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मुबंई के निचले तबके का जाना पहचाना रंग 'बियॉन्ड द क्लाउड्स'

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By Shyam Sharma
मुबंई के निचले तबके का जाना पहचाना रंग 'बियॉन्ड द क्लाउड्स'
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चिल्ड्रेन ऑफ द हैवेन या द फादर जैसी वर्ल्ड क्लास फिल्में बनाने वाले इरानी निर्देशक माजिद मजीदी ने इस बार फिल्म 'बियॉन्ड द क्लाउड्स' में न सिर्फ कहानी बल्कि लोकेशन और कलाकार भी इंडियन ही लिये हैं। हमेशा की तरह दूसरे विदेशी मेकर्स की तरह माजिद ने भी इंडिया के निचले तबके को ही अपनी कहानी बनाया, जिसमें वे एक हद तक ही सफल हैं।

फिल्म की कहानी

आमिर यानि इशान खट्टर तथा तारा यानि मालविका मोहनन दोनों भाई बहन हैं। मां बाप के मरने के बाद तारा ने अपने भाई को पाला पोसा लेकिन शराबी पति की प्रताड़ना से क्षुब्द हो आमिर बहुत पहले अपनी बहन के घर से भाग जाता है। इन दिनों वो ड्रग सप्लाई के धंधे में है। एक दिन पुलिस के साथ पकड़ा पकड़ी में वो एक बार फिर अपनी बहन से मिलता है। इस प्रकार एक बार फिर भाई बहन एक साथ रहने लगते हैं। उसी दौरान तारा अपने साथ काम करने वाले अक्शी यानि गोतम घोष को घायल कर जेल चली जाती है क्योंकि वो उसे रेप करने की कोशिश कर रहा था। तारा अब तभी जेल से बाहर आ सकती हैं जब तक गोतम अपनी गवाही नहीं दे देता। इसी चक्कर में आमिर गोतम की अस्पताल में देख भाल करता है, लेकिन इस बीच उसे गौतम के परिवार जिसमें उसकी पत्नि दो बेटियों को भी संभालना पड़ जाता है। क्या  आमिर अपनी बहन को जेल से बाहर निकाल पाता है जैसे सवालों को फिल्म छोड़ जाती है। publive-image

माजिद मजिदी एक वर्ल्ड क्लास फिल्म मेकर हैं। इस फिल्म पर भी उनकी मेकिंग की गहरी छाप दिखाई देती है, लेकिन फिल्म में ऐसे दृश्य बहुत हैं जिन्हें हम पहले भी सलाम बॉम्बे या स्लमडॉग जैसी फिल्मों में देख चुके हैं, क्योंकि ये फिल्म भी मुबंई की निचली बस्ती और वहां के किरदारों को लेकर बनाई गई है। फिल्म की शुरूआत से ही लगने लगता है कि एक बार फिर दर्शक का मुंबई की गंदी बस्ती और उसमें रहने वाले मलिन किरदारों से वास्ता पड़ने वाला है। कितनी ही बार  कितने ही दृश्यों में मजिद के विशेष निर्देशन की झलक दिखाई देती है जो शिद्दत से बताती हैं कि उन्हें क्यों एक उच्च स्तर का फिल्म मेकर कहा जाता है। दरअसल वे किरदारों या माहौल में धीरे धीरे अपने मनमुताबिक रंग भरते हैं लिहाजा उनके आम किरदार भी खास लगने लगते हैं। यहां उनका साथ कैमरा मैन अनिल मेहता ने बहुत खूबी से दिया है उनकी फोटोग्राफी के तहत कितने ही दृश्य बहुत प्रभावशाली बन पड़े हैं। फिल्म में कुछ ऐसा भी हैं जो अंत तक साफ नहीं हो पाता जैसे झोपड़ पट्टी में पलाबढ़ा आमिर इतनी अच्छी इंगलिश कैसे बोल लेता है दूसरे जीवी शारदा एक वकील के साथ अक्शी का बयान रिकॉर्ड करवा रही है, बाद में उसका क्या हुआ। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब आखिर तक नहीं मिल पाते। वहीं ए आर रहमान का संगीत कोई चमत्कार नहीं दिखा पाता। फिल्म से इशान खट्टर और मालविका मोहनन जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों ने बड़े पर्दे पर कदम रखा है। सब कुछ सही होने के बाद भी ये मजिद मजीदी की कोई महान फिल्म नहीं है।

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शानदार अभिनय

जैसा कि बताया गया है कि फिल्म से शाहिद कपूर के भाई इशान खट्टर ने डेब्यू किया है। अपनी पहली ही फिल्म में इशान ने बता दिया कि वो एक बेहद प्रतिभाशाली एक्टर है। इसी प्रकार मालविका मोहनन ने भी उसकी बहन के किरदार में शानदार अभिव्यक्ति दर्शाई। दोनों ही माजिद की तरफ से बॉलीवुड को दिया गये गये ताहफे की तरह हैं। उनके अलावा गोतम घोष, जीवी शारदा, ध्वनी राजेश, अमृता संतोष ठाकुर तथा शिवम पुजारी आदि साहयक कलाकारों ने भी बढ़िया अभिनय किया है।

इससे पहले भी कितने ही विदेशी फिल्म मेकर मुंबई के माथे पर कालिख कहे जाने वाली झोपड़ पट्टी जैसे निचले तबके पर फिल्में बना कर विश्वस्तर पर उन्हें कैश कर चुके हैं। माजिद मजीदी ने भी उसी आइने से मुंबई के निचले तबके को देखने का प्रयास किया है। लेकिन ये उनकी अन्य फिल्मों की तरह महान नहीं बल्कि एक साधारण फिल्म ही साबित होती है।

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