मूवी रिव्यू: फर्जी या सच्चा एनकाउंटर 'बटला हाउस' By Mayapuri Desk 15 Aug 2019 | एडिट 15 Aug 2019 22:00 IST in रिव्यूज New Update Follow Us शेयर रेटिंग**** आज कुछ फिल्म मेकर्स इतने दुस्सहासी हो चले हैं कि विवादित विषयों पर फिल्में बना रहे हैं बिना किसी डर के। इनमें एक नाम निर्देशक निखिल आडवानी और प्रोडयूसर एक्टर जॉन अब्राहम का भी है । जिन्होंने 13 अगस्त 2008 को दिल्ली में हुये सीरियल बम धमाकों के बाद आंतकियों को पकड़ने के लिये हुये ‘बाटला हाउस’ बना दी । जहां हुआ एनकाउंटर बेहद चर्चित व विवादास्पद बना जो आज भी है। हालांकि इसके बाद फिल्म भी विवादों में आ गई और रिलीज से एक दिन पहले कोर्ट से बहाल हुई । कहानी दिल्ली स्पेशल सेल के ऑफिसर के. के.(रवि किशन) और संजीव कुमार यादव(जॉन अब्राहम) अपनी टीम के साथ नई दिल्ली के ओखला इलाके में स्थित बाटला हाऊस एल- 18 नंबर की तीसरी मंजिल पर आरोपियों की धड़पकड़ के लिये पहुंचते हैं, जहां मुठभेड़ मे दो संदिग्धों की मौत हो जाती है और उस मुठभेड़ में एक पुलिसमैन घायल तथा पुलिस ऑफिसर के. के. मारा जाता है । इस एनकाउंटर के बाद देश में राजनीति, आरोप प्रत्यारोप के अलावा मानव अधिकार संगठन एसीपी संजीव यादव के पीछे पड़ जाते हैं उनका आरोप है कि पुलिस ने निर्दोष स्टूडेंट्स को आंतकी बताते हुये फेंक एनकाउंटर कर उनकी बली ले ली । इसके बाद संजीव को राजनेताओं या मीडिया के अलावा अपने डिपार्टमेंट के अफसरों का भी सामना करना पड़ता है । ये सब सहते हुये वो ट्रामैटिक डिसॉर्डर जैसी मानसिक बीमारी का शिकार बन जाता है । करीब आधा दर्जन गैलेंट्री जैसे अवार्ड जीतने वाला देश का पहले ईमानदार ऑफिसर को जैसे हर कोई अपराधी साबित करने पर तुला है। वो अपनी सफाई में कुछ करना चाहता है, लेकिन डिपार्टमेंट द्धारा उसके हाथ बांध दिये जाते हैं । यहां उसकी बीवी और टीवी न्यूज रीडर मृणाल ठाकुर उसके साथ खड़ी है, बावजूद इसके वो अपने आपको अकेला महसूस करने लगता है। बाद में संजीव हार न मानते हुये अपनी टीम के साथ अपने आपको बेकसूर साबित करने में लगा रहता है । अंत में उसकी जीत होती है या हार, ये जानने के लिये फिल्म देखनी होगी । अवलोकन फिल्म के निर्देशक व लेखक की विषय को लेकर रिसर्च पर की गई मेहनत साफ दिखाई देती है । इसीलिये उसने फिल्म में केस से जुड़े सारे दृष्टिकोण दर्शाए हैं जैसे मीडिया, राजनेताओं ओर मानवाधिका संगठनों का आक्रौश तथा धार्मिक कट्टरता। जिनकी बदौलत फिल्म रीयल और प्रभावशाली बनती है । फिल्म की पटकथा तथा डायलॉग्ज भी प्रभावी हैं जैसे संजीव द्धारा अदालत में बोले गये कुछ डायलॉग्ज तालियां बजाने पर मजबूर करते हैं । फिल्म की सबसे बड़ी खूबी है, कि कहीं भी पुलिस का गुणगान या उसे महामंडित नहीं किया गया । फिल्म में कई रीयल नेताओं की भी क्लिपिंग्स हैं जैसे लालकृष्ण आडवानी, अमर सिंह, दिग्विजय सिंह तथा अरविंद केजरीवाल । फिल्म में और भी चीजें हैं जो उसे खास बनाती हैं जैसे बेहतरीन फोटोग्राफी, षानदार क्लाइमेंक्स और फिल्म की रिएलिटी । संगीत की बात की जाये तो फिल्म का आइटम सांग ‘साकी साकी’ ब्लॉक बस्टर है, इसके अलावा कुछ बैक्रग्राउंड गीत भी अच्छे हैं । अभिनय जॉन अब्राहम की बात की जाये तो इस तरह की भूमिकाओं में जैसे वे मंज चुके हैं । यहां उन्होंने पूरी तरह भूमिका में घुस कर काम किया है । मानसिक तनाव तथा हर तरफ के दबाव को उन्होंने बेहतरीन ढंग से अपने चेहरे से दर्शाया है । मृणाल ठाकुर,उनकी पत्नि और टीवी न्यूज रीडर की भूमिका में फबी हैं । हर बार की तरह इस बार भी रवि किशन अपनी छोटी सी भूमिका में अपने एक बेहतरीन अभिनेता होने का परिचय देते हैं । उनकी बेहतरीन पर्फारमेंस को देखते हुये शिद्धत से एहसास होता हैं कि उनके रोल की लंबाई कुछ और ज्यादा होती । बाकी आलाके पांडे, राजेश शर्मा, मनीश चौधरी, सहिदुर रेहमान तथा का्रंती प्रकाश झा आदि कलाकार अच्छे सहयोगी साबित हुये । नोरा फतेही आइटम सांग में कमाल की लगी है । वास्तविक विषयों पर बनी फिल्में देखने वाले दर्शकों के लिये ये फिल्म मिस करना मुश्किल होगा । #movie review #batla house हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article