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फिल्म रिव्यूः एनीमलः रणबीर कपूर और अनिल कपूर का शानदार अभिनय... मगर नारी विरोधी फिल्म

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By Shanti Swaroop Tripathi
फिल्म रिव्यूः एनीमलः रणबीर कपूर और अनिल कपूर का शानदार अभिनय... मगर नारी विरोधी फिल्म
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रेटिंग: डेढ़ स्टार
निर्माताः टी सीरीज,भूषण कुमार,किषन कुमार,प्रणय रेड्डी वंगा,मुराद खेतानी
लेखकः संदीप रेड्डी वंगा,प्रणय रेड्डी वंगा,सौरभ गुप्ता
निर्देशकः संदीप रेड्डी वंगा
कलाकारः रणबीर कपूर, अनिल कपूर, बॉबी देओल, रश्मिका मंदाना, तृप्ति डीमरी, बबलू पृथ्वीराज, शक्ति कपूर, प्रेम चोपड़ा, सुरेश ओबेराय, रवि गुप्ता, सिद्धांत कार्णिक, सौरभ सचदेवा, उपेंद्र लिमये, गगन दीप सिंह, इंदिरा कृष्णन व अन्य
अवधि: तीन घंटा 23 मिनट

दक्षिण भारत के मशहूर निर्देशक संदीप रेड्डी वंगा को यदि

‘वन फिल्म वंडर’ कहा जाए,तो कुछ भी गलत नही होगा.संदीप रेड्डी ने सबसे पहले तेलुगू में फिल्म ‘अर्जुन  रेड्डी ’ बनायी थी. जिसे बाद में उन्होने षाहिद कपूर को लेकर हिंदी में कबीर सिंह के नाम से बनाया. अब वह तीसरी फिल्म ‘एनीमल’ लेकर आए हैं, जिसे हिंदी के अलावा तेलुगू, तमिल व मलयालम भाषा में भी रिलीज किया गया है. यॅूं तो फिल्म ‘एनीमल’ पिता पुत्र के जटिल रिश्ते की कहानी है, मगर निर्देशक संदीप रेड्डी वंगा की सोच यही है कि हर इंसान हिंसात्मक प्रवृत्ति और सेक्स का भूखा होता है. अग्रेसिब होता है. माना कि हर इंसान के अंदर एक जानवर होता है, मगर जानवर कभी इंसान के अंदर प्रगट होता है. हर दिन चैबिसों घंटे इंसान के अंदर का जानवर/एनीमल उस पर हावी नही रहता. फिल्म ‘कबीर सिंह’ के प्रदर्शन के बाद महिला संगठनों के अलावा देष भर की औरतों ने काफी आलोचना की थी, पर ‘एनीमल’ में भी संदीप रेड्डी वंगा पर ‘कबीर सिंह’ हैगओवर नजर आता है. कई चीजों को जिस तरह से ग्लोरीफाई किया गया है,वह भी गलत है.

