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Movie Review Dhak Dhak: रोमांच, मनोरंजन, मानवीय संवेदना और भावना विहीन नीरस फिल्म

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By Shanti Swaroop Tripathi
Movie Review Dhak Dhak: रोमांच, मनोरंजन, मानवीय संवेदना और भावना विहीन नीरस फिल्म
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रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः वायकाॅम 18, तापसी पन्नू (आउट साइडर फिल्म),प्रांजल खंडूडिया व केविन वाज

लेखकः तरूण दुदेजा,पारिजात जोशी व अन्विता दत्ता

निर्देशक: तरूण दुदेजा

कलाकारः रत्ना पाठक शाह, दिया मिर्जा, फातिमा सना शेख, संजना सांघी व बेनेडिक्ट गरेटी

अवधिः दो घंटे बीस मिनट

रोड ट्पि पर कई फिल्में आयी ,जिनमें से कुछ ने प्रभाव भी डाला. उंची पहाड़ी की चढ़ाई पर पिछले दिनों सूरज बड़जात्या फिल्म ‘उंचाई’ लेकर आए थे. लेकिन जब अभिनेत्री से निर्माता बनी तापसी पन्नू ने चार महिला बाइकर्स की कहानी को ‘धक धक’ में पेश किया,तो उनसे काफी उम्मीदे बंधी थी,पर लेखक व निर्देषक ने तो इस फिल्म का सारा बंटाधार कर डाला.


 

कहानीः

शशि कुमार यादव उर्फ स्काई (फातिमा सना शेख ) एक यूट्यूब व्लॉगर हैं,जो पेशेवर और व्यक्तिगत संकट से गुजर रही हैं. वास्तव में जब से उसका पार्टनर व प्रेमी उससे अलग हुआ है, तब से उसके यूट्यूब ब्लाॅंग  के सब्सक्राइबर घट रहे हैं. उसके प्रेमी की गलती से उसके न्यूड फोटो इंटरनेट पर वायरल हो गए थे. अब स्काई इस प्रयास में लगी हुई है कि वह इनफ्युलंसर के रूप में अपनी एक नई पहचान विकसित कर सके. कक्कड़ उसे सलाह देता है कि वह सौंदर्य शास्त्र को महत्व देने की बजाय शानदार कहानी लाने पर ध्यान केंद्रित करे.तभी वह उन्हें बार्सिलोना ऑटो एक्सपो में जाने के सपने को साकार करने में मदद करेगा. स्काई नए वीडियो की विशयवस्तु की तलाश में लग जाती है.तभी उसकी मुलाकात एक सिख युवक प्राबी के माध्यम से उसकी नानी यानी कि माही (रत्ना पाठक शाह) से होती है,जो युवा उम्र में मोटर सायकल चलाया करती थीं. बातचीत में स्काई को पता चलता है कि माही समुद्र सतह से अठारह हजार किलोमीटर की उंचाई पर स्थिति खर्दुन्गला, लेह जाना है,ओर वह भी मोटर साइकल पर सवार होकर. शायद सभी बाइकर्स के लिए यह एक सपना है. स्काई व्यक्तिगत गौरव के लिए माही की प्रेरक कहानी का लाभ उठाने का फैसला लेती है. स्काई को लगता है कि यह उसके वीडियो के लिए बड़ी उपलब्धि होगी. फिर स्काई,माही का एक वीडियो पोस्ट करती है,जिसमें माही कहती है कि वह इस अभियान पर मोटर साइकल से जा रही हैं, जिन्हें साथ में जुड़ना हो वह संपर्क करें. तब  हिंदुस्तान गैरज की उज्मा (दीया मिर्जा ) व जो कि जो खुद एक कुशल बाइक मैकेनिक है,लेकिन उसने अपने परिवार के लिए अपना करियर बलिदान कर दिया. फिर मंजरी (संजना सांघी) मिलती हैं, जो एक बेहद घबराई हुई लड़की है, जिसे उसके पारिवारिक गुरु मार्था ने लेह में एक कनाडाई व्यापारी से मिलवाने के लिए गुप्त रूप से स्काई के साथ बाइक यात्रा पर शामिल होने की सलाह दी है. इस तरह इसमें एक सिख, एक मुस्लिम,एक ब्राम्हण परिवार की और एक हिंदू महिला हैं. पर उज्मा व मंजतरी अपने परिवार से सच छिपाकर आयी हैं. इस वजह से भी राह में कुछ समस्याएं पैदा होती हैं. मंजरी की परवरिश उसकी सिंगल मदर ने सारी सुविधाएं देतेे हुए की है. यह चारों औरतें परिस्थितिवश एक साथ जुड़ती हैं और अपनी अपनी मोटर सायकल से बाइक राइड्स करते हुए खर्दुन्गला जाने के लिए निकल पड़ती है.रास्ते में कई समस्याएं आती हैं,पर अंतत: यात्रा सफल रहती है और स्काई को बरसोनाला जाने का अवसर मिल जाता है. पर इस यात्रा के दौरान इन चारो औरतों को आजादी के मायने समझ में आते हैं और उनकी सोच बदलती है.


