छपाक रिव्यु - एक घंटे की कहानी को ज़बरदस्ती धकेला गया है By Mayapuri Desk 07 Jan 2020 | एडिट 07 Jan 2020 23:00 IST in रिव्यूज New Update Follow Us शेयर जहाँ दर्शक ये सोचकर बैठें है की ये फिल्म एक बेहद इमोशनल कर देने वाली फिल्म है , वहां ऐसा कुछ भी नहीं है। फिल्म आपको लक्ष्मी अग्रवाल की ज़िन्दगी से जोड़ती जरूर है, उनके द्वारा झेली गयी परेशानियां दिखती ज़रूर हैं लेकिन थोड़ी देर बाद ही फिल्म बोर करने लगती है। इंटरवल तक तो फिल्म फिर भी किसी तरह आपको अपने साथ जोड़कर रखती है लेकिन इंटरवल के बाद तो मानो फिल्म में कुछ है ही नहीं कहानी - फिल्म शुरू होती है, देश में चल रहे निर्भया केस पर बवाल को लेकर। वहीँ अमोल (विक्रांत मैसी) के किरदार से परिचित कराया जाता है, अमोल को एक गंभीर किरदार की भूमिका में दिखाया गया है जो अब पत्रकार की नौकरी छोड़कर एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए 'छाया' नामक NGO चलाता है। अब कहानी को मालती अग्रवाल (दीपिका पादुकोण) की और ले जाया जाता है, मालती अपने लिए नौकरी की तलाश कर रहीं है, लेकिन उनका जला हुआ चेहरा देखकर लोग उनसे हिचकिचाते हैं जिस कारण मालती को नौकरी नहीं मिल रही है। अब मालती की मुलाकात एक जॉर्नलिस्ट से होती है जो अमोल की दोस्त भी है, वही मालती को नौकरी के लिए अमोल से बात करने के लिए कहती है। मालती अमोल से मिलती है और उसके साथ काम करना शुरू कर देती है। अगले सीन में मालती को अपने साथ हुए हादसे को याद करते हुए दिखाया जाता है , कैसे मालती के ऊपर अचानक से तेज़ाब फेंका जाता है और मालती दर्द से कराह रही है, उसके बाद मालती को अस्पताल ले जाया जाता है जहाँ वो पुलिस को अपना बयान देतीं हैं जिसमे पता चलता है की तेज़ाब फेंकने वाला मालती का ही फैमिली फ्रैंड और मालती का मुँह बोला भाई 'बब्बू' उर्फ़ बाशीर खान है। अब मालती को एक अच्छे अस्पताल में भेजा जाता है, जहाँ उनके चेहरे की सात सर्जरी की जाती है। अदालत में मालती का केस चल रहा है और बब्बू बार बार बेल पर बाहर आता रहता है। अब मालती के केस में दोषियों को सजा देने के साथ साथ देश में एसिड सेल्स बंद कर देने पर भी जोर दिया जाता है। अब फिल्म फिर से अमोल के समय में आती है और कुछ और एसिड केस सामने आते है। अमोल और मालती की नजदीकियां बढ़ने लगती हैं। अंत में बब्बू उर्फ़ बाशीर खान को दस साल की सजा हो जाती है और देश में एसिड सेल्स को बंद तो नहीं लेकिन रेगुलेट कर दिया जाता है। बस जी हाँ बस.. . कहानी अचानक ही खत्म हो जाती है। अवलोकन - जैसा की सभी जानते है की फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है। लेकिन फिल्म को फिल्म की तरह ही देखा जायेगा इसलिए अवलोकन भी फिल्म के आधार पर ही करना बेहतर होगा। फिल्म शुरू होते ही एक जोश का माहौल पैदा कर देती है, निर्भया केस को लेकर चल रहे आंदोलन का सीन शुरुआत में ही फिल्म के लिए आपकी जिज्ञासा बढ़ा देता है, मालती का नौकरी को लेकर चल रहा संघर्ष और लोगों का उसके लिए व्यवहार आपको भावुक करना शुरू कर देता है।मालती का फ्लैशबैक देखकर आँखें नम हो जातीं हैं और बस। असल में ऐसा लगता है की ये फिल्म बस इतनी ही है, शुरुआत के चालीस मिनट के बाद फिल्म को बस ज़बरदस्ती खींचा गया है। संगीत - फिल्म के लगभग सारे ही गीत काफी बेहतर हैं । फिल्म का संगीत आपकी भावुकता बढ़ाने में भी काफी मददगार साबित होता है। अभिनय - अभिनय की बात करें तो 'विक्रांत' और 'दीपिका' ने अपने अभिनय को बखूबी निभाया है। बाकी सपोर्टिंग एक्टर्स ने ठीक ठाक काम किया है। हाँ फिल्म में कोर्ट सीन को और ड्रामेटिक बनाया जा सकता था, दोनों ही तरफ के वकील अपने अपने अभिनय से लोगों में मालती के लिए और ज़्यादा भावुकता और बाशीर खान द्वारा किये गए उस घिनोने अपराध के प्रति आक्रोश पैदा कर सकते थे, लेकिन वो ऐसा करने में नाकाम रहे। ये खबर English में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें यह भी देखें - ‘छपाक’ के टिकट धड़ाधड़ कैंसिल कर रहे हैं लोग #Chhapaak movie #Chhapaak movie ratings #Chhapaak movie review #Chhapaak review हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article