रविंदनाथ टैगोर द्धारा लिखित विश्व प्रसिद्ध कहानी काबुलीवाला पर बहुत साल पहले फिल्म काबुली वाला बनी थी जो काफी सराही गई थी। अब एक बार फिर नि देब मधेकर ने इसी कहानी को आधुनिक तौर पर बनाने की सार्थक कोशिश की है।
फिल्म की कहानी
फैशन स्टाइलिस्ट गीताजंली थापा अपने प्रसिद्ध फोटोग्राफर आदिल हुसैन पापा के साथ कोलकाता में रहती हैं। लेकिन पता नहीं क्यों बाप बेटी के बीच अच्छे संबन्ध नहीं रहे। आदिल की अचानक काबुल जाने वाले विमान के कैश होने पर मृत्यु हो जाती है। गीताजंली अपने पिता की मौत के बाद की सभी औपचारिकातायें पूरी कर हटी ही थी कि उसी दौरान उसका घरेलू नोकर ब्रिजेन्द्र काला उसे बताता है कि उसके घर रहमत खान यानि डेनी डेन्जोगपा नामक एक बूढ़ा मेहमान आया है। उसका कहना है कि वो एक मर्डर केस के तहत जेल में था, उसके पापा ने कोशिश कर उसे जल्दी जेल से छुड़वाया है। शुरू में गीताजंली उसे फौरन घर से बाहर करने के लिये कहती है, लेकिन अपने पापा के कमरे की तलाशी लेने के बाद उसे पता चलता है कि वह बूढ़ा पठान तो उसके बचपन में उसके घर आने वाला उसका प्रिय बाइस्कोपवाला चाचा ही है। उसके जेहन में एक एक करके सारी बचपन की यादें ताजा होने लगती हैं कि किस प्रकार रहमत चाचा उसे इस कदर प्यार करते थे कि एक बार तो उन्होंने जान पर खेल कर उसे मौत के मुंहू से निकाला था। दरअसल रहमत उसमें अपनी पांच साल की बेटी देखता था। जिसे वो मुश्किल वक्त में अफगानिस्तान में ही छौड़ कर आया था। इसके बाद गीताजंली रहमत से जुडे़ सभी तथ्यों की खोज में निकल पड़ती है, इसके लिये वो अफगानिस्तान तक जाती है।
निर्देशक देब मधेकर ने कहानी को आधुनिकता प्रदान करने की एक अच्छी कोशिश की है। इसके लिये उसने शीर्ष भूमिका के लिये डेनी जैसे अदाकार को चुना, जिन्होंने ज्यादातर फिल्मों में नगेटिव रोल्स ही किये हैं, लेकिन यहां वे काबुलीवाला की जगह एक नये रूप बाइस्कोपवाला के तहत प्रभवित करने में सफल साबित हुये हैं। गीताजंली थापा ने भी बढ़िया परफर्मामंस दी हैं। छोटी भूमिकाओं में आदिल हुसॅन और ब्रिजेन्द्र काला भी कहानी के उपयोगी पात्र साबित होते हैं।