अज्जी को इस उम्र में भी सिलाई का काम करना पड़ता है। एक दिन त्रिशला इलाके के एम एल ए के अय्याश भाई अभिषेक बनर्जी के हत्थे चढ़ जाती है और रेप का शिकार बनती है। बाद में इलाके के पुलिस ऑफिसर विकास कुमार के डर से किसी को कुछ नहीं बोल पाते, लेकिन अज्जी चुप नहीं बैठ पाती लिहाजा वो अंत में रेपिस्ट को उसके अंजाम तक पहुंचा कर दम लेती है।
निर्देशन
अगर कहानी की बात की जाये तो ये एक ऐसी कहानी हैं जो इससे पहले न जाने कितनी फिल्मों में परोसी जा चुकी है। बस निर्देशक ने इसे आर्टिस्ट लुक दे देते हुये रियलिस्टक फिल्म में तब्दील कर दिया है। वरना तो पिछले दिनों आई मॉम आदि फिल्मों की कहानी भी लगभग यही थी। फिल्म में वही हालात दिखाये गये हैं जो हम अपने आस पास देखते हैं यानि ताकतवर द्वारा कमजोर पर किया गया जुल्म, और फिर किये गये जुल्म का बदला। कहानी का स्थान उजागर नहीं किया गया लिहाजा इसे मुबंई की किसी झोपड़पट्टी की कहानी मान लेते हैं। फिल्म का क्लाईमैक्स जिसमें अस्सी वर्षीय अज्जी मेकअप कर अभिषेक को रिझाते हुये दिखाया गया है गले से नहीं उतर पाता। बेशक कहानी कई फेस्टिवल्स में शिरकत कर चुकी है लेकिन आम दर्शक के लिये फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जो वो पहले न देख चुका हो।
अभिनय
फिल्म में मराठी थियेटर से जुडे कलाकार हैं जो अभिनय में पारंगत है। अज्जी की मुख्य भूमिका के तहत सुशमा देशपांडे ने बढ़िया काम किया है,रेप का शिकर छोटी बच्ची की भूमिका को त्रिशला अधिकारी ने बढ़िया अभिव्यक्ति दी है। स्मिता तांबे, विकास कुमार तथा अभिषेक बनर्जी भी प्रभावित करते हैं तथ अन्य आर्टिस्ट भी उल्लेखनीय रहे।
क्यों देखें
अंत में फिल्म के लिये यही कहा जा सकता है कि यहां आम कहानी को खास बनाने की कोशिश की गई है। जो आम दर्शकों की पसंद पर खरी नहीं उतर पाती।