रेटिंग*
कुछ कहानियां इतनी बेहतरीन होती हैं लेकिन कमजोर निर्देशन उन्हें कहीं से कहीं ले जाकर उसको बेसिर पैर का बना देता है । निर्माता आशुतोष मिश्रा की फिल्म ‘ फायर इन लव’ इसका जीता जागता उदाहरण है । जिसे निर्देशक ए के मिश्रा और उसके कलाकारों ने चूं चूं का मुरब्बा बनाकर रख दिया ।
कहानी
फिरोज खान यानि देव और कनुप्रिया शर्मा यानि अल्पना पति पत्नि हैं लेकिन दोनों बच्चे के लिये परेशान हैं । एक दिन देव के बचपन का जिगरी दोस्त अश्विन धर यानि यश, देव की अनुपस्थिति में उसके घर में घुसकर अल्पना पर बेहोशी का स्प्रे कर उसे रेप कर देता है । बाद में अल्पना प्रेग्नेंट हो जाती है । देव उसे अपना बच्चा समझता हैं जबकि अल्पना को पता है कि देव बच्चा पैदा करने के काबिल ही नहीं है। एक दिन अल्पना को पता चल जाता है, कि उसके बच्चे का बाप उसके पति का दोस्त यश है । जब ये बात देव को पता चलती है तो यश पर भड़कता है, तो सामने एक नई कहानी सामने आती है । दरअसल यश को उसकी प्रेमिका देव की मदद करने के लिये अल्पना को रेप करने के लिये कहती है, जिससे उसके दोस्त की वीरान जिन्दगी में बहार आ जाये ।
अवलोकन
कहानी यूनिक है लेकिन हजम नहीं हो पाती । हां अगर इसे कोई बेहतर कलाकारों के साथ अच्छा डायरेक्टर बनाता तो फिल्म का स्वरूप अलग ही होता । लेकिन फिल्म में डायरेक्षन, कास्टिंग, म्युजिक सभी कुछ बेहद कमजोर हैं लिहाजा फिल्म चूंचूं का मुरब्बा बन कर रह गई ।
अभिनय
फिरोज खान, अश्विन धर तथा डोली आर्या तीनां ही अपने किरदारों को ढोते नजर आते हैं। थोडा़ बहुत फिल्म को कनुप्रिया शर्मा संभालने की कोशिश करती नजर आती है लेकिन एक चना कहीं भाड़ झौंक सकता है ।
क्यों देखें
इक्का दुक्का दर्शक वो भी भूल से फिल्म देखने जाये तो जाये ।