कहानीः

कहानी के केंद्र में रणविजय सिंह (रणबीर कपूर) हैं, जिन्हे बचपन से अपने पिता से आपेक्षित प्यार नही मिलता. उनके अरबपति पिता बलबीर सिंह (अनिल कपूर) स्वास्तिक कंपनी के कर्ताधर्ता हैं और पूरे विश्व में व्यापार फैला हुआ है. इसलिए बलराज के पास घर की तरफ ध्यान देने का वक्त नहीं होता. उनके दादा जी (सुरेश ओबेराय) घर पर रहते है. रणविजय सिंह की मां ज्योति सिंह (चारू शंकर ) दो बहने हैं- रीत और रूप (अंशुल चैहाण). पिता से प्यार न मिलने पर रणविजय सिंह अपराध की तरफ मुड़ जाता है. जो चाहे कुछ भी हो, अपने काम में व्यस्त माता- पिता का आदर करता है. रणविजय सिंह अपने पिता के लिए कुछ भी कर सकता है. बोर्डिग स्कूल में पढ़ाई करके आने के बाद उसे अहसास होता है कि उसकी बड़ी बहन रीत (सलोनी बत्रा) का पति वरूण (सिद्धांत कार्णिक) गलत ढंग से उनके पिता व स्वास्तिक कंपनी पर कब्जा करता जा रहा है. रणविजय सिंह अपने दोस्त की बहन गीतांजलि (रश्मिका मंदाना) पर अपना अधिकार जताकर शादी कर लेता है, जिसे बलराज सिंह का समर्थन नही मिलता. रणविजय सिंह अपनी पत्नी गीतांजली संग अपने निजी प्लेन में बैठकर अमरीका चला जाता है. वह एक बेटे व एक बेटी का पिता भी बन जाता है. एक दिन उसे पता चलता है कि उसके पिता पर जान लेवा हमला हुआ है. तो वह सपरिवार वापस आता है. मगर वरूण, रणविजय को बलराज से मिलने नही देता. मगर मिश्रा चाचा (शक्ति कपूर ) उसे बलराज के पास ले जाते हैं. रणविजय को आष्चर्य है कि घर से फैक्टरी तक सैकड़ों बंदूकधारी सुरक्षाकर्मियों के बावजूद यह हादसा कैसे हो गया. वह जांच शुरू करता है. रणविजय को पता चलता है कि यह सारा कांड वरूण व उसके भाई ने किया है. तब रणविजय पंजाब जाकर अपने चचेरे दादा से मिलकर सभी चचेरे भाईयों को अपने साथ जोड़कर भरोसेमंद अंगरक्षको की एक आंतरिक फौज तैयार करता है और एक दिन वरूण व उसके भाई की हत्या कर देता है. उसके बाद वह व उसके भाई अपने जिस होटल में रूके होते हैं, वहां तीन सौ नकाबधारी उन्हे मारने पहुंच जाते हैं, किसी तरह रणविजय जिंदा रह जाता है. पर कई माह अस्पताल में गुजारना पड़ता है. फिर व्यवसाय और अन्य संबंधों से जुड़ी आंतरिक पारिवारिक राजनीति व दुष्मनी सामने आती है. पर रणविजय  परिवार को सुरक्षित करना जानता है.


 

समीक्षाः

फिल्म 'एनीमल' की कहानी जरुरत से ज्यादा कन्फ्यूजन पैदा करती है. कहानी दिल्ली, केदारनाथ, अमरीका, स्काॅटलैंड से लेकर इंस्तबूल तक फैली हुई है. पर दर्शक समझ नहीं पाता कि कब कहानी कहां से कहां पहुंच जाती है. लेखक व निर्देशक ने जानबूझकर सीधे कहानी पेश करने की बजाय कन्फ्यूजन पैदा करने का प्रयास किया है. मसलन, फिल्म में रणविजय अपने अंगरक्षकों संग जाकर वरूण की हत्या कर देता है,दर्शक चैंक जाते हैं कि आखिर यह क्या हुआ, फिर बाद में कहानी उजागर होती है. इसी तरह लिमये के दृष्य भी लोगों को कन्फ्यूज करते हैं. फिल्मकार संदीप रेड्डी रंगा जिस तरह के नायक को परदे पर ग्लोरीफाई किया है, उससे लगता है कि वह एक नए तरह का समाज रचना चाहते हैं. जो पति पत्नी के आंतरिक संबंधो व सेक्स संबंधों पर जिस तरह की बातचीत है,जिस तरह के संवाद है, वह युवा पीढ़ी को आकर्षित कर सकते हैं, मगर इससे युवा पीढ़ी का नुकसान होना तय है. पिता के प्रति अगाध प्यार करने का अर्थ यह नहीं होता कि आप अपराधी बन जाएं.

