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रेटिंग***
अपने स्कूल टाइम में मुझे एक वाकया आज भी याद है जब मेरे एक दोस्त की बासठ वर्षीय मां प्रेग्नेंट हो गई थी,लिहाजा वो खबर पूरे इलाके में आग की तरह फैल गई। इसके बाद कई महीनो तक न तो मुझे मेरा दोस्त दिखाई दिया और न ही उसके परिवार का कोई सदस्य। अमित रविन्द्रनाथ शर्मा निर्देशित फिल्म ‘ बधाई हो’ बिलकुल जैसे मेरे उस दोस्त की कहानी है। जिसे हल्के फुल्के हास्य के तहत बहुत खूबसूरती से दर्शाया गया है।
कहानी दिल्ली में रहने वाले नोजवान नुकुल कौशिक यानि आयुष्मान खुराना की है जो अपने ऑफिस में काम करने वाली लड़की रेने यानि सान्या मल्होत्रा से प्यार करता है और वो जल्द ही शादी कर सैटल होने की तैयारी कर रहा है। लेकिन अचानक वो उस वक्त दहशत में आ जाता है जब उसे पता चलता है कि उसकी मां प्रियवंदा यानि नीना गुप्ता प्रेग्नेंट है। जब उसे उसके रेलवे में टीटी की नौकरी करने वाले पिता जीतेन्द्र कौशिक यानि गजराज राव ये खबर सुनाते हैं उसके पैरों के नीचे से धरती खिसक जाती है। खबर सुनकर यही हाल उसकी दादी सुरेखा सीकरी को भी होता है बावजूद इतनी बदनामी के नीना अपना बच्चा गिराने को राजी नहीं होती। बेशक बुढ़ापे की इस प्रग्नेंसी की बदौलत पूरे परिवार को हास्य का पात्र बनना पड़ता है। नुकूल अपने सारे दोस्तों से नजरें चुराने लगता है, यहां तक इस विषय को लेकर उसका अपनी गर्ल फ्रेंड से ब्रेकअप तक हो जाता है। बाद में नुकूल और उसका परिवार इस दुष्वारी से कैसे निजात पाता है कैसे दोबारा नुकुल अपनी प्रेमिका को मना पाता है। ये फिल्म में देखना कहीं ज्यादा मजेदार होगा।
लगता है आयुष्मान खुराना देशी लेकिन एडल्ट कॉमेडी फिल्मों के ही होकर रह गये है वरना अंधाधुन को नजर अंदाज कर दिया जाये तो विकी डोनर, शुभमंगल सावधान, दम लगा के हईशा तथा बरेली की बर्फी और अब 'बधाई हो' जैसी फिल्में आयुष्मान को ही ऑफर न होती। सही तो ये है कि इस तरह की फिल्मों में आयुष्मान के अलावा ओर किसी के होने की कल्पना तक नहीं की जा सकती। वैसे भी हर फिल्म में आयुष्मान ने अपने आपको पहले से बेहतर साबित किया है, लिहाजा जब भी किसी ऐसी फिल्म का प्लान बनता है तो पहला नाम आयुष्मान का ही लिया जाता है। फिल्म की कथा तथा पटकथा दोनों ही कमाल की है तथा संवाद ऐसे कि उन्हें सुनते ही आपके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है क्योंकि देशी भाषा युक्त कॉमेडी आपको हंसने पर मजबूर कर देती है। दो घंटे तक निर्देशक की फिल्म पर मजबूत पकड़ बनी रहती है। पहले भाग में फिल्म हंसाती है तो दूसरे भाग में संवेदनशील संवादों के तहत आपके चेहरे पर गंभीरता लाने पर भी मजूबर कर देती है। क्लाईमेक्स मिडिल क्लास फैमिली की वेल्यूज के महत्व का संदेश देता है। फिल्म की हाईलाइट ये है कि इस फिल्म के पात्र आपके आस पड़ोस के ही लगते हैं। संगीत की बात की जाये तो मोरनी बन के गीत पहले चार्ट पर है।
अभिनय पक्ष की बात की जाये तो आयुष्मान दिन ब दिन कमाल के अदाकार बनते जा रहे हैं। उनकी कॉमनमैन पर्सनेलिटी उनका पचास प्रतिशत अभिनय कर देती है। सान्या मल्होत्रा अपनी लगातार तीसरी फिल्म में बढ़िया अभिनय करती नजर आ रही है। नीना गुप्ता ने एक अधेड़ उम्र की प्रेग्नेंट औरत को जिस खूबसूरती से जीया है वो उन्हें एक बेहतरीन अभिनेत्री साबित करता है। उसी प्रकार पिता की भूमिका में गजराज राव के चेहरे पर जो बुढ़ापे में पिता बनने के बाद शर्मिंदगी के भाव आते जाते हैं वो उन्हें बड़ा एक्टर साबित करने में पूर्णतया सहायक है। सास की तेज दंबग भूमिका में सुरेखा सीकरी ने यादगार भूमिका निभाई है। बाकी आयुष्मान के छोटे भाई की भूमिका करने वाला अदाकर भी बढ़िया रहा तथा छोटी सी भूमिका में शीबा चड्डा अच्छा काम कर गई।
गुरूवार को रिलीज इस फन फिल्म को मिस न करे।