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परिवारिक रिश्तों पर आधारित कहानीयों वाली फिल्में इससे पहले भी आ चुकी हैं। उनमें हर एक की अपनी एक खूबी थी। इसी प्रकार निर्देशक हरीश व्यास की फिल्म ‘अंगेजी में कहते हैं’ भी एक ऐसी मैच्यौर लव स्टोरी है जिसमें प्यार तो है लेकिन उसे व्यक्त करने के तरीके का अभाव है है। इसके अलावा कुछ अन्य बातें फिल्म में भली भांती दर्शायी गई हैं।
पोस्ट ऑफिस में काम करने वाले बत्रा यानि संजय मिश्रा अपनी बेटी शिवानी और पत्नि एकावली खन्ना के साथ रहते हैं। हालांकि वे घर और घर के सदस्यों का भली भांती घ्यान रखते हैं लेकिन अपने रूखे स्वभाव के कारण उनके प्रति प्यार को व्यक्त नहीं कर पाते और उस बात को मानने के लिये भी तैयार नहीं, इसी के चलते एक दिन उनका घर टूटने की कगार तक पहुंच जाता है। पत्नि उन्हें छौड़ कर चली जाती है । पीछे पड़ोस में रह रही उनकी शादीशुदा बेटी उनका ख्याल रखती है। पत्नि के चले जाने के बाद बत्रा को एहसास होता है कि उसकी उनके जीवन में क्या जगह थी। बाद में अपने दामाद, बेटी और समधी ब्रिजेश काला की सहायता से बत्रा अपने आपको बदलते हुये पत्नि के सामने अपने प्यार का इजहार कर अपनी लाइफ को खुशहाल बनाने कामयाब रहते हैं। /mayapuri/media/post_attachments/fa437c5864d2e9c875e154f55c9269d0a39a24ac19b53597960d4e03f0d79098.jpg)
निर्देशक ने बेशक एक ऐसी प्रभावशाली फिल्म बनाई जंहा हर किरदार सादगी से अपना परिचय देता है। बत्रा पर ये तौहमत लगाते हुये कि उसने जिन्दगी भर बीवी और बेटी को वो प्यार नहीं दिया जिसकी वजह से पत्नि घर छौड़़ने के लिये तैयार हो गई, अटपटा सा लगा है, जबकि बत्रा के स्वभाव की बात की जाये तो एक सीन में उसका भलमानस वाला रूप उस वक्त निकल कर सामने आता है जब वो पंकज त्रिपाठी की बीमार पत्नि को इंशोरेंस लैटर खुद उसके घर देने जाता है। मध्यांतर से पहले फिल्म हल्की फुल्की बातों को लेकर सहजता से मंथर गति से चलती है। लेकिन दूसरे भाग में फिल्म कहीं और दौड़ने लगती है। बत्रा, प्यार के मायने सीखने के लिये थोड़ा हल्के स्तर पर उतर आते हैं। कहानी में पंकज त्रिपाठी का छोटा सा जोड़ा गया ट्रैक इमोशनल कर जाता है। यही नहीं कहानी का माहौल लोकेशन तथा किरदार के लुक्स आदि सभी रीयल लगते हैं। फिल्म का म्यूजिक भी एक मजबूत पक्ष साबित हुआ। /mayapuri/media/post_attachments/c2f9664fdce3a1296f0b0e7001ed03f2b1755e644a734dd35f906a6f4c1f3635.jpg)
संजय मिश्रा बहुत ही सुलझे हुये इंटेलीजेंट अदाकार हैं। उनका एक पक्ष कॉमेडी है तो दूसरा पक्ष उससे भी जबरदस्त है, जो उन्हें संपूर्ण कलाकार बनता है। एकावली खन्ना ने पति के संसर्ग को तरसी पत्नि की भूमिका को बहुत कुशलता से निभाया है। उसमें हिन्दी फिल्मों की एक यंग मम्मी वाले रोल की प्रबल संभावनायें दिखाई दी। बेटी की भूमिका में शिवानी रघुवंशी बिलकुल सटीक अभिनय कर गई तथा अशुमन झा के लिये ये भूमिका एक बड़ा अवसर साबित सकती है। छोटी सी भूमिका में ब्रिजेन्द्र काला सदाबहार दिखाई दिये। इनके बीच मेहमान भूमिकाओं में पंकज त्रिपाठी तथा इपशिता चक्रबर्ती प्रभावशाली साबित हुये।
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