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मूवी रिव्यू: उम्र को धत्ता बताती लव रिलेशनशिप 'दे दे प्यार दे'

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By Shyam Sharma
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मूवी रिव्यू: उम्र को धत्ता बताती लव रिलेशनशिप 'दे दे प्यार दे'

रेटिंग***

यहां सदियों से ट्रेडिशन हैं कि मर्द ओरत से दस साल बड़ा हो सकता है, कोई बात नहीं, लेकिन अगर ये फासला दुगना हो जाये तो फिर उसे बेमेल जोड़ी कहा जाता है । निर्देशक आकिव अली की फिल्म ‘ दे दे प्यार दे’ के विशय का ताना बाना कुछ ऐसी ही कहानी के साथ बुना गया है।

कहानी

पचास साल का आशीष यानि अजय देवगन अपनी बीवी तब्बू और दो बच्चों से पदरंह साल पहले अलग हो लंदन में बस गया था जहां वो फाइनेंस के बिजनिस में है। उसी दौरान उसकी लाइफ में एक बेबाक, आज का स्वछंद जीवन जीने वाली लड़की आयशा यानि रकुल प्रीत सिंह आती है जिसे किसी अजनबी के बैडरूम में शराब के नशे में सो जाने या उस दौरान उसके साथ कुछ ऐसा वैसा करने पर कोई एतराज नही बल्कि वो तो आशीष को एहसास करवाती है कि अगर उसने उसके साथ कुछ कर भी लिया होता तो वो उसे एक हादसा समझ कर भूल जाती, लेकिन अफसोस उसने वो मौंका गवा दिया। यही नही बाद में भी वो उसे उस तरह के ऑफर्स देती रहती है। इस तरह वो आनन फानन उस पर छा जाती है। आशीष आयशा को लेकर सीरियस हो जाता है जबकि यहां आशीष का डा. दोस्त यानि जावेद ज़ाफरी उसे समझाता हैं कि इस तरह जवान लड़कियां उम्रदराज मर्दो को उनकी दौलत के लिये फांसा लेती है। बावजूद इसके वो उसके साथ शादी करने का फैसला करते हुये उसे इंडिया अपनी फैमिली से मिलवाने लाता है। यहां आकर उसे पता चलता है कि खुद उसकी बेटी की शादी की बात चल रही है। तो उसे अपनी जिम्मेदारी का एहसास होता है यहां वो अपने बच्चों खासकर लड़की द्धारा अवेहलना को अवाइड करता अपनी जिम्मेदारियां निभाने की कोशिश करता है, लेकिन पंदरह साल का वक्त काफी होता है। आशीष की बेटी उसके इंडिया उनके पास आने के खिलाफ है, यहां तक वो उसे अपना पिता तक नहीं मानती लिहाजा उसने अपने ब्वायफ्रेंड को यहां तक कह दिया कि उसके पिता तो बचपन में ही मर गये थे। इसके बाद काफी कुछ घटता है। अंत में क्या आशीष अपनी फैमिली के साथ ही बना रहता है या आयशा के साथ नई जिन्दगी की शुरूआत करता है। ये सब फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा।

डायरेक्शन

बेशक निर्देशक ने रिश्तों को लेकर पुरानी और नई जनरेशन के बीच काफी कुछ नया दिखाने का साहस किया है। इसे नये जॉनर की रिलेशनशिप को एक्सप्लौर करना भी कहा जा सकता है। लेकिन वो साहस उस वक्त परिहास में तब्दील हो जाता है जब तथ्य छिपाने के लिये पत्नि अपने पति को राखी तक बांध देती है। पचास साल के पिता की छब्बीस साल की गर्लफ्रेंड, इस रिश्ते को न जानते हुये उसका बेटा नई मम्मी पर लाइन मारने लगता है। यहां उसकी बीवी उसे हर तरह का सपोर्ट देती है। हालांकि इस रिश्ते को आज भी हमारी सोसाईटी सहमति नहीं देती, लेकिन हो सकता हो, एक वर्ग इस रिश्ते का सपोर्ट करता दिखाई दे जाये। फिल्म का पहला भाग काफी फनी है, लेकिन दूसरे में कहानी के साथ दर्शक भी अपनी आपको उलझता महसूस करने लगता है। वैसे क्लाइमैक्स का एहसास पहले से ही हो जाता है। म्यूजिक कहानी का ही एक पार्ट है जो फिल्म की गति को डिस्टर्ब नहीं करता। हॉली हॉली गीत पंसद किया जा रहा है।

अभिनय

आशीष की भूमिका में जैसे अजय देवगन ने अपने आपको जीया है। इस भूमिका को उसने बेहद संजीदगी और कूल होकर अभिनीत किया है यानि वे अपनी भूमिका को प्रभावशाली रूप देने में पूरी तरह कामयाब हैं। तब्बू ने हमेशा की तरह अपने आपको एक परिपूर्ण अभिनेत्री साबित किया है। दो जवान बच्चों  की मां और पति से अलग रह रही बीवी को उसने कुशलता से जीया है। रकुल प्रीत सिंह आयशा की भूमिका में एक सेक्सी,हॉट और खूबसूरत सनसनी है। जो शुरू से अंत तक अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्शाने में पूरी तरह कामयाब है। साउथ के बाद यहां भी उसके स्टार बनने के पूरे पूरे चांसिस हैं। बाकी आलोक नाथ और मेहमान भूमिकाओं में जिमी षेरगिल तथा जावेद जाफरी ठीक ठाक रहे।

क्यों देखें

एक अलग और नई तरह की रिलेशनशिप या कुछ नया देखने के इच्छुक दर्शक ये फिल्म देख सकते हैं।

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