लेखक निर्देशक शक्ति शंकर की फिल्म ‘ऑटो रोमांस इन मुंबई’ एक अति साधारण और नाटकीय फिल्म है जिसमें नायक का रोमांस से कुछ ज्यादा ही लगाव है, वो भी ऑटो में। यही नहीं, वो एक नहीं बल्कि दो-दो लड़कियों से एक साथ रोमांस करता है। हाईलालाईट ये है कि लड़कियों को जरा भी एतराज नहीं।
फिल्म की कहानी
सिद्धार्थ जाजू के जीवन में लड़कियां तो हैं लेकिन रूकती कोई नहीं। पहली आती है लेकिन वो इतनी महत्वाकांक्षी हैं कि जैसे ही उसे एक अच्छा ऑफर मिलता है तो वो सिद्धार्थ को टा टा बाय बाय कर लंदन चली जाती है। उसके बाद दूसरी आती है, वो भी कुछ दिन बाद ये कहते हुये चली जाती है कि उसके पेरेन्ट्स उसकी शादी कहीं और करने जा रहे हैं जिन्हें वो मना नहीं कर सकती। कुछ दिन बाद पहली वाली वापस आ जाती है लेकिन एक मुसीबत के साथ। जैसे ही सिद्धार्थ उस मुसीबत से पार पाता है तो दूसरी वाली भी वापिस आ जाती है ये कहते हुये कि किसी वजह से उसकी शादी नहीं हो पाई। जब दोनों आमने सामने होती है तो सिद्धार्थ कहता है कि वो दोनों से ही प्यार करता है लिहाजा वो दोनों से एक साथ रोमांस करने के लिये तैयार है तो दोनों भी बिना किसी न नुकर के तैयार हो जाती हैं।
निर्देशक का पहले तो यही सोचना गलत था कि ऑटो जैसी पब्लिक कन्वेंस में और पब्लिक प्लेस में कोई कैसे रोमांस कर सकता है। आखिर कानून नाम की भी कोई चीज है। खैर अगर हीरो की बात की जाये जो पता नहीं क्या कुछ है। एक तरफ तो वो ऐसा बेरोजगार हैं जो रहता तो शानदार बंगले में है और गाड़ी भी मेंन्टन करता है लेकिन फिर भी नैकरी की तलाश में हैं। दूसरी तरफ वो एक मॉडल भी है लिहाजा आखिर तक पता नहीं चलता कि वो मॉडल बड़ा है या बेरोजगार। गाड़ी होते हुये भी उसे ऑटो रिक्शा से इस कदर प्यार है कि वो अपनी प्रेमिकाओं को ऑटो में ही घुमाता है, रोमांस भी ऑटों में करना पंसद करता है तथा दूसरों को भी हिदायत देता रहता है कि मुबंई जैसे शहर में ऑटो ही ऐसी जगह है जहां खुल कर रोमांस किया जा सकता है । यही नहीं फिल्म में ऑटो रोमांस के अलावा औरत का औरत से रिलेशन भी दिखाया है। फिर एक्शन भी है। ये सब दिखाने के लिये निर्देशक ने न तो कहानी को लेकर को चिंता की, न ही शून्य स्तर के कलाकारों को लेकर और न ही कथा पटकथा तथा संवादों को लेकर उसे कोई परवाह थी। परवाह सिर्फ एक बात की थी कि ऑटो में रोमांस कैसे और कितनी दफा दिखाया जाये। फिल्म का संगीत एक हद तक अच्छा रहा लेकिन बोरियत भरी इस फिल्म वो भी जाया होकर रह गया।
अंत में फिल्म को लेकर यही कहना है कि इस प्रकार का ऑटों में रोमांस किसी को पसंद नहीं आने वाला। सिवाये निर्देशक और हीरो के। बेचारे फिल्म के प्रोड्यूसर से विशेष हमदर्दी।
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