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मूवी रिव्यू: समाज की कड़वी सच्चाई को सामने लाती है 'आर्टिकल 15'

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By Mayapuri Desk
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मूवी रिव्यू: समाज की कड़वी सच्चाई को सामने लाती है 'आर्टिकल 15'

रेटिंग 3 स्टार

बदायूं रेप-मर्डर केस से प्रेरित फिल्म आर्टिकल 15 समाज की कई कड़वी सच्चाईयों को सामने लेकर आई है। सिस्टम, राजनीति और दबंगों की सांठगांठ पर तंज करती ये फिल्म  सशक्त अंदाज़ में विषय को पेश करती है। फिल्म में आयुष्मान खुराना, ईशा तलवार, नासीर, मनोज पाहवा, कुमुद मिश्रा, सयानी गुप्ता, ज़ीशान अयूब, आकाश छाबड़ा और आशीष वर्मा मुख्य भूमिकाओं में हैं। फिल्म के निर्देशक हैं अनुभव सिन्हा और फिल्म को लिखा है खुद अनुभव सिन्हा और गौरव सोलंकी ने।

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कहानी

यूरोप में एक लंबा दौर बिता चुके अयान रंजन पारंपरिक एनआरआई की तरह अपने देश से प्यार करते हैं। वह अपने देश की दिलचस्प कहानियों को अपने यूरोपियन दोस्तों को सुनाते हुए गर्व महसूस करते हैं। बॉब डिलन के गाने सुनते हैं और एक खास प्रीविलेज के साथ अपना जीवन बिताते आए हैं। अयान की पोस्टिंग एक गांव में होती है जहां दो लड़कियों का बलात्कार हुआ है और उन्हें पेड़ से लटका दिया गया है। पुलिस प्रशासन इस केस को रफा दफा करने का भरसक प्रयास करती है। अयान के लिए ये एक तगड़ा कल्चरल शॉक होता है। उसे अपने देश की एक अलग सच्चाई दिखाई देती है लेकिन वो इस केस की तह तक जाता है और इस पूरी यात्रा में उसे कई कड़वी सच्चाईयों का सामना करना पड़ता है।

अभिनय

फिल्म के हीरो मनोज पाहवा है। उन्होंने एक ऐसे पुलिसवाले का रोल निभाया है जो जानवरों से प्यार करता है लेकिन इंसानों के लिए उसमें क्रूरता भरी हुई है। पिछले कुछ समय में सेक्रेड गेम्स के पुलिस किरदारों के बाद एक सशक्त पुलिसवाले के रोल में मनोज प्रभावित करते हैं वहीं आयुष्मान खुराना और कुमुद मिश्रा ने भी अच्छी एक्टिंग की है। आयुष्मान और उनकी गर्लफ्रेंड के बीच संवाद और कुमुद-मनोज पाहवा की केमिस्ट्री शानदार है। सयानी गुप्ता मेकअप और लुक से गांव की लडक़ी लगती है लेकिन बोली और बॉडी लैंग्वेज में शहरीपन नजऱ आता है जो अखरता है। दलित नेता चंद्रशेखर से प्रभावित एक दलित नेता के किरदार में मोहम्मद जीशान अयूब ने अच्छा काम किया है। फिल्म में अयूब का कैरेक्टर ज्यादा बड़ा नहीं है लेकिन कैसे एक्टिविस्म की दुनिया में शामिल होने के बाद आम जिंदगी से ऐसे नेताओं का नाता टूट जाता है, इस पीड़ा को जीशान दिखाने में कामयाब रहे हैं।

लेखन व निर्देशन

डायरेक्टर अनुभव सिन्हा हमारी बोलचाल का हिस्सा बने तमाम रेफरेन्सेस पूरी फिल्म भर इस्तेमाल करते हैं। जैसे कोटे के डॉक्टर जो हमारे टैक्स से पढ़ाई करते हैं। लेखक गौरव सोलंकी का लेखन प्रभावी है। फिल्म के कुछेक डायलॉग लंबे समय तक आपके ज़हन में रहते हैं। जैसे एक जगह अयान की गर्लफ्रेंड कहती है-हमें हीरो नहीं चाहिए, बस ऐसे लोग चाहिए जो हीरो का इंतज़ार न करे।. कुछ सीन बेहद उम्दा बन पड़े हैं। ये फिल्म कई बार प्रतीकों में बात करती है और आपको झिंझोड़ देती है। सिनेमेटोग्राफी उम्दा है। एक सीन के लिए तो सिनेमेटोग्राफर एवान मलिगन को खास शाबाशी देनी चाहिए. जब लड़कियों की पेड़ से लटकती लाश दिखती है तब कैमरा भी थोड़ा हिलता है. जैसे उस नज़ारे की भयावहता से थर्राया हुआ हो।

क्यों देखें

‘मुल्क’ के बाद अनुभव सिन्हा एक और सोशल मैसेज वाली फिल्म लेकर आए हैं। इस बार और भी संवेदनशील विषय है। भारतीय समाज के एक कलेक्टिव फेलियर पर बात करती है ये फिल्म। ‘आर्टिकल 15’ कई जगहों पर कमजोर होने के बावजूद आपको असहज करके छोडऩे का माद्दा रखती है।  सिनेमाई नजरिए से देखा जाए तो पहले हॉफ में फिल्म कई जगह खिंची हुई सी लगती है। कुछ चीज़े अति मेलोड्रामेटिक लगती हैं। उनसे बचा जा सकता था लेकिन अपनी बेबाकी के लिए, अपनी स्पष्टवादिता के लिए फिल्म ढेरों नंबर बटोरती है।

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