राइटर डायरेक्टर और एक्टर शादाब खान की फिल्म ‘ दिल्ली 47 किमी’ दिल्ली से थोड़ी सी दूरी पर रहने वाले लोगों की व्यथा बयान करती है। जो एक ऐसे शख्स के जरिये बताई गई है जिसमें उसे उन सारी परिस्थतियो से भी गुजरना पड़ता है जो उसकी शख्सियत से जरा भी मेल नहीं खाती। बाद में वो क्या वो अपने ही द्धारा बुने गये जंजाल से आजाद हो पाता है।
फिल्म की कहानी
जिगर का दिल्ली से 47 किमी, दूर रोड़ पर एक ढाबा है। उस ढाबे की जमीन काफी मंहगी हैं जिसे लेकर वो मुकदमा लड़ रहा है। उस ढाबे से हर गलत काम की शुरूआत होती है। उस पर एक डॉन बेबी वत्स की भी नजर है जो उस ढाबे की जमीन को कब्जाना चाहता है। यहां एक विधवा जवान औरत और उसके बच्चे को आसरा देने के नाम पर उसे शरीर बेचने के लिये मजबूर होना पड़ता है। ये सब जिगर पर भारी गुजरता है। लिहाजा जब उसे पता चलता है कि एक ड्राईवर शकंर उस औरत और उसके बच्चे को अपनाने के लिये तैयार हैं तो वो उसके लिये राजी हो जाता है। उसी दौरान डॉन का अय्याश भाई ढाबे पर आकर उस औरत को जलाकर मार देता है। बॉबी वत्स अपने भाई को जेल भिजवा कर उससे छुटकारा पाते हुये ढाबे पर काबिज हो जाता है। इसके बाद जिगर औरत के बेटे को शंकर के हवाले कर वापिस अपने ढाबे की लड़ाई लड़ने चला जाता है।
फिल्म बताती है कि इंडिया की राजधानी दिल्ली से महज 47 किमी दूर रहे लोगों की जिन्दगी क्या है और वे किस तरह की लाइफ जी रहे हैं। फिल्म की कहानी बहुत अच्छी है लेकिन उसे डायरेक्टर सही तरह से कह नहीं पाता लिहाजा शुरू से अंत तक दर्शक कन्फयूज बना रहता है।
फिल्म में ज्यादातर नये कलाकार हैं जो अपनी भूमिकाओं में एक हद तक ठीक लगे हैं। जिगर की भूमिका में स्वंय डायरेक्टर शादाब खान है। ड्राइवर शंकर की भूमिका में रजनीश दूबे अच्छा काम कर गया। डॉली तोमर काफी खूबसूरत है। इसके अलावा मुस्तकीन खान भी ठीक ठाक काम कर गया। लेकिन डॉन की छोटी सी भूमिका में बॉबी वत्स जरूर प्रभावित कर जाते हैं। फिल्म में वही एक जाना पहचाना चेहरा है लिहाजा उनकी भूमिका को विस्तार दिया जाना चाहिये था जो फिल्म के लिये भी फायदमंद हो सकता था।
अंत में फिल्म को लेकर यही कहना हैं कि ये राजधानी से महज थोड़ी ही दूरी पर रहने वाले लोगों की व्यथा बताना चाहती है लेकिन सही तरह से कह नहीं पाती।