लगभग साढ़े तीन घंटे की लंबी अवधि वाले हिंसा से अतिरंजित कथानक में फिल्मकार सिर्फ एक ही बात की ओर इशारा करते हैं कि यदि विजय (रणबीर कपूर) को उसके हमेशा व्यस्त रहने वाले पापा बलबीर (अनिल कपूर) का ध्यान आ गया होता,तो वह पाशविकता का आश्रय न लेता. इस बात को समझाने के लिए इतना खूनचाराबा व सेक्स परोसने की जरुरत फिल्मकार को पड़ गयी. फिल्मकार का सारा ध्यान पिता और पुत्र के बीच रिश्ते को रेखांकित करते हुए बेटे के अपराधी बनने को जायज ठहराना पर है, जो कि सभ्य समाज में स्वीकार नही किया जा सकता. माना कि व्यापार में व्यस्त पिता से रणविजय को प्यार नही मिला, मगर क्या उसके लिए उसकी मां (चारु शंकर) और बहनों का स्थिर प्यार व स्नेह कोई मायने नहीं रखता. शायद इसे ही पितृसत्तात्मक सोच कहते हैं. इतना ही नहीं विजय का एक लड़की (रश्मिका मंदाना) के लिए एक भद्दी टिप्पणी करना, जिससे वह कई वर्षों के बाद दोबारा मिला था,उचित है?

वास्तव में इंटरवल के बाद संदीप रेड्डी वंगा अपनी कहानी के मूल बिंदू से भटक जाते हैं. फिल्मकार एक तरफ अपने नायक रणविजय को राम की तरफ पेश करना चाहते हैं,जो अपनी पत्नी से वादा करता है कि वह उसे कभी भी धोखा नही देगा. तो वहीं वह जोया (तृप्ति डीमरी)  के साथ कई दिनों तक जिस तरह से सेक्स संबंध बनाता है,इसे क्या कहा जाए? क्या किसी जासूस की पोल खोलने के लिए उसके साथ प्यार का नाटक व सेक्स संबंध बनाकर उसे पत्नी के सामने जायज ठहरा सकतें हैं. फिल्मकार ने बॉबी देओल के अबरार हक के किरदार को सही ढंग से स्थापित न कर उसके साथ नाइंसाफी की है. हिंसा,खून खराबा व सेक्स का तो सैलाब है. हम यह मानते हे कि बॉलीवुड के फिल्मकार अपनी फिल्मों में इस तरह के बेहतरीन एक्शन द्रश्य नहीं परोस रहे हैं. हिंसा व खून खराबा के चलते कई भावनात्मक द्रश्य उस कदर नही उभर पाए, जिस तरह से उभरने चाहिए थे. अनिल कपूर व रणबीर कपूर के बीच बातचीत के कई ऐसे द्रश्य हैं,जहां इमोशन को और उभारा जा सकता था,पर लेखक व निर्देशक मात खा गए.

अभिनयः

रणविजय सिंह के किरदार में रणबीर कपूर का अभिनय शानदार है. रणबीर कपूर ने एक्षन द्रश्यों में भी कमाल की परफर्मेंस देते हुए रणवीर सिंह, शाहिद कपूर, शाहरुख खान, सलमान खान सहित तमाम कलाकारों की नींद उड़ा दी है. रश्मिका मंदाना की संवाद अदायगी गड़बड़ है. इसके अलावा उसे अभी अपने अभिनय पर काम करने की जरुरत है. बलबीर सिंह के किरदार में अनिल कपूर की परफार्मेंस कमाल की है. तृप्ति डीमरी को लो गअब सिर्फ बोल्ड व सेक्सी द्रश्यों के लिए ही याद करेंगे. प्रेम चोपड़ा, शक्ति कपूर, सुरेश ओबेराय, इंदिरा कृष्णन की प्रतिभा को जाया किया गया है. अबरार हक के किरदार में बॉबी देओल के अभिनय की तारीफ की जानी चाहिए, मगर हमारी राय में इस तरह के छोटे और सही ढंग से न लिखे गए किरदारों को निभाने से बॉबी देओल को बचना चाहिए. इस फिल्म में यदि एक्षन को नजरंदाज कर दिया जाए तो बाकी सब कुछ बॉबी देओल वेब सीरीज "आश्रम" में कर ही चुके हैं.

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