 

समीक्षाः

फिल्मकार ने फिल्म में अलग अलग सोच,अलग अलग उम्र व धर्म की महिलाओं को जोड़कर बिना शोर षराबे के धर्मनिरपेक्षता का एक संदेश देने का काम जरुर किया है. यह पहली फिल्म है,जहां औरतें ही मूल किरदार हैं.फिल्म में सफर और मंजिल में से क्या जरुरी है,इसे लेकर स्काई व माही के बीच लंबी बहस भी है.मगर फिल्म की पटकथा व कुछ द्रश्य दमदार नही है. उज्मा व मंजरी जिस तरह से अपने परिवार से झूठ बोलकर आयी हैं,उसे देखकर कई नाटकीय दृष्यों का पेदा होना आवष्क है,जिसमें मानीवय संवेदनाओं व भावनाओं का सैलाब हो,मगर इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नही है. उज्मा मुस्लिम है और उसका पति शारिक महज उसे नौकरानी से ज्यादा तवज्जो नहीं देता,जबकि गैरज उज्मा के पिता का है.उज्मा का पति 14 पंद्रह साल की बेटी जोया को अच्छे स्कूल में पढ़ाना तक नहीं चाहती. ऐसे हालात में जब उज्मा बाइकर बन कर आती है,तो उसके व उसकी बेटी के बीच के इमोषन व उज्मा के अपनी बेटी के प्रति मानवीय संवेदनाओं के प्रति यह फिल्म पूरी तरह से मौन रहती है. परिणामतः  फिल्म नीरस हो जाती है. इतना ही नहीं चार महिलाएं बाइक राइड पर निकली हैं, चारों अठारह हजार किलोमीठर की चढ़ाई चढ़ रही हैं,पर इन्हे देखकर रोमांच का अनुभव ही नही होता. यह लेखक व निर्देशक की कमजोरी का नतीजा है. पटकथा जरुरत से ज्यादा कमजोर है. सोशल मीडिया पर भी यह फिल्म स्पष्ट रूप से कुछ कहने की बजाय सिर्फ इंटरनेट पर चीजे डिलीट नही होती कहकर चुप रह जाती है. स्काई की न्ूयड फोटो वायरल होने के बावजूद सिर्फ सोशल मीडिया के कुछ कमेंट दिखाए गए,पर समाज किस तरह पेश आता है,उसका जिक्र नही..वह बाइक सवारी पर निकलती है. अठारह हजार किलोमीटर की यात्रा तय करती है,मगर उसकी न्यूड फोटो को लेकर राह में कही कोई कमेंट नही होता..इसे क्या कहा जाए..इन चारों के बीच कामुक बातचीत है,जो इस बात का याद दिलाता है कि बॉलीवुड में यौन इच्छाओं को किस तरह से नारीवाद के रूप में पारित किया गया है. हैरान करने वाली बात है कि महिला प्रधान कलाकारों वाली बॉलीवुड फिल्में अक्सर कामुकता, शराब पीने, धूम्रपान को मुक्तिदायक क्यों मानती हैं.


 

अभिनयः

स्काई के किरदार में फातिमा सना शेख का अभिनय ठीक ठाक है. रत्ना पाठक शाह को अभिनय में महारत हासिल है,मगर अफसोस इस फिल्म में वह नकली सिख के लहजे में बात करती हैं. मंजरी के किरदार में संजना सांघी निराष करती हें,उन्हे अभी काुी मेहनत करने की जरुरत है. उज्मा के किरदार मेे दिया मिर्जा का अभिनय प्रभाव नही डालता,इसकी मूूल वजह यह है कि उनके किरदार को सही परिप्रेक्ष्य में लिखा ही नही गया.

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