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बिजली कंपनियों की मनमानी का पर्दाफाश करती 'बत्ती गुल मीटर चालू'

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By Shyam Sharma
बिजली कंपनियों की मनमानी का पर्दाफाश करती 'बत्ती गुल मीटर चालू'
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खासकर नॉर्थ इंडिया में बिजली कंपनियों की लूट मार जगजाहिर है। निर्देशक श्री नारायण सिंह इससे पहले ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ जैसी शौचालयों को लेकर पब्लिक को जागृत कर चुके हैं। इसी तरह पर उन्होंने उत्तराखंड की कुछ बिजली कंपनियों की लूट पाट को फिल्म ‘बत्ती गुल मीटर चालू’ में उजागर करने की कोशिश की है।

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में रहने वाले सुशील कुमार उर्फ. एस. के. (शाहिद कपूर) ललिता नौटियाल उर्फ नॉटी (श्रद्धा कपूर) तथा सुरेंद्र मोहन त्रिपाठी उर्फ त्रिपाठी (दिवेंद्रू शर्मा) बचपन से ही जिगरी दोस्त है। एसके एक ऐसा वकील है जो लोगों को झूठे केस में फंसा कर उनसे पैसे कमाता रहता है। नॉटी एक लोकल फैशन डिजाइनर है वही त्रिपाठी एक पेंटिंग फैक्ट्री खोलने जा रहा है। नॉटी के सामने अपना जीवन साथी चुनने की बारी आती है तो वह त्रिपाठी को चुनती है इसे लेकर एसके और उनके बीच दरार आ जाती है। त्रिपाठी की फैक्ट्री खुलने के बाद 1 महीने में डेढ़ लाख का बिल आता है। फिर तीन लाख उसके बाद सीधे चार लाख के बिल को देख कर वह बौखला जाता है तमाम बिजली अधिकारियों के चक्कर काटने के बाद भी उसे जब कुछ हासिल नहीं हो पाता तो वह एसके से मदद मांगता है लेकिन एसके भी उसे मना कर देता है हताश त्रिपाठी आत्महत्या कर लेता है। तो एसके को अपनी गलती का एहसास होता है इसके बाद वह अपने दोस्त की ही नहीं बल्कि समस्त उत्तराखंड के लोगों के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ देता है। आंदोलन में एसके का सामना बिजली कंपनी के वकील गुलनार (यामी गौतम) से होता है। एसके सिस्टम के खिलाफ यह जंग जीत पाता है या नहीं यह फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा।

टॉयलेट एक प्रेम कथा के बाद भी श्री नारायण सिंह जैसे निर्देशक को इस फिल्म में बढ़ती अपेक्षाओं के नजरिए से देखा गया, लेकिन फिल्म के पहले भाग के पूरे हिस्से में तीन दोस्तों की जुगल बाजी में ही फंसे रहे। जिसे देख दर्शक बोर होने लगता है। उसकी बोरियत दूसरे भाग में भी कोर्टरूम ड्रामा के बाद जाकर खत्म होती है लिहाजा उसके बाद वह अंत तक फिल्म से जुड़ा रहता है। फिल्म करीब 3 घंटे लंबी है, जबकि 20 मिनट तक कम किया जा सकता था। लेकिन खुद एडिटर होने के तहत श्री नारायण मोहवश ऐसा नहीं कर पाए। विकास और कल्याण जैसे दावों पर किया जा रहा कटाक्ष दिलचस्प है।

किरदार उत्तराखंड की भाषा इस्तेमाल करते अच्छे लगते हैं लेकिन उनके ‘बल’ और ‘ठहरा’ जैसे शब्दों को जरूरत से ज्यादा बुलवाया गया है। कैमरा वर्क काफी अच्छा है शायद पहली दफा फिल्म में उत्तराखंड के किसी शहर टिहरी को विस्तार से दर्शाया गया है। म्यूजिक के तहत’ गोल्ड तांबा’ तक’ हर हर गंगे’ गीत दर्शनीय बन पड़े हैं।

अभिनय की बात करें तो एक काइयां वकील की भूमिका में शाहिद कपूर एक्टिंग का पावर हाउस साबित हुए हैं। उसने अभिनय में विभिन्न रंगों को जिया है। श्रद्धा कपूर भी नॉटी के रूप में बिंदास अभिनय कर गई। दिवेंदू शर्मा ने अपनी भूमिका को संजीता भरे ठहराव से जिया है। यामी गौतम दूसरे भाग में आती हैं खूबसूरत और तेजतर्रार वकील की भूमिका में होते हुए भी वह शाहिद कपूर के सामने दबी दबी सी रहती है। जज की भूमिका को सुष्मिता मुखर्जी अपने हाव-भाव से दिलचस्प बना देती हैं। बाकी सहयोगी कलाकारों का सहयोग अच्छा रहा।

बिजली कंपनियों की मनमानियां का पर्दाफाश होते देख तथा शाहिद कपूर के बेहतरीन अभिनय के लिए फिल्म देखी जा सकती है।

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