अनिल कपूर की बेहतरीन अदाकारी 'फन्ने खां' By Shyam Sharma 03 Aug 2018 | एडिट 03 Aug 2018 22:00 IST in रिव्यूज New Update Follow Us शेयर अपने अधूरे सपनों को अपनी औलाद के सदके पूरा करना चाहता है, एक एक ऐसा पिता, जो अच्छा सिंगर होने के बावजूद खुद कभी गली मौहल्लों में होने वाले आर्केस्ट्राओं से बाहर नहीं निकल पाया। लिहाजा अब वो अपनी बेटी के जरिये अपना ख्वाब पूरा करना चाहता है। अतुल मांजरेकर द्धारा निर्देशित फिल्म ‘फन्ने खां’ कुछ ऐसा ही कहती है। फिल्म की कहानी प्रशांत शर्मा (अनिल कपूर) एक अच्छा सिंगर है लिहाजा वो स्टार सिंगर बनना चाहता है लेकिन चाहकर भी वो ऐसा नहीं कर पाता। फिर भी वो फन्ने खां के नाम से मशहूर है। उसके यहां जब बेटी पैदा होती है तो वो उसे देखकर अपनी पत्नि कविता से (दिव्या दत्ता) से कहता है देखो ये रो भी सुर में रही है। मैं तो मौहम्मद रफी नहीं बन पाया लेकिन एक दिन अपनी बेटी (पीहू सैंड) को जरूर लता मंगेशकर बनाउंगा। अपनी बेटी का नाम तक वो लता रखता है। उसकी उम्र से आधी उम्र का उसका दोस्त अदीव (राजकुमार राव) उसके हर दुख सुख का साथी है। नौकरी छूट जाने के बाद फन्ने खां अपने दोस्त सतीश कौशिक की मदद से टेक्सी चलाना शुरू कर देता है। वो लता के लिये हमेशा ऐसा कुछ करने के लिये सोचता रहता हें जिससे वो स्टार सिंगर बन जाये इसके लिये वो कुछ भी करने के लिये तैयार है। लेकिन पता नहीं क्यों उसकी बेटी लता उसे जरा भी भाव नहीं देती। उसे हमेशा संतोष भरा प्रोत्साहन अपनी बीवी से ही मिलता है। एक दिन उसकी टैक्सी में सुपर स्टार सिंगर बेबी सिंह (ऐश्वर्या राय) बैठती है तो अचानक उसके दिमाग में एक प्लान आता हैं जिसके तहत वो उसे किडनेप कर बंद पड़ी मिल के बंद रेस्टॅारेंट में ले आता है। यहां वो अपने दोस्त अदीव की मदद लेता है। दरअसल फन्ने खां बेबी सिंह को किडनेप कर उसके मैनेजर से लता को गंवाने की मांग रखता है। इस बीच एश्वर्या को भी एहसास हो जाता है कि दोनो ही कोई पेशवर मुजरिम नहीं हैं। इसके बाद काफी कुछ होता है। जिसका अहम सवाल ये हैं कि क्या फन्ने खां अपनी बेटी को स्टार सिंगर बना पाता है ? ये फिल्म देखने के बाद चलेगा। बेसिकली ये एक बाप बेटी की कहानी है। लेकिन निर्देशक दोनों के बीच गहरे इमोशन पैदा नहीं कर पाया। लिहाजा अनिल कपूर बेटी के प्रति जो भी करते हैं वो प्रभाव नहीं छोड़ पाता। दूसरे जबकि अनिल अपनी बेटी के लिये सब कुछ करने के लिये तैयार है, लेकिन पता नहीं क्यों, बेटी हमेशा उनसे क्यों उखड़ी रहती है। पहला भाग बढ़िया चल रहा होता है कि अचानक दूसरे भाग में कहानी डगमगाने लगती है। फिल्म धीमी हो जाती है। हालांकि ये एक म्यूजिकल ड्रामा है, फिर भी म्यूजिक में दम नहीं दिखाई देता। बस ‘अच्छे दिन’ गीत अच्छा रहा वरना ‘जवां है मौहब्बत’ आदि गीत, ऐश्वर्या पर फिल्माने के बाद भी जोश पैदा नहीं कर पाते। फिल्म का क्लाइमेक्स हैरान कर देने वाला है। अभिनय की बात की जाये तो फिल्म शुरू में ही अनिल कपूर के कंधों पर सवार हो जाती है, जिसे वे आखिर तक बेहतरीन अभिनय के सदके उसे उठाये रहते हैं। दिव्या दत्ता अनिल का बढ़िया ढंग से साथ देती नजर आती हैं। लगता है राजकुमार ने ये फिल्म अनिल कपूर और खास कर ऐसश्वर्या राय के साथ काम करने के लालच के तहत की है, वरना उनकी सहायक भूमिका है जिसमें जरा भी दम नहीं। ऐश्वर्या राय का भी रूटिन सा रोल है जिसे उसने आसानी से निभा दिया। नई लड़की पीहू सैंड को एक्टिंग करते देख एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि ये उसकी पहली फिल्म है उसने बहुत ही स्वाभाविक और सहजता भरे ढंग से अपनी भूमिका निभाई है। अंत में फिल्म के लिये यही कहा जा सकता है कि फिल्म वो नहीं बन पाई जैसी अपेक्षा थी, लेकिन अनिल कपूर और पीहू का बेहतरीन अभिनय देखकर दर्शक निराश नहीं होगें। #bollywood #Anil Kapoor #movie review #fanney khan #review